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रावण द्वारा माता सीता का हरण करके श्रीलंका जाते समय पुष्पक विमान का मार्ग क्या था..?

 


🔹रावण द्वारा माता सीता का हरण करके श्रीलंका जाते समय पुष्पक विमान का मार्ग क्या था..?

🔹उस मार्ग में कौनसा वैज्ञानिक रहस्य छुपा हुआ है?

🔹उस मार्ग के बारे में हज़ारो साल पहले कैसे जानकारी थी?


अंत तक जरुर पढ़िए इन प्रश्नों के उत्तर वामपंथी इतिहासकारों के लिए मृत्यु समान हैं, वैसे वह इतनी मोटी चमड़ी के हैं की उनके ऊपर कोई असर नहीं पड़ेगा🧵


रावण ने माँ सीताजी का अपहरण पंचवटी (नासिक, महाराष्ट्र) से किया और पुष्पक विमान द्वारा हम्पी (कर्नाटक), लेपक्षी (आँध्रप्रदेश) होते हुए श्रीलंका पहुंचा...


आश्चर्य होता है जब हम आधुनिक तकनीक से देखते हैं कि नासिक, हम्पी, लेपक्षी और श्रीलंका बिलकुल एक सीधी लाइन में हैं. अर्थात ये पंचवटी से श्रीलंका जाने का सबसे छोटा रास्ता है।


अब आप ये सोचिये कि उस समय Google Map नहीं था जो Shortest Way बता देता. फिर कैसे उस समय ये पता किया गया कि सबसे छोटा और सीधा मार्ग कौन सा है?


या अगर भारत विरोधियों के अहम् संतुष्टि के लिए मान भी लें कि चलो रामायण केवल एक महाकाव्य है, जो वाल्मीकि ने लिखा तो फिर ये बताओ कि उस ज़माने में भी गूगल मैप नहीं था तो रामायण लिखने वाले वाल्मीकि को कैसे पता लगा कि पंचवटी से श्रीलंका का सीधा छोटा रास्ता कौन सा है?


महाकाव्य में तो किन्ही भी स्थानों का ज़िक्र घटनाओं को बताने के लिए आ जाता, लेकिन ऐसा उसमें कुछ नहीं है,

 तो क्यों वाल्मीकि जी ने सीता हरण के लिए केवल उन्हीं स्थानों का ज़िक्र किया जो पुष्पक विमान का सबसे छोटा और बिलकुल सीधा रास्ता था?


ये ठीक वैसे ही है कि आज से 500 साल पहले गोस्वामी तुलसीदास जी को कैसे पता कि पृथ्वी से सूर्य की दूरी क्या है?

(जुग सहस्त्र योजन पर भानु = 152 मिलियन किमी - हनुमानचालीसा),

जबकि नासा ने हाल ही के कुछ वर्षों में इस दूरी का पता लगाया है. अब नासा ने बताया है तो मानना ही था ।

अब आगे देखिये...


पंचवटी वो स्थान है जहां प्रभु श्री राम, माता जानकी और भ्राता लक्ष्मण वनवास के समय रह रहे थे।


यहीं शूर्पणखा आई और लक्ष्मण से विवाह करने के लिए उपद्रव करने लगी। विवश होकर लक्ष्मण ने शूपर्णखा की नाक यानी नासिका काट दी. और आज इस स्थान को हम नासिक (महाराष्ट्र) के नाम से जानते हैं।

आगे चलिए...


पुष्पक विमान में जाते हुए सीताजी ने नीचे देखा कि एक पर्वत के शिखर पर बैठे हुए कुछ वानर ऊपर की ओर कौतुहल से देख रहे हैं तो सीता ने अपने वस्त्र की कोर फाड़कर उसमें अपने कंगन बांधकर नीचे फ़ेंक दिए, ताकि राम को उन्हें ढूढ़ने में सहायता प्राप्त हो सके।


जिस स्थान पर सीताजी ने उन वानरों को ये आभूषण फेंके वो स्थान था 'ऋष्यमूक पर्वत' जो आज के हम्पी (कर्नाटक) में स्थित है।


इसके बाद... वृद्ध गिद्धराज जटायु ने रोती हुई सीताजी को देखा, देखा कि कोई राक्षस किसी स्त्री को बलात अपने विमान में लेके जा रहा है।


जटायु ने सीताजी को छुड़ाने के लिए रावण से युद्ध किया. रावण ने तलवार से जटायु के पंख काट दिए।


इसके बाद जब राम और लक्ष्मण सीताजी को ढूंढते हुए पहुंचे तो उन्होंने दूर से ही जटायु को सबसे पहला सम्बोधन 'हे पक्षी' कहते हुए किया. और उस जगह का नाम दक्षिण भाषा में 'लेपक्षी' (आंधप्रदेश) है।


अब क्या समझ आया आपको?

•पंचवटी---हम्पी---लेपक्षी---श्रीलंका•

सीधा रास्ता, सबसे छोटा रास्ता, हवाई रास्ता अर्थात् उस जमाने में भी विमान होने के सबूत के रूप में समझ सकते हैं ,

मार्ग के लिये गूगल मैप का निकाला गया फोटो नीचे है।


अपने ज्ञान-विज्ञान, संस्कृति को भूल चुके भारतबन्धुओं रामायण कोई मायथोलोजी नहीं है।


ये महर्षि वाल्मीकि द्वारा लिखा गया सत्य इतिहास है. जिसके समस्त वैज्ञानिक प्रमाण आज उपलब्ध हैं।


इसलिए जब भी कोई वामपंथी हमारे इतिहास, संस्कृति, साहित्य को मायथोलोजी कहकर लोगों को भ्रमित करने का या खुद को विद्वान दिखाने का प्रयास करे तो उसको पकड़कर बिठा लेना और उससे इन सवालों के जवाब पूछना, एक का भी जवाब नहीं दे पायेगा। अब ये वामपन्थी 99 झूठ बोलकर 100वें झूठ को सत्य के रूप में मनवाने की सोच वाले लोग हैं तो सत्य बात से अलग होकर कुतर्क शुरू कर देते हैं, इस कारण आदतन वह ज़बरदस्ती गाल बजायेंगे ही तो बात करने की ज़रूरत ही क्या है ,बस हम सभी जो अपने को भारतमाता की सन्तान मानते हैं , उनकी अपनी समझ ठीक रहनी चाहिए ।


{ महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव की तैयारी में उत्तर महाराष्ट्र ज़ोन की मेरी ज़िम्मेदारी के अन्तर्गत नासिक में केन्द्र होने के कारण “पंचवटी” के उस स्थान पर जाने और देखने सुखद अवसर मिला, जहां लक्ष्मण जी ने सूर्पणखा की नाक काटी थी जिस कारण कुम्भ वाली इस नगरी का नाम नासिक पड़ा ।

    साथ ही पवित्र गोदावरी नदी के तट पर स्थापित और पूजित, काले पत्थर से निर्मित होने के कारण प्रसिद्ध 

“श्री कालेराम मन्दिर” में दर्शन पूजन का अवसर भी प्राप्त हुआ।

     उसमें ही इस घटना का विचार आया और उस सुखद अनुभूति को जो भारत की श्रेष्ठ विरासत ने हमे दी है, जो आज विज्ञान सम्मत तो है ही लेकिन हर भारतीय के विश्वास की प्रामाणिकता उससे बहुत आगे है और आज भी विज्ञान के शोधों में सिद्ध होते ऐसे प्रमाण हैं । उसे आधुनिक तर्को और तथ्यों के अंगीभूत रखते हुए कुछ के सहयोग से साभार प्रेषित कर रहे हैं }


🏹सत्य सनातन धर्म की जय🏹


साभार 

🙏

राम भक्त हनुमान। जय सियाराम।।

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