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स्त्री- पुरूष गृहस्थ की गाड़ी के दो पहिये।


 *🚩‼️ओ३म्‼️🚩*


*🕉️🙏नमस्ते जी🙏🕉️*


दिनांक  - - ०४ फ़रवरी २०२५ ईस्वी


दिन  - - मंगलवार 


  🌒 तिथि -- सप्तमी ( २६:३० तक तत्पश्चात  अष्टमी )


🪐 नक्षत्र - -   अश्विनी ( २१:४९ तक तत्पश्चात  भरणी )

 

पक्ष  - -  शुक्ल 

मास  - -  माघ 

ऋतु - - शिशिर 

सूर्य  - - उत्तरायण 


🌞 सूर्योदय  - - प्रातः ७:०८ पर दिल्ली में 

🌞 सूर्यास्त  - - सायं १८:०३ पर 

🌒 चन्द्रोदय  -- १०:४२ पर 

🌒 चन्द्रास्त  - - २४:२३ पर 


 सृष्टि संवत्  - - १,९६,०८,५३,१२५

कलयुगाब्द  - - ५१२५

विक्रम संवत्  - -२०८१

शक संवत्  - - १९४६

दयानंदाब्द  - - २००


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 *🚩‼️ओ३म्‼️🚩*


    *🔥 स्त्री- पुरूष गृहस्थ की गाड़ी के दो पहिये।* 

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   समाज के निर्माण में पुरूष और स्त्री का दोनों का बराबर का स्थान है। पुरूष और स्त्री गृहस्थ की गाड़ी के दो बराबर के पहिये है। गृहस्थ की उन्नति के लिए आवश्यक है कि ये दोनों ठीक प्रकार से एक दुसरे को सहयोग देते चलें। पुरूष और स्त्री दोनों के अपने गुण है, अपने अपने क्षेत्र तथा अधिकार है। दोनों एक दुसरे के प्रतिद्वन्दी नहीं है अपितु सहयोगी तथा पूरक है। पुरूष इसलिए पुरूष है कि उसमें पौरूष अर्थात् बल और पराक्रम है, दुष्ट का दमन तथा श्रेष्ठ की रक्षा में समर्थ है। 


   माता निर्मात्री भवति " माता " इसलिए इसका नाम है क्योंकि वह सन्तानों का निर्माण करती है। उन्हें जन्म देकर पालन पौषण करतीं है तथा उत्तम शिक्षा देती है। लज्जा तथा शालीनता नारी के स्वाभाविक गुण है। प्रन्तु आवश्यकता पड़ने पर नारी भी पुरूष का पौरूष धारण कर सकती है जैसे झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई ने किया था। 


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*🕉🙏 आज का वेद मंत्र 🕉🙏*


*🌷 ओ३म् अग्ने व्रतपते व्रतं चारिष्यामी तच्छकेयं तन्मे राध्यताम्।*

*इदमहमनृतात् सत्यमुपैमि।। ( यजुर्वेद )*


💐 अर्थ  :- हे सत्य धर्म के उपदेशक, व्रतों के पालक प्रभु ! मैंने असत्य को छोड़कर सत्य के ग्रहण करने का व्रत लेता हुँ । आप मुझे ऐसा सामर्थ्य दो कि मेरा यह व्रत सिद्ध हो अर्थात् मैं अपने व्रत पर पूरा उतरूँ ।


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🔥विश्व के एकमात्र वैदिक  पञ्चाङ्ग के अनुसार👇

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 🙏 🕉🚩आज का संकल्प पाठ 🕉🚩🙏


(सृष्ट्यादिसंवत्-संवत्सर-अयन-ऋतु-मास-तिथि -नक्षत्र-लग्न-मुहूर्त)       🔮🚨💧🚨 🔮


ओ३म् तत्सत् श्री ब्रह्मणो दिवसे द्वितीये प्रहरार्धे श्वेतवाराहकल्पे वैवस्वते मन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे 【एकवृन्द-षण्णवतिकोटि-अष्टलक्ष-त्रिपञ्चाशत्सहस्र- पञ्चर्विंशत्युत्तरशततमे ( १,९६,०८,५३,१२५ ) सृष्ट्यब्दे】【 एकाशीत्युत्तर-द्विसहस्रतमे ( २०८१) वैक्रमाब्दे 】 【 द्विशतीतमे ( २००) दयानन्दाब्दे, काल -संवत्सरे,  रवि- उत्तरायणे , शिशिर -ऋतौ, माघ - मासे, शुक्ल पक्षे, सप्तम्यां

 तिथौ, 

    अश्वनी नक्षत्रे, मंगलवासरे

 , शिव -मुहूर्ते, भूर्लोके जम्बूद्वीपे, आर्यावर्तान्तर गते, भारतवर्षे भरतखंडे...प्रदेशे.... जनपदे...नगरे... गोत्रोत्पन्न....श्रीमान .( पितामह)... (पिता)...पुत्रोऽहम् ( स्वयं का नाम)...अद्य प्रातः कालीन वेलायाम् सुख शांति समृद्धि हितार्थ,  आत्मकल्याणार्थ,रोग,शोक,निवारणार्थ च यज्ञ कर्मकरणाय भवन्तम् वृणे।


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