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प्राण किसे कहते है ?

 🚩‼️ओ३म्‼️🚩



🕉️🙏नमस्ते जी🙏


दिनांक  - - ०५ फ़रवरी २०२५ ईस्वी


दिन  - - बुधवार 


  🌒 तिथि -- अष्टमी ( २४:३५ तक तत्पश्चात  नवमी )


🪐 नक्षत्र - -  भरणी ( २०:३३ तक तत्पश्चात कृत्तिका )

 

पक्ष  - -  शुक्ल 

मास  - -  माघ 

ऋतु - - शिशिर 

सूर्य  - - उत्तरायण 


🌞 सूर्योदय  - - प्रातः ७:०७ पर दिल्ली में 

🌞 सूर्यास्त  - - सायं १८:०४ पर 

🌒 चन्द्रोदय  -- ११:२० पर 

🌒 चन्द्रास्त  - - २५:३० पर 


 सृष्टि संवत्  - - १,९६,०८,५३,१२५

कलयुगाब्द  - - ५१२५

विक्रम संवत्  - -२०८१

शक संवत्  - - १९४६

दयानंदाब्द  - - २००


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 🚩‼️ ओ३म् ‼️🚩


   🔥प्राण किसे कहते है ?

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    हमारा शरीर जिस तत्व के कारण जीवित है उसका नाम प्राण है। प्राण जड वस्तु है।शरीर के सभी अंग प्राण से ही शक्ति पाकर अपने काम करते है। प्राण से ही भोजन का पाचन रस,रक्त ,मांस,मेद आदि धातुओं का निर्माण , व्यर्थ पदार्थों का बाहर निकलना,उठना ,बैठना ,चलना ,बोलना ,चिन्तन ,मनन ,ध्यान आदि सब स्थूल व सूक्ष्म क्रिया होती है।प्राण यदि बलवान है तो शरीर के सभी अंग ठीक से कार्य करते है और यदि निर्बल है तो शरीर रोगी हो जाता है। इसलिए शरीर को स्वस्थ रखने के लिए प्राण को शुद्ध खानपान ,प्रगाढ निद्रा ,ब्रह्मचर्य व प्राणायाम के द्वारा बलवान बनाना चाहिये ।

प्राण दश है।


  १-प्राण- इसका स्थान नासिका से हृदय तक है। आंख ,नाक,कान मुख आदि इसी की सहायता से काम करते है।


   २- अपान- इसका स्थान नाभि से पैर तक होता है। मल,मूत्र , प्रजनन आदि क्रिया इसकी सहायता से होती है।


   ३- समान- इसका स्थान हृदय से नाभि तक होता है।यह खाये अन्न को पचाने तथा उससे रस ,रक्त आदि धातु बनाने का कार्य करता है।


   ४- उदान- यह कण्ठ से सिर तक रहता है। बोलना,उल्टियाँ करना इसी के कारण होता है।


  ५- व्यान- यह सारे शरीर मे रहता है। हृदय से मुख्यत:१०१ नाडिया निकलती है उनकी अनेक शाखा है।सारे शरीर मे रक्त संचार का कार्य यही करता है।


   ६- नाग- यह कण्ठ से मुख तक रहता है।डकार ,हिचकी इसी से होती है।


   ७- कूर्म- इसका स्थान नेत्र गोलक है।गोलको को उपर नीचे दांये बांये यही घुमाता है।आंसू भी इसी से आते है।


   ८- कृकल- यह मुख से हृदय तक रहता है।भूख ,प्यास ,जंभाई इसी से उत्पन्न होती है।


   ९- देवदत्त- यह नासिका से कण्ठ तक होता है।इससे छींक , आलस्य , निद्रा आदि आती है।


  १०- धनञ्जय- यह सारे शरीर मे व्यापक रहता है।इसका कार्य शरीर के अवयवों को खींचे रखना ,मांसपेशियो को सुंदर बनाना है।


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 🕉️🚩 आज का वेद मंत्र 🕉️🚩


🌷 ओ३म्  को व: स्तोमं राधति यं जुषोषथ विश्वे देवासो मनुषो यतिष्ठन ।को वोऽध्वरं तुविजाता अरं करद्यो न: पर्षदत्यंह: स्वस्तये ( ऋग्वेद १०|६३|६ )


💐 अर्थ :-  हे सब दिव्यगुण युक्त विद्वानों  ! तुम जितने भी हो, उन सबकी स्तुति- उपासना जिसका तुम सेवन करते हो, प्रज्ञापति परमेश्वर सिद्ध करता रहता है। वहीं सुख स्वरूप परमात्मा तुम अनेक जन्म धारण करने वालों के हिंसा रहित यज्ञ को पूर्ण करता है, जो यज्ञ पाप को हटाकर हमारे लिए आनन्द की प्राप्ति कराता है ।


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🔥विश्व के एकमात्र वैदिक  पञ्चाङ्ग के अनुसार👇

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 🙏 🕉🚩आज का संकल्प पाठ 🕉🚩🙏


(सृष्ट्यादिसंवत्-संवत्सर-अयन-ऋतु-मास-तिथि -नक्षत्र-लग्न-मुहूर्त)       🔮🚨💧🚨 🔮


ओ३म् तत्सत् श्री ब्रह्मणो दिवसे द्वितीये प्रहरार्धे श्वेतवाराहकल्पे वैवस्वते मन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे 【एकवृन्द-षण्णवतिकोटि-अष्टलक्ष-त्रिपञ्चाशत्सहस्र- पञ्चर्विंशत्युत्तरशततमे ( १,९६,०८,५३,१२५ ) सृष्ट्यब्दे】【 एकाशीत्युत्तर-द्विसहस्रतमे ( २०८१) वैक्रमाब्दे 】 【 द्विशतीतमे ( २००) दयानन्दाब्दे, काल -संवत्सरे,  रवि- उत्तरायणे , शिशिर -ऋतौ, माघ - मासे, शुक्ल पक्षे, अष्टम्यां

 तिथौ, 

    भरणी नक्षत्रे, बुधवासरे

 , शिव -मुहूर्ते, भूर्लोके जम्बूद्वीपे, आर्यावर्तान्तर गते, भारतवर्षे भरतखंडे...प्रदेशे.... जनपदे...नगरे... गोत्रोत्पन्न....श्रीमान .( पितामह)... (पिता)...पुत्रोऽहम् ( स्वयं का नाम)...अद्य प्रातः कालीन वेलायाम् सुख शांति समृद्धि हितार्थ,  आत्मकल्याणार्थ,रोग,शोक,निवारणार्थ च यज्ञ कर्मकरणाय भवन्तम् वृणे


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