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यज्ञ - अध्यात्म - प्रेरक

 🚩‼️ओ३म्‼️🚩



🕉️🙏नमस्ते जी🙏


दिनांक  - - २५ जनवरी  २०२५ ईस्वी 


दिन  - -  शनिवार 


  🌘 तिथि -- एकादशी ( २०:३१ तक तत्पश्चात द्वादशी )


🪐 नक्षत्र - - ज्येष्ठा ( पूरी रात्रि)

 

पक्ष  - -  कृष्ण 

मास  - -  माघ 

ऋतु - - शिशिर 

सूर्य  - - उत्तरायण 


🌞 सूर्योदय  - - प्रातः ७:१३ पर  दिल्ली में 

🌞 सूर्यास्त  - - सायं १७:५५ पर 

 🌘 चन्द्रोदय  --  २८:३२ पर 

  🌘 चन्द्रास्त  - - १३:४५ पर 


 सृष्टि संवत्  - - १,९६,०८,५३,१२५

कलयुगाब्द  - - ५१२५

विक्रम संवत्  - -२०८१

शक संवत्  - - १९४६

दयानंदाब्द  - - २००


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🚩‼️ओ३म्‼️🚩


 🔥यज्ञ - अध्यात्म - प्रेरक 

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      जैसे भौतिक अग्नि में हव्य की आहुति देकर अग्निहोत्र होता है, वैसे अध्यात्मिक जगत में भी अग्निहोत्र होता है। परमात्मा रुपी अग्नि में जीवात्मा, प्राण, मन,बुद्धि एवं इन्द्रियों को समर्पित करना आध्यात्मिक अग्निहोत्र कहलाता है। भौतिक अग्निहोत्र के साथ-साथ अग्निहोत्री को यह आध्यात्मिक अग्निहोत्र भी करना होता है, तभी उसका अग्निहोत्र पूर्ण माना जाता है। इसलिए यज्ञकर्त्ता निम्न मन्त्र का पाठ कर यज्ञ का प्रारम्भ करता है 


         " ओ३म् उद्बुध्यस्वाग्ने प्रतिजागृहि त्वमिष्टापूर्ते संसृजेथामयं च। " 


    हे परमात्माग्निम तू उद्बुद्ध होकर मेरे ह्रदय में जाग जिससे तू और मेरा आत्मा मिलकर दोनों "इष्ट" और "पुष्ट" का सर्जन करे। इन "इष्ट" और "पुष्ट" रूपी महान कार्यों को वही व्यक्ति पूर्ण कर सकता है जिसने भौतिक अग्नि को प्रज्वलित करने के पश्चात परमात्मा रुपी दिव्य अग्नि को अपने ह्रदय रुपी यज्ञकुण्ड में स्थापित कर लिया है।बाहर की अग्नि को हम समिधा और धृत से प्रदीप्त करते हैं और शारीरिक अग्नि को अस्थिरुपी समिधा व वीर्य रूपी धृत से प्रदीप्त करते हैं। परमात्माग्नि में समर्पित हमारे तेज को वह अपने महान् तेज से सूक्ष्म और तेजस्वी बनाकर अधिक विस्तृत कर देता है और हमारी स्वार्थ भावना परार्थ में बदल जाती है। व्यक्तिगत कामनाओं का अन्त हो जाता है।  " मै " व मेरा परिवार न रहकर समस्त विश्व अपना परिवार बन जाता है। अग्न्याधान मन में यज्ञमान ईश्वर से कहता है  - " धौ: इव वरिम्णा " अर्थात् मै द्युलोक एवं   पृथ्वी की तरह विस्तृत हो जाऊँ। कितना सुन्दर है यह यज्ञ का आध्यात्मिक स्वरूप। 


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 🚩‼️आज का वेद मंत्र ‼️🚩


🌷 ओ३म् शं नो देव: विश्वदेवा भवन्तु शं सरस्वती सह धीभिरस्तु। 

शमभिषाच: शमु रातिषाच: शं नो दिव्या: पार्थिवा: शं नो अप्या:।।( ऋग्वेद ७\३५\११)


🌷अर्थ  :- दिव्य गुण युक्त विद्वान् हमारे लिए सुखकारी हो, ज्ञान- विज्ञान वाली वेद विद्या उत्तम क्रियाओं सहित हमें सुखदायक हो, यज्ञकर्त्ता और आत्मदर्शी जन हमें सुख देने वाले हो, विद्या धनादि प्रदान करने वाले हमें सुखदायी हो, द्युलोक,आकाश और पृथ्वी के पदार्थ हमें सुखदायक हो, जल के पदार्थ हमें सुखकारी हो ।


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 🔥विश्व के एकमात्र वैदिक  पञ्चाङ्ग के अनुसार👇

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 🙏 🕉🚩आज का संकल्प पाठ 🕉🚩🙏


(सृष्ट्यादिसंवत्-संवत्सर-अयन-ऋतु-मास-तिथि -नक्षत्र-लग्न-मुहूर्त)       🔮🚨💧🚨 🔮


ओ३म् तत्सत् श्री ब्रह्मणो दिवसे द्वितीये प्रहरार्धे श्वेतवाराहकल्पे वैवस्वते मन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे 【एकवृन्द-षण्णवतिकोटि-अष्टलक्ष-त्रिपञ्चाशत्सहस्र- पञ्चर्विंशत्युत्तरशततमे ( १,९६,०८,५३,१२५ ) सृष्ट्यब्दे】【 एकाशीत्युत्तर-द्विसहस्रतमे ( २०८१) वैक्रमाब्दे 】 【 द्विशतीतमे ( २००) दयानन्दाब्दे, काल -संवत्सरे,  रवि- उत्तरायणे , शिशिर -ऋतौ, माघ - मासे, कृष्ण पक्षे, एकादश्यां

 तिथौ, 

  ज्येष्ठा नक्षत्रे, शनिवासरे

 , शिव -मुहूर्ते, भूर्लोके जम्बूद्वीपे, आर्यावर्तान्तर गते, भारतवर्षे भरतखंडे...प्रदेशे.... जनपदे...नगरे... गोत्रोत्पन्न....श्रीमान .( पितामह)... (पिता)...पुत्रोऽहम् ( स्वयं का नाम)...अद्य प्रातः कालीन वेलायाम् सुख शांति समृद्धि हितार्थ,  आत्मकल्याणार्थ,रोग,शोक,निवारणार्थ च यज्ञ कर्मकरणाय भवन्तम् वृणे


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