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भारत के गुरुकुल

*भारत के गुरुकुलों में सभी जाति/वर्ण के बच्चे पढ़ते थे, अंग्रेजों के द्वारा दिए आंकड़े इसके प्रमाण हैं* 

-भारत को कमज़ोर बनाने की अनेक चालें चलने वाले अंग्रेजों ने आंकड़े जुटाने और हमारी कमजोरी व विशेषताओं को जानने के लिए सर्वे करवाए थे। उन सर्वेक्षणों के तथ्यों और आज के झूठे इतिहास के कथनों में ज़मीन आसमान का अंतर है। 

-सन 1820 में एडम स्मिथ नामक अँगरेज़ ने एक सर्वेक्षण किया और एक सर्वेक्षण टी. बी. मैकाले ने 1835 करवाया था। 

- अंग्रेजों की आंकड़ों के मुताबिक तब भारत के विद्यालयों में औसतन 26% ऊंची जातियों के विद्यार्थी पढ़ते थे और 65% छोटी जातियों के छात्र थे। 

-मद्रास प्रेजीडेन्सी में तब 1500 (ये भी अविश्वसनीय है न) मेडिकल कॉलेज थे 
मेडिकल कालेजों के अधिकांश सर्जन नाई जाती के थे और इंजीनियरिंग कालेज के अधिकाँश आचार्य पेरियार जाती के थे। स्मरणीय है कि आज छोटी जाती के समझे जाने वाले इन पेरियार वास्तुकारों ने ही मदुरई आदि दक्षिण भारत के अद्भुत वास्तु वाले मंदिर बनाए हैं। 

-तब के मद्रास के जिला कलेक्टर ए.ओ.ह्युम (जी हाँ, वही कांग्रेस संस्थापक) ने लिखित आदेश निकालकर पेरियार वास्तुकारों पर रोक लगा दी थी कि वे मंदिर निर्माण नहीं कर सकते। इस आदेश को कानून बना दिया था। 

-ये नाई सर्जन या वैद्य कितने योग्य थे इसका अनुमान एक घटना से हो जाता है। सन 1781 में कर्नल कूट ने हैदर अली पर आक्रमण किया और उससे हार गया। हैदर अली ने कर्नल कूट को मारने के बजाय उसकी नाक काट कर उसे भगा दिया। भागते, भटकते कूट बेलगाँव नामक स्थान पर पहुंचा तो एक नाई सर्जन को उस पर दया आ गई। उसने कूट की नई नाक कुछ ही दिनों में बना दी। हैरान हुआ कर्नल कूट ब्रिटिश पार्लियामेंट में गया और उसने सबने अपनी नाक दिखा कर बताया कि मेरी कटी नाक किस प्रकार एक भारतीय सर्जन ने बनाई है। नाक कटने का कोई निशान तक नहीं बचा था। उस समय तक दुनिया को प्लास्टिक सर्जरी की कोई जानकारी नहीं थी। तब इंग्लॅण्ड के चकित्सक उसी भारतीय सर्जन के पास आये और उससे शल्य चिकित्सा, प्लास्टिक सर्जरी सीखी। उसके बाद उन अंग्रेजों के द्वारा यूरोप में यह प्लास्टिक सर्जरी पहुंची। 

*(मेरे कई मित्रों ने मेरा लेख व्हाट्सएप पर पाने के लिए मुझे इस नंबर 8527524513 पर मिस्ड कॉल तो किया है लेकिन मेरा ये नंबर दिलीप पांडे के नाम से सेव नहीं किया है इसीलिए उनको मेरे लेख नहीं मिल रहे हैं अगर वो मिस्ड कॉल के बाद नंबर भी सेव कर लेंगे तो उनको मेरे लेख जरूर मिलेंगे !)* 

-अब ज़रा सोचें कि भारत में आज से केवल 175 साल पहले तक तो कोई जातिवाद याने छुआ छूत नहीं थी। कार्य विभाजन, कला कौशल की वृद्धि, समृद्धि के लिए जातियां तो ज़रूर थीं पर जातियों के नाम पर ये घृणा, विद्वेष, अमानवीय व्यवहार नहीं था। फिर ये कुरीति कब और किसके द्वारा और क्यों प्रचलित की गई? हज़ारों साल में जो नहीं था वह कैसे हो गया? 

-अपने देश समाज की रक्षा व सम्मान के लिए इस पर खोज, शोध करने की ज़रूरत है। साथ ही बंद होना चाहिए ये भारत को चुन चुन कर लांछित करने के, हीनता बोध जगाने के सुनियोजित प्रयास। 

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