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देवी

 देवी


रात भीग चुकी थी। मैं बरामदे में खडा था। सामने अमीनुददौला पार्क नीदं में डूबा खड़ा था। सिर्फ एक औरत एक तकियादार वेंच पर बैठी हुंई थी। पार्क के बाहर सड़क के किनारे एक फकीर खड़ा राहगीरों को दुआएं दे रहा था। खुदा और रसूल का वास्ता......राम और भगवान का वास्ता..... इस अंधे पर रहम करो ।


सड़क पर मोटरों ओर सवारियों का तातां बन्द हो चुका था। इक्के–दुक्के आदमी  नजर आ जाते थे। फ़कीर की आवाज  जो पहले नक्कारखाने में तूती की आवाज थी अब  खुले मैदान की बुलंद पुकार हो रही थी ! एकाएक वह औरत उठी और इधर उधर चौकन्नी आंखो से देखकर फकीर के हाथ में कुछ रख दिया और फिर बहुत धीमे से कुछ  कहकर एक तरफ चली गयी। फकीर के हाथ मे कागज का टुकडा नजर आया जिसे वह बार बार मल रहा था। क्या उस औरत ने यह कागज दिया है ?


यह क्या रहस्य है ? उसके जानने के कूतूहल से अधीर होकर मैं नीचे आया और फकीर के पास खड़ा हो गया।


मेरी आहट पाते ही फकीर ने उस कागज के पुर्जे को दो उंगलियों से दबाकर मुझे दिखाया। और पूछा,- बाबा, देखो यह क्या चीज है ?


मैंने देखा– दस रुपये का नोट था ! बोला– दस रुपये का नोट है, कहां पाया ?


फकीर ने नोट को अपनी झोली में रखते हुए कहा-कोई खुदा की बन्दी दे गई है।


मैंने और कुछ नही कहा। उस औरत की तरफ दौड़ा जो अब अंधेरे में बस एक सपना बनकर रह गयी थी।


वह कई गलियों मे होती हुई एक टूटे–फूटे गिरे-पड़े मकान के दरवाजे पर रुकी, ताला खोला और अन्दर चली गयी।


रात को कुछ पूछना ठीक न समझकर मैं लौट आया।


रातभर मेरा जी उसी तरफ लगा रहा। एकदम तड़के मैं फिर उस गली में जा पहुंचा । मालूम हुआ वह एक अनाथ विधवा है।


मैंने दरवाजे पर जाकर पुकारा – देवी, मैं तुम्हारे दर्शन करने के लिए आया हूँ।  औरत  बहार निकल आयी। ग़रीबी और बेकसी की जिन्दा तस्वीर मैंने हिचकते हुए कहा- रात आपने फकीर को..................


देवी ने बात काटते हुए कहा– अजी वह क्या बात थी, मुझे वह नोट पड़ा मिल गया था, मेरे किस काम का था।


  मैंने उस देवी के कदमों पर सिर झुका दिया।

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