सिंदबाद जहाजी की छठी यात्रा-अलिफ़ लैला
सिंदबाद ने हिंदबाद और अन्य लोगों से कहा
कि आप लोग स्वयं ही सोच सकते हैं कि मुझ पर कैसी मुसीबतें पड़ीं और साथ ही मुझे
कितना धन प्राप्त हुआ। मुझे स्वयं इस पर आश्चर्य होता था। एक वर्ष बाद मुझ पर फिर
यात्रा का उन्माद चढ़ा। मेरे सगे-संबंधियों ने मुझे बहुत रोका किंतु मैं न माना।
आरंभ में मैंने बहुत-सी यात्रा थल मार्ग से की और फारस के कई नगरों में जाकर
व्यापार किया। फिर एक बंदरगाह पर एक जहाज पर बैठा और नई समुद्र यात्रा शुरू की।
कप्तान की योजना तो लंबी यात्रा पर जाने
की थी किंतु वह कुछ समय बाद रास्ता भूल गया। वह बराबर अपनी यात्रा पुस्तकों और
नक्शों को देखा करता था ताकि उसे यह पता चले कि कहाँ है। एक दिन वह पुस्तक पढ़ कर
रोने-चिल्लाने लगा। उसने पगड़ी फेंक दी और बाल नोचने लगा। हमने पूछा कि तुम्हें यह
क्या हो गया है,
तो उसने कुछ देर में बताया कि यहाँ एक समुद्री धारा हमें एक ओर लिए
जाती हैं, वह हमें एक तट पर ऐसा पटकेगी कि हमारा जहाज टूट
जाएगा और हम सब उसी तट पर मर जाएँगे। यह कहकर उसने जहाज के पाल उतरवा दिए।
उससे कुछ न हुआ। धारा के वेग से उछल कर
जहाज पहाड़ी से टकराया और शीशे की तरह बिखर गया। चूँकि तट ही पर यह हुआ था इसीलिए
हम लोग खाद्य सामग्री और अन्य सामान किनारे पर ले आए। कप्तान ने कहा 'भाग्य
पर किसी का वश नहीं है। अब हम सब लोग एक-दूसरे के गले लगकर रो लें और अपनी-अपनी
कब्रें खोद लें क्योंकि यहाँ से कोई बचकर नही गया है।' यह
सुनकर हम लोग एक-दूसरे के गले लगकर रोने लगे क्योंकि हमने देखा कि किनारे पर
दूर-दूर तक जहाजों के टुकड़े और मानव कंकाल बिखरे पड़े थे। मालूम होता था कि
हजारों यात्री वहाँ आकर मर गए हैं। चारों ओर उनके व्यापार की वस्तुएँ बिखरी पड़ी
थीं।
उस पहाड़ पर बिल्लौर और लाल की खदान थीं।
पास ही कई नदियाँ एक स्थान पर मिलकर एक गुफा के अंदर जाती थीं। उस पहाड़ से राल
टपक कर समुद्र में गिरती थी और मछलियाँ उसे खाकर कुछ समय बाद उसे उगल देती थीं।
वही अभ्रक बन जाती थी। उस अभ्रक के ढेर भी वहाँ थे। समुद्र में समुद्री धारा से
बचना इसीलिए असंभव था कि पहाड़ की ऊँचाई के कारण जहाजों को विपरीत दिशा में खींच
ले जाने वाली तेज हवा रुक जाती थी। पहाड़ इतना ऊँचा था कि उस पर चढ़कर दूसरी ओर जा
निकलना भी असंभव था।
हम लोग अपने दुर्भाग्य पर रोते रहे और
अपनी मृत्यु की प्रतीक्षा करते रहे। जहाज पर से लाया हुआ खाना हमने बराबर बाँट
लिया। हममें से जो भी मरता बाकी लोग कब्र खोदकर उसे दफन कर देते थे। मैं ही सबसे
अधिक मुर्दे गाड़ा करता और उनका बचा हुआ भोजन ले लेता। इस प्रकार मेरे पास खाद्य
सामग्री काफी हो गई। धीरे- धीरे मेरे सभी साथी मर गए। अकेला रह जाने के कारण मैं
और भी दुखी हुआ। मैंने भी अपनी कब्र खोद ली ताकि मरने का समय आए तो उसमें जा
लेटूँ।
मैं रात-दिन अपने को धिक्कारता था कि घर
पर इतना सुख का जीवन छोड़कर यहाँ मंदगामी मौत मरने के लिए क्यों आया। किंतु पछताने
से क्या होना था। भगवान की दया से एक रात अचानक एक विचार मेरे मन में आया। मैंने
सोचा कि नदियाँ मिलकर एक बड़ी नदी के रूप में जब खोह के अंदर बहती ही जाती हैं तो
खोह के बाद कहीं और निकलती भी होंगी। इसीलिए मैंने सोचा कि किसी तरह इस नदी के
सहारे ही किसी देश में जा निकलूँ। किनारे पर बीसियों जहाज टूटे पड़े थे। मैंने
तख्तों को जोड़- जाड़कर एक नाव बनाई। मैंने सोचा कि किनारे पर तो मरना निश्चित ही
है, नदी में जाने पर भी अधिक से अधिक मौत ही होगी और हो सकता है कि बच ही
जाऊँ।
बचने की आशा में मैंने नाव पर खाद्य
सामग्री के अलावा वहाँ पड़े हुए असंख्य रत्नों और मृत यात्रियों के बिखरे हुए
सामान की बहुमूल्य वस्तुओं में से चुन-चुनकर चीजें जमा की ओर उनकी कई गठरियाँ
बनाईं। नाव को नदी के किनारे लाकर मैंने उसके दोनों ओर गठरियाँ रखीं ताकि नाव बहुत
हल्की भी न रहे और संतुलित भी रहे। यह करने के बाद मैंने डाँड़ सँभाली और ईश्वर का
नाम लेकर नदी में नाव छोड़ दी।
नाव गुफा में गई तो बिल्कुल अँधेरे में आ
गई। मुझे दिखाई न देता था। नाव को कभी धारा पर छोड़कर सुस्ताने लगता, कभी
खेने लगता। कहीं-कहीं गुफा की छत इतनी नीचे थी कि मेरे सिर पर टकराती थी। अपने पास
जो मैंने रख लिया था उसमें से बहुत थोड़ा-थोड़ा खाता था ताकि जीवित भर रह सकूँ।
कुछ समय के बाद मुझ पर निद्रा का ऐसा प्रकोप हुआ कि मैं सो गया तो घंटों तक सोता
रहा। जब जागा तो देखा कि नाव खुले में नगर के समीप नदी के तट पर बँधी हुई है।
मैंने देखा कि मेरे चारों ओर बहुत- से श्याम वर्ण लोग हैं। मैंने इन्हें सलाम करके
उनका हाल-चाल पूछा।
उन्होंने उत्तर में कुछ कहा किंतु मैं
उसे बिल्कुल न समझ सका।
खैर, आदमियों के बीच पहुँचकर मुझे
बड़ी प्रसन्नता हुई और मैंने ऊँचे स्वर में अपनी भाषा अरबी में भगवान को धन्यवाद
दिया और कहा कि भगवान क्षण-क्षण पर मनुष्य की सहायता करता है और मनुष्य को चाहिए
कि उसकी अनुकंपा से निराश न हो और मुझे भी उचित है कि आँख बंद करके स्वयं भगवान के
सहारे छोड़ दूँ।
उन लोगों में से एक को अरबी भाषा आती थी।
मेरी बातें सुनकर वह मेरे पास आया और कहने लगा, 'तुम हम लोगों को देखकर चिंता न
करो। हम लोग इस क्षेत्र के वासी हैं। हम यहाँ नदी से अपने खेतों में पानी देने के
लिए आते हैं। आज नदी में पानी कम आ रहा था जैसे धारा को कोई चीज रोके हुए हो। हमने
आगे जाकर देखा तो एक मोड़ पर तुम्हारी नाव टेढ़ी होकर अटकी थी जिससे पानी धारा में
आना कम हो गया था। हममें से एक व्यक्ति तैर कर गया और तुम्हारी नाव को उसने फिर
सीधा करके धारा में डाला। फिर हमने तुम्हारी नाव यहाँ बाँध दी। अब तुम बताओ कि कौन
हो और कहाँ से आए हो।'
मैंने उससे कहा कि मेरी भूख से जान निकली
जा रही है,
पहले कुछ खाने को दो। उन लोगों ने कई तरह की खाने की चीजें दीं। फिर
मैंने आरंभ से अंत तक अपना हाल उन्हें बताया। उन लोगों को यह सुनकर बड़ा आश्चर्य
हुआ। उन्होंने कहा कि हम तुम्हें अपने बादशाह के पास ले जाएँगे, वहाँ तुम उन्हें अपना हाल सुनाना। मैंने कहा, मैं
इसके लिए तैयार हूँ।
वे लोग मेरी गठरियाँ उठा कर मेरे साथ
चले। यह सरान द्वीप (लंका) था। मैंने राज दरबार में प्रवेश किया और सिंहासन पर
बैठे राजा को देखकर हिंदुओं की प्रथानुसार उसे प्रणाम किया और उसके सिंहासन को
चूमा। बादशाह ने पूछा,
तू कौन है। मैंने कहा, मेरा नाम सिंदबाद जहाजी
है, मैं बगदाद नगर का निवासी हूँ। उसने कहा, तू कहाँ जा रहा है और मेरे राज्य में कैसे आया। मैंने उसे अपनी यात्रा का
वृत्तांत आद्योपांत बताया। उसे यह सुनकर बड़ा आश्चर्य हुआ। उसने आज्ञा दी कि
सिंदबाद के जीवन का वृत्तांत लिख लिया जाए बल्कि सोने के पानी से लिखा जाए ताकि यह
हमारे यहाँ के इतिहास की तथा अन्य ज्ञानवर्धक पुस्तकों में भी जगह पर सके।
उसने मेरी गठरियाँ खोलने की आज्ञा दी।
उनमें के बहुमूल्य रत्नों तथा चंदनादि अन्य वस्तुओं को देखकर उसे और भी आश्चर्य
हुआ। मैंने कहा,
'महाराजाधिराज, यह सब आप ही का है, आप इसमें से जितना चाहें ले लें बल्कि सब कुछ लेना चाहें तो वह भी करें।'
उसने मुस्कराकर उत्तर दिया, 'नहीं, यह सब तेरा हैं, हम इसमें से कुछ नहीं लेंगे।'
फिर उसने आज्ञा दी कि इस मनुष्य को इसके माल-असबाब के साथ एक अच्छे
घर में ठहराओ, इसकी सेवा के लिए अनुचर रखो और हर प्रकार इसकी
सुख-सुविधा का खयाल रखो। उसके सेवकों ने ऐसा ही किया और मुझे एक शानदार मकान में
ले जाकर उतारा। मैं रोज राज दरबार जाया करता था और वहाँ से छुट्टी मिलने पर
इधर-उधर घूम-फिर कर राज्य की देखने योग्य चीजें देखा करता था।
सरान द्वीप भूमध्य रेखा के किंचित दक्षिण
में है। इसीलिए वहाँ सदैव ही दिन और रात बराबर होते हैं। उस द्वीप की लंबाई चालीस
कोस है और इतनी ही उसकी चौड़ाई है। राजधानी के चारों ओर ऊँचे-ऊँचे पहाड़ हैं। वहाँ
से समुद्र तट तीन दिन की राह पर है। वहाँ लाल (मणि) तथा अन्य रत्नों की कई खानें
हैं और वहाँ कोरंड नामी पत्थर भी पाया जाता है जिससे हीरों और अन्य रत्नों को
काटते और तराशते हैं। वहाँ नारियल के तथा अन्य कई फलों के वृक्ष भी बहुतायत से
हैं। वहाँ के समुद्र में मोती भी बहुत मिलते हैं। हजरते आदम, जो
कुरान और बाइबिल के अनुसार मनुष्यों के आदि पुरुष हैं, जब
स्वर्ग से उतारे गए थे तो इसी द्वीप के एक पहाड़ पर लाए गए थे।
जब मैं वहाँ खूब घूम-फिर कर देख चुका तो
मैंने बादशाह से निवेदन किया कि अब मुझे मेरे देश जाने की अनुमति दीजिए। उसने मुझे
अनुमति ही नहीं बल्कि कई बहुमूल्य वस्तुएँ इनाम के तौर पर भी दीं। उसने खलीफा
हारूँ रशीद के नाम एक पत्र और बहुत-से उपहार भी मुझे दिए कि मैं उन्हें खलीफा तक
पहुँचा दूँ। मैंने सिर झुका कर यह स्वीकार किया। बादशाह ने मेरे ले जाने के लिए एक
मजबूत जहाज का प्रबंध किया और कप्तान और खलासियों को ताकीद की कि सिंदबाद को बड़े
सम्मान से उसके देश में पहुँचाना, रास्ते में इसे किसी प्रकार की असुविधा न
हो।
सरान द्वीप के बादशाह ने जो पत्र खलीफा
के नाम दिया था वह पीले रंग के नरम चमड़े पर लिखा था। यह चमड़ा किसी पशु विशेष का
था और बहुत ही मूल्यवान था। उस पर बैंगनी स्याही से पत्र लिखा था। पत्र का लेख इस
प्रकार था,
'यह पत्र सरान द्वीप के बादशाह की ओर से भेजा जा रहा है। उस बादशाह
की सवारी के आगे एक हजार सजे-सजाए हाथी चलते हैं, उसका
राजमहल ऐसा शानदार है जिसकी छतों में एक लाख मूल्यवान रत्न जड़े हैं और उसके खजाने
में अन्य वस्तुओं के अतिरिक्त बीस हजार हीरे जड़े मुकुट रखे हैं। सरान द्वीप का
बादशाह खलीफा हारूँ रशीद को निम्नलिखित उपहार भातृभाव से भेज रहा है। वह चाहता है
कि खलीफा और उसके दृढ़ मैत्री संबंध हो जाएँ और एक-दूसरे का अहित हम दोनों न
चाहें। मैं सरान द्वीप का बादशाह खलीफा की कुशल-क्षेम चाहता हूँ।'
जो उपहार बादशाह ने खलीफा को भेजे थे
उनमें मणि का बना हुआ एक प्याला था जिसका दल पौन गिरह (लगभग पौने दो इंच) मोटा था
और उसके चारों ओर मोतियों की झालर थी। झालर के मोतियों में प्रत्येक तीन माशे के
वजन का था। एक बिछौना अजगर की खाल का, जो एक इंच से अधिक मोटा था। इस
बिछौने की विशेषता यह थी कि उस पर सोने वाला आदमी कभी बीमार नहीं पड़ता था। तीसरा
उपहार एक लाख सिक्कों के मूल्य की चंदन की लकड़ी थी। चौथा उपहार तीस दाने कपूर के
थे जो एक-एक पिस्ते के बराबर थे। पाँचवाँ उपहार एक दासी थी जो अत्यंत ही रूपवती थी
और अति मूल्यवान वस्त्राभूषणों से सुसज्जित थी।
हमारा जहाज कुछ समय की यात्रा के बाद सकुशल
बसरा के बंदरगाह में पहुँच गया। मैं अपना सारा माल और खलीफा के लिए भेजा गया पत्र
और उपहार लेकर बगदाद आया। सब से पहले मैंने यह किया कि उस दासी को - जिसे मैंने
परिवार के युवकों से सुरक्षित रखा था - तथा अन्य उपहार और पत्र लेकर खलीफा के
राजमहल में पहुँचा। मेरे आने की बात सुनकर खलीफा ने मुझे तुरंत बुला भेजा। उस के
सेवकगण मुझे सारे सामान के साथ खलीफा के सम्मुख ले गए। मैंने जमीन चूमकर खलीफा को
पत्र दिया। उसने पत्र को पूरा पढ़ा और फिर मुझ से पूछा, 'तुमने
तो सरान द्वीप के बादशाह को देखा है, क्या वह ऐसा ही
ऐश्वर्यशाली है जैसा इस पत्र में लिखा है?
मैंने कहा, 'वह वास्तव में ऐसा ही
है जैसा उसने लिखा है। उसने पत्र में बिल्कुल अतिशयोक्ति नहीं की, मैंने उसका ऐश्वर्य और प्रताप अपनी आँखों से देखा है। उसके राजमहल की
शान-शौकत का शब्दों में वर्णन नहीं हो सकता। जब वह कहीं जाता है तो सारे मंत्री और
सामंत अपने-अपने हाथियों पर सवार होकर उसके आगे-पीछे चलते हैं। उसके अपने हाथी के
हौदे के सामने अंग रक्षक सुनहरे काम के बरछे लिए चलते हैं और पीछे सेवक मोरछल
हिलाता रहता है। उस मोरछल के सिरे पर एक बहुत बड़ा नीलम लगा हुआ है। सारे हाथियों
के हौदे और साज-सामान ऐसे सुसज्जित हैं जिसका वर्णन मेरे वश की बात नहीं है।
'जब बादशाह की सवारी चलती है तो
एक उद्घोषक उच्च स्वर में कहता है कि शानदार बादशाह की सवारी आ रही है जिसके महल
में एक लाख रत्न जड़े हैं और जिसके पास बीस हजार हीरक जटित मुकुट हैं और जिसके
सामने कोई राजा नहीं ठहर सकता चाहे वह हिंदू हो या मुसलमान।'
'पहले उद्घोषक के बोलने के बाद
दूसरा उद्घोषक कहता है कि बादशाह के पास चाहे जितना ऐश्वर्य हो मरना तो इसके लिए
प्रारब्ध है। इस पर पहला कहता है कि इसे सब लोगों का आशीर्वाद मिलना चाहिए कि यह
अनंत जीवन पाए।
'यह बादशाह इतना न्यायप्रिय है कि
इसके राज्य में न कोई न्यायाधीश है न कोतवाल। उसकी प्रजा ऐसी सुबुद्ध है कि कोई न
किसी पर अन्याय करता है न किसी को दुख पहुँचाता है। चूँकि सब लोग बड़े मेल-मिलाप
से रहते हैं इसीलिए कोई जरूरत ही नहीं पड़ती कि व्यवस्था ऊपर से कायम की जाए।
इसीलिए सरान द्वीप के राज्य में न पुलिस या कोतवाल रखे गए हैं न न्यायाधीश।'
खलीफा ने यह सुनकर कहा कि तुम्हारे वर्णन
और इस पत्र से जान पड़ता है कि वह बादशाह बड़ा ही समझदार और होशियार है, इसीलिए
इतनी अच्छी व्यवस्था कर पाता है कि पुलिस आदि की आवश्यकता ही न हो। यह कहकर खलीफा
ने मुझे खिलअत (सम्मान परिधान) दी और विदा किया।
यह कहानी कहकर सिंदबाद ने कहा कि आप लोग
कल फिर आएँ तो मैं अपनी सातवीं और अंतिम समुद्र यात्रा का वर्णन करुँगा। यह कहकर
उसने चार सौ दीनारें हिंदबाद को दीं। दूसरे दिन भोजन के समय हिंदबाद आया और
सिंदबाद के मुसाहिब भी आए। भोजनोपरांत सिंदबाद ने कहानी शुरू की।
0 Comments
If you have any Misunderstanding Please let me know