एक स्त्री और तीन नौकरों का
वृत्तांत-अलिफ़ लैला
शहरयार को सिंदबाद की यात्राओं की कहानी
सुन कर बड़ा आनंद हुआ। उसने शहरजाद से और कहानी सुनाने को कहा। शहरजाद ने कहा कि
खलीफा हारूँ रशीद का नियम था कि वह समय-समय पर वेश बदल कर बगदाद की सड़कों पर
प्रजा का हाल जानने के लिए घूमा करता था। एक रोज उसने अपने मंत्री जाफर से कहा कि
आज रात मैं वेश बदल कर घूमँगा, अगर देखूँगा कि कोई पहरेवाला अपने कार्य को
छोड़ कर सो रहा है तो उसे नौकरी से निकाल दूँगा और मुस्तैद आदमियों को पारितोषिक
दूँगा। मंत्री नियत समय पर जासूसों के सरदार मसरूर के साथ खलीफा के पास आया और वे
तीनों साधारण नागरिकों के वेश में बगदाद में निकल पड़े।
एक तंग गली में पहुँचे तो चंद्रमा के
शुभ्र प्रकाश में उन्हें दिखाई दिया कि एक लंबे कद और सफेद दाढ़ीवाला आदमी सिर पर
जाल और कंधे पर नारियल के पत्तों का बना टोकरा लिए चला आता है। खलीफा ने कहा कि यह
बड़ा गरीब मालूम होता है,
इससे इसका हाल पूछो। तद्नुसार मंत्री ने उससे पूछा कि तू कौन है और
कहाँ जा रहा है। उसने कहा, 'मैं अभागा एक निर्धन मछुवारा
हूँ। आज दोपहर को मछली पकड़ने गया था किंतु शाम तक मेरे हाथ एक भी मछली न लगी। मैं
अब खाली हाथ घर जा रहा हूँ। घर पर मेरी स्त्री और कई बच्चे हैं। मैं चक्कर में हूँ
कि उन्हें आज खाने को क्या दूँगा।'
खलीफा को उस पर दया आई। उसने कहा, 'तू एक
बार फिर नदी पर चल और जाल डाल। तेरे जाल में कुछ आए या न आए मैं तुझे चार सौ
सिक्के दूँगा और जो कुछ तेरे जाल में आएगा ले लूँगा।' मछुवारा
तुरंत इसके लिए तैयार हो गया। उसने सोचा कि मेरा सौभाग्य ही है कि ऐसे भले आदमी
मिले, यह मेरे साथ धोखा करनेवाले तो मालूम नहीं होते। नदी पर
जा कर उसने जाल फेंका और थोड़ी देर में उसे खींचा तो उसमें एक भारी संदूक फँसा हुआ
आ गया। खलीफा ने मंत्री से मछुवारे को चार सौ सिक्के दिलाए और विदा कर दिया।
खलीफा को बड़ा कौतूहल था कि संदूक में
क्या है। मसरूर और जाफर ने उसके आदेशानुसार संदूक खलीफा के महल में रख दिया। उसे
खोल कर देखा तो उसमें कोई चीज नारियल की चटाई में लाल डोरे से सिली हुई थी। खलीफा
की उत्सुकता और बढ़ी। उसने छुरी से सीवन काट डाली और देखा कि एक सुंदर स्त्री का
शव टुकड़े-टुकड़े करके चटाई के अंदर सी दिया गया था।
खलीफा यह देख कर अत्यंत क्रुद्ध हुआ।
उसने मंत्री से कहा,
'क्या यही तुम्हारा प्रबंध है? मेरे राज्य में
ऐसा अन्याय हो कि किसी बेचारी स्त्री को कोई काट कर संदूक में बंद करके नदी में
डाले, यह मैं सहन नहीं कर सकता। या तो तुम इसके हत्यारे का
पता लगाओ या फिर तुम्हें और तुम्हारे चालीस कुटुंबियों को फाँसी पर चढ़ा दूँगा'
मंत्री काँप गया और उसने कहा, 'सरकार मुझे कुछ
समय तो दिया जाए कि मैं हत्यारे का पता लगाऊँ।' खलीफा ने कहा
कि तुम्हें तीन दिन का समय दिया जाता है।
मंत्री जाफर अत्यंत शोकाकुल हो कर अपने
भवन में आया और सोचने लगा कि तीन दिन में हत्यारे का पता कैसे लग सकता है और पता
लगा भी तो इस का प्रमाण कहाँ मिलेगा कि यही हत्यारा है। हत्यारा तो कब का नगर छोड़
भी चुका होगा। क्या करूँ?
क्या किसी आदमी पर जो पहले ही कारागार में है इस हत्या का अभियोग
लगा दूँ। ? किंतु यह बड़ा अन्याय बल्कि मेरा अपराध होगा कि
मैं जान-बूझ कर किसी निरपराध को दंड दिलवाऊँ, कयामत में
भगवान को क्या मुँह दिखाऊँगा।
मंत्री ने सारे सिपाहियों, हवलदारों
को आज्ञा दी कि स्त्री के हत्यारे की तीन दिन में खोज करो वरना मैं मारा जाऊँगा और
मेरे साथ मेरे कुटुंब के चालीस व्यक्ति भी फाँसी पाएँगे। वे बेचारे तीन दिन तक
घर-घर जा कर हत्यारे की खोज करते रहे किंतु हत्यारे का कहीं पता न चला। तीन दिन
बीत जाने पर खलीफा के आदेश पर जल्लाद जाफर और उसके चालीस कुटुंबियों को पकड़ कर ले
आया और खलीफा के सामने हाजिर कर दिया। खलीफा का क्रोध अभी शांत नहीं हुआ था। उसने
आज्ञा दी कि सब को फाँसी दे दो।
जल्लाद के निर्देशन में फाँसी की इकतालीस
टिकटियाँ खड़ी कर दी गईं। नगर में मुनादी करवाई गई कि खलीफा के आदेश से मंत्री
जाफर और उसके चालीस कुटुंबियों को फाँसी दी जाएगी। जो आ कर देखना चाहता है देख ले।
सारे नगर में यह मालूम हो गया कि किस अपराध पर मंत्री और उसके कुटुंबी फाँसी पर
चढ़ाए जा रहे हैं।
कुछ समय के बाद मंत्री और उसके चालीसों
कुटुंबियों को टिकटियों के नीचे लाया गया और उनकी गर्दनों में रस्सी के फंदे डाल
दिए गए। वहाँ पर बड़ी भारी भीड़ जमा हो गई। बगदाद के निवासी मंत्री को उसके शील और
न्यायप्रियता के कारण बहुत चाहते थे। उन्हें उसकी मृत्यु पर बहुत शोक हो रहा था।
सैकड़ों लोग उसकी गर्दन में फंदा पड़ा देख कर रोने लगे। इस पर भी खलीफा का इतना
रोब था कि किसी का साहस मंत्री के मृत्यु दंड का विरोध करने का नहीं पड़ रहा था।
जब जल्लाद और उसके अधीनस्थ लोग फाँसियों
की रस्सियाँ खींचने को तैयार हुए तो भीड़ में से एक अत्यंत रूपवान युवक बाहर आया
और बोला,
'मंत्री और उसके परिवारवालों को छोड़ दिया जाए। स्त्री का हत्यारा
मैं हूँ। मुझे पकड़ लिया जाए।' मंत्री को अपनी प्राण रक्षा
की खुशी भी थी किंतु युवक की तरुणाई देख कर उसकी भावी मृत्यु से दुख भी हो रहा था।
इतने में एक लंबे-चौड़े डील-डौलवाला बूढ़ा आदमी भी निकल कर बोला, 'यह जवान झूठ बोलता है। इसने स्त्री को नहीं मारा। उसे मैंने मारा है। मुझे
दंड दो।'
फिर उस बूढ़े ने जवान अदमी से कहा कि
बेटे, तू क्यों इस हत्या की जिम्मेदारी ले रहा है, मैं तो
बहुत दिन संसार में रह लिया हूँ मुझे फाँसी चढ़ने दे। लेकिन जवान आदमी बात पर डटा
रहा कि यह बुजुर्गवार झूठी बातें कहते हैं, उस स्त्री को
मैंने ही मारा है।
खलीफा के सेवकों ने उससे जा कर कहा कि
अजीब स्थिति है,
एक बूढ़ा और जवान दोनों अपनी-अपनी जगह कह रहे हैं कि मैंने स्त्री
को मारा है। खलीफा ने कहा कि मंत्री के कुटुंबियों को छोड़ दो और मंत्री को
सम्मानपूर्वक यहाँ लाओ। जब ऐसा किया गया तो खलीफा ने कहा कि हमें बहुत झंझट में
पड़ने की जरूरत नहीं है, अगर दोनों ही हत्या की जिम्मेदारी
ले रहे हैं तो दोनों को फाँसी पर चढ़ा दो। किंतु मंत्री ने कहा कि निश्चय ही उनमें
से एक झूठ बोलता है, बगैर खोज-बीन किए किसी निरपराध को
मृत्यु दंड देना ठीक नहीं है।
अतएव उन दोनों को भी खलीफा के सामने लाया
गया। जवान ने भगवान की सौगंध खा कर कहा कि 'मैंने चार दिन हुए उस स्त्री का
वध किया था और उसकी लाश टुकड़े-टुकड़े करके संदूक में बंद नदी में डाल दी थी,
अगर मैं झूठ कहता हूँ तो कयामत के दिन मुझे अपमानित होना पड़े और
बाद में सदा के लिए नरक की अग्नि में जलूँ।' इस बार बूढ़ा
कुछ न बोला। खलीफा को विश्वास हो गया कि जवान ही हत्याकारी है। उसने कहा, 'तूने उस स्त्री को मारते समय न मेरा भय किया न भगवान का। और फिर जब तूने
यह कर ही लिया है तो अब अपराध स्वीकार क्यों करता है?' जवान
बोला, 'अनुमति मिले तो सारी कहानी सुनाऊँ। यह भी चाहता हूँ
कि यह कहानी लिखी जाए ताकि सबको सीख मिले।' खलीफा ने कहा 'ऐसा ही हो।'
जवान और मृत स्त्री की कहानी-अलिफ़ लैला
उस जवान ने कहा कि 'मृत
स्त्री मेरी पत्नी और इन वृद्ध सज्जन की बेटी थी और यह मेरे चचा हैं। ग्यारह वर्ष
पूर्व उससे मेरा विवाह हुआ था। हमारे तीन बेटे हैं जो जीवित हैं। मेरी पत्नी
अत्यंत सुशील और पतिव्रता थी। हर काम मेरी प्रसन्नता का करती थी और मैं भी उससे
बहुत प्रेम करता था। एक महीने पहले वह बीमार हुई। दो-चार दिन की दवा से वह अच्छी
हो गई और स्वास्थ्यसूचक स्नान के लिए तैयार हुई। लेकिन उसने कहा मैं बहुत अशक्त हो
गई हूँ, अगर तुम कहीं से मुझे एक सेब ला दो तो मैं ठीक हो
जाऊँगी वरना फिर बीमार पड़ जाऊँगी। मैं उसके लिए सेब लाने को बाजार गया किंतु वहाँ
एक भी सेब दिखाई न दिया। फिर मैं बागों में घूमा किंतु वहाँ भी किसी भी मूल्य पर
सेब न मिला। फिर मैंने घर आ कर कहा कि बगदाद में तो कहीं सेब मिले नहीं, मैं बसरा बंदरगाह जा रहा हूँ शायद वहाँ सेब मिल जाएँ।
'मैं बसरा जा कर शाही बागों से
चार-चार दीनारों के तीन सेब लाया और उन्हें ला कर अपनी पत्नी को दिया। वह बहुत खुश
हुई। उसने उन्हें सूँघ कर अपनी चारपाई के नीचे खिसका दिया और फिर आँख बंद करके लेट
रही। मैं बाजार गया और अपनी कपड़े की दुकान पर जा बैठा। कुछ देर में मैंने देखा कि
एक हब्शी गुलाम एक सेब उछालता जा रहा है। मुझे आश्चर्य हुआ कि इसे सेब कहाँ से
मिला, मैं तो बड़ी मुश्किल से बसरा से तीन सेब लाया हूँ।
मैंने हब्शी को बुला कर पूछा कि तुझे यह सेब कहाँ मिला। वह हँस कर बोला कि यह मुझे
मेरी प्रेमिका ने दिया है, उसका पति दो सप्ताह की यात्रा
करके बसरा के शाही बाग से तीन सेब लाया था जिनमें से एक उसने मुझे दे दिया।
'हब्शी ने यह भी कहा कि मैंने और
सुंदरी ने मिल कर भोजन आदि भी किया। हब्शी तो यह कह कर चला गया। यहाँ क्रोध से
मेरी बुरी हालत हो गई। मैं दुकान बंद करके घर गया और अपनी पत्नी के पास पहुँचा।
वहाँ देखा कि चारपाई के नीचे दो ही सेब हैं। मैंने उससे पूछा कि तीसरा सेब क्या
हुआ। उसने झुक कर सेबों को देखा और उपेक्षा से बोली कि मुझे नहीं मालूम कि तीसरा
सेब कहाँ गया। यह कह कर वह आँखें बंद करके लेट रही। मुझे विश्वास हो गया कि हब्शी
सच कहता था, इसका उससे अनुचित संबंध है और यह अचानक मुझे यहाँ
देख कर बहाना भी नहीं बना पा रही है। मैं क्रोध और अपमान भावना से अंधा हो गया और
मैंने तलवार निकाल कर अपनी पत्नी को टुकड़े-टुकड़े कर डाला।
'मैंने इस डर से कि कोई मुझे
हत्या के अभियोग में पकड़ न ले उसके शव को एक नारियल के पत्तों की बनी चटाई में
लपेट दिया और लाल डोरे से उस चटाई को बाँध दिया। फिर एक संदूक में उसे रख कर पीछे
के दरवाजे से संदूक ले कर निकला और उसे नदी में डाल दिया क्योंकि तब तक अँधेरा हो
गया था। लौट कर घर आया तो देखा कि बड़ा लड़का दरवाजे पर बैठा रो रहा है और दो
लड़के एक कोठरी में सो रहे हैं। मैंने लड़के से पूछा कि तू क्यों रो रहा है तो
उसने कहा कि आज दिन के समय आपके लाए हुए तीन सेबों में से एक को मैं चुपके से उठा
लाया था और दरवाजे पर आ कर उसे खाना ही चाहता था कि उधर से निकलते हुए एक हब्शी
गुलाम ने मेरे हाथ से सेब छीन लिया। मैंने उससे बहुत कहा कि यह सेब मेरी बीमार माँ
के लिए है, मेरा पिता दो सप्ताह की यात्रा कर बसरा के शाही
बागों से उसके लिए तीन सेब लाया है। उन्हीं में से यह है। गुलाम ने मेरी बात
अनसुनी कर दी और चल दिया। मैंने दौड़ कर उसे रोकने का प्रयत्न किया लेकिन उसने
मुझे मारपीट कर भगा दिया और स्वयं एक ओर भाग गया। मैं फिर उसके पीछे लगा लेकिन इस
बार उसे न पा सका। घंटों उसे ढूँढ़ने के बाद अभी वापस आया हूँ। आपको आते देखा तो
इस डर से रोने लगा कि सेब न मिलने पर आप मेरी माँ से नाराज होंगे। मैं आपसे हाथ
जोड़ कर कहता हूँ कि माँ से कुछ न कहिएगा, वह कुछ नहीं
जानती। यह कह कर लड़का फूट-फूट कर रोने लगा।
'यह सुन कर मेरे तो जैसे प्राण ही
निकल गए। मैंने अपनी सती-साध्वी पत्नी को झूठे संदेह पर मार डाला था। मैं दुख और
पश्चात्ताप के कारण अचेत हो गया। जब सचेत हुआ तो मैंने लड़के से कोठरी में जा कर
सो जाने को कहा और स्वयं एक एकांत स्थान पर बैठ कर दुख में निमग्न हो गया। मैं कभी
सिर पीटता कभी आँसू बहाता। मैं अपने को लाख बार धिक्कारता कि मूर्ख, तेरी बुद्धि क्या बिल्कुल भ्रष्ट हो गई थी कि तूने अपनी सुशीला और
पतिव्रता पत्नी को एक अनजान हब्शी गुलाम की बात पर विश्वास करके मार डाला और इतना
भी धैर्य न दिखाया कि इस बारे में पूछताछ कर लेता।
'मैं इसी शोक और पश्चात्ताप की
दशा में बैठा था कि उसी समय मेरा चचा अपनी पुत्री के स्वास्थ्य का हाल जानने के
लिए आया। मैंने उसे पूरा हाल बताया। उसने अपनी पुत्री की हत्या के बारे में मुझ से
कहा-सुनी या लानत-मलामत नहीं की बल्कि इसे विधि का विधान समझ कर केवल शोकाकुल हो
गया और रोने पीटने लगा। मैं भी इसके साथ रोने-पीटने लगा। लेकिन रोने-पीटने से क्या
होना था, मेरी पत्नी और इनकी पुत्री तो अब दुनिया में नहीं
रही। मैं तब से अत्यंत शोक संतप्त हूँ और किसी प्रकार चैन नहीं पा रहा हूँ। मैंने
सारा हाल सच्चा-सच्चा आपके आगे रख दिया। अब आप आज्ञा दें कि मुझे फाँसी पर चढ़ाया
जाए।'
खलीफा को सारा वृत्तांत बड़ा आश्चर्यजनक
लगा। किंतु जब बूढ़े आदमी ने भी इस बात की पुष्टि की तो उसने कहा, 'अगर
कोई व्यक्ति अनजाने अपराध करे तो वह मेरी और भगवान की दृष्टि में क्षमा योग्य हैं।
मैं इस आदमी की सत्यप्रियता और न्यायप्रियता से भी प्रसन्न हूँ कि इसने निरपराधों
को मृत्यु से बचाने के लिए स्वयं मृत्यु का आह्वान किया और अपना अपराध स्वीकार
किया। मृत्यु दंड का भागी वह गुलाम है जिसके झूठ के कारण ऐसी दुखद घटना हुई।
मंत्री महोदय, तुम अभी अपने को मुक्त न समझो। तुम्हें तीन
दिन के अंदर उस दुष्टात्मा को खोज लाना है जिसके कारण यह सब हुआ। तीन दिन में ऐसा
न कर सके तो तुम्हें फाँसी पर चढ़ना पड़ेगा।'
मंत्री ने सोचा कि एक बार मौत से छुटकारा
मिला तो वह दुबारा पीछे पड़ गई। वह रोता-पीटता घर आया। उसे विश्वास था कि अबकी बार
जान नहीं बच सकती क्योंकि लाखों गुलाम बगदाद में हैं, अभियुक्त
गुलाम कैसे मिलेगा। फिर उसने सोचा कि परमात्मा की दया से निराश न होना चाहिए। जिस
प्रकार अकस्मात ही उसने अनजान स्त्री के हत्यारे को प्रकट दिया वैसे ही संभव है कि
इस बार भी जान बच जाए।
किंतु इस बार भी निश्चित अवधि में वांछित
गुलाम नहीं मिला। मंत्री जाफर फाँसी पर चढ़ाने के लिए बुलाया गया। उसके संबंधी
उससे मिल कर रोने लगे। मंत्री की बच्चे खिलानेवाली सेविका मंत्री की एक पाँच-छह
बरस की बेटी को लाई। वह इस बच्ची को बहुत प्यार करता था।
मंत्री ने उन सिपाहियों से कहा कि मैं
चलने के पहले अपनी इस बच्ची को प्यार कर लूँ। उन्होंने अनुमति दे दी। मंत्री ने जब
बच्ची को उठा कर अपने सीने से लगाया तो उसके सीने में रखी हुई कोई चीज अड़ी।
मंत्री ने बच्ची के सीने के ऊपर देखा तो एक बँधी हुई गोल चीज महसूस हुई। मंत्री के
पूछने पर बच्ची ने बताया कि यह सेब है जिस पर शाही बाग की मुहर लगी हुई है।
यह पूछने पर कि यह तुम्हारे पास कहाँ से
आया बच्ची ने कहा कि मेरा हब्शी गुलाम, जिसका नाम रैहान है, लाया था और मैंने उससे चार सिक्कों में इसे खरीदा है। मंत्री ने सेब को
खोल कर देखा और उस पर शाही बाग की मुहर पाई तो गुलाम से डाँट कर पूछा कि तुझे यह
सेब कहाँ से मिला, क्या तूने मेरे बादशाह के महल में चोरी की
है? गुलाम ने हाथ जोड़ कर कहा, 'मैंने
इसे न आपके यहाँ से चुराया है न शाही महल से। मैं आपको सच्ची बात बता रहा हूँ। कुछ
दिन पहले मैं एक गली से निकला जहाँ एक घर के सामने तीन-चार बच्चे खेल रहे थे।
उनमें सब से बड़े लड़के के हाथ में यह सेब था। मैंने उससे छीन लिया। वह रोता हुआ
मेरे पीछे भागा और कहने लगा कि यह सेब मेरे पिता मेरी बीमार माता के लिए बहुत दूर
से लाए हैं, मैं इसे माता से बगैर पूछे उठा लाया हूँ,
तुम इसे दे दो। लेकिन मैंने सेब नहीं दिया और ला कर आपकी बेटी के
हाथ चार सिक्कों में बेच दिया।'
मंत्री को बड़ा आश्चर्य हुआ कि सेब का
चोर उसके घर ही का गुलाम है। चुनाँचे चुनाँचे वह अपने साथ उस गुलाम को ले गया और
सिपाहियों से कहा कि मुझे खलीफा के पास ले चलो। खलीफा के सामने जा कर उसने गुलाम
को खलीफा के सामने खड़ा कर दिया। खलीफा के पूछने पर गुलाम ने वही कहानी दुहराई।
खलीफा को यह अजीब किस्सा सुन कर हँसी आई किंतु उसकी अपराधी को मृत्युदंड देने की
इच्छा बनी हुई थी। उसने मंत्री से कहा, 'सारी दुखद घटना तुम्हारे गुलाम
के कारण हुई इसलिए यही मृत्युदंड का भागी है। इसे फाँसी पर चढ़ाओ ताकि लोगों को
शिक्षा मिले।'
मंत्री ने कहा कि आपका आदेश उचित है। यह
अभागा इसी योग्य है। किंतु यह हमारा पुराना गुलाम है। मैं आपको मिस्र के बादशाह के
मंत्रियों नूरुद्दीन अली और बदरुद्दीन हसन की कहानी सुनाना चाहता हूँ। यदि इससे
आपका मनोरंजन हो तो उसके बदले में कृपया गुलाम को इतना बड़ा दंड देने का आदेश वापस
ले लें। खलीफा ने कहानी सुनाने को कहा।
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