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वनस्पति_घी

 


#वनस्पति_घी

जून में मैं जब डालडा पड़ लेख लिख रहा था तो इस बात का तनिक भी आभास नहीं था कि सितंबर आते आते देश में इतनी बड़ी बहस घी और चर्बी वाले घी पर छिड़ जाएगी। हमने वह दौर देखा है जब वनस्पति घी जिसे एक ब्रांड डालडा के कारण पूरा देश और दुनिया जान गया उसमें मिलावट के बाद बड़ा हंगामा खड़ा हो गया था।90 के दशक तक वनस्पति घी रिफाइंड की जगह यूज होता था खासकर बिहार में। डालडा उसका ब्रांड था लेकिन वनस्पति घी डालडा के नाम से हैं लोगों के बीच में मशहूर हो गया था।  पकवान मिठाइयां समोसे जलेबी से लेकर घर में पराठा तक इसी में बनाया जाता था जमाना ब्लैक एंड व्हाइट टीवी से रंगीन टीवी की तरफ बढ़ रहा था। धारावाहिक रामायण के दौर से निकलकर हम सभी महाभारत में प्रवेश कर रहे थे। उसे जमाने में टेलीविजन पर खूब विज्ञापन आते थे उसमें खाने पीने वाले प्रसाद एंड प्रेशर कुकर अगरबत्ती और डालडा विज्ञापन सबसे ज्यादा होता था। वनस्पति घी के कई सारे ब्रांड बाजार में थे जो कई सारी वनस्पतियों से बनाए जाते थे उसे जमाने में हमने कहानी सुनी थी महुआ के पेड़ पर फूल के बाद फल लगता है जिसे कोईन बोलते है। इससे तेल निकलता है जो काफी मीठा होता है जमने के बाद वह भी डालडा जैसा हो जाता है। मीठा होने के कारण उसमें पूरा पकवान ही बनाए जाते थे नमकीन चीज नहीं पर डालडा में सब कुछ बनाया जाता था।भारत में कुछ साल पहले तक वनस्पति घी को सिर्फ डालडा के नाम से जाना जाता था क्योंकि उस समय इसके अलावा देश में दूसरा कोई वनस्पति घी इस्तेमाल नहीं किया जाता था. डालडा का इतिहास कम से कम 90 साल पुराना है. डालडा भारत में इस्तेमाल किया जाने वाला सबसे मशहूर वनस्पति घी का ब्रांड है. 90 सालों तक हिंदुस्तान यूनिलीवर का एक प्रसिद्ध ब्रांड रहने के बाद साल 2003 में कंपनी ने डालडा को BUNGE LIMITED कंपनी को बेच दिया था.डालडा की शुरुआत साल 1937 में हिंदुस्तान युनिलीवर ने की थी. भारत में डालडा का इतिहास आजादी से पहले का है. पिछले 90 साल से भारत में डालडा ब्रांड ने बाजार में अपनी मजबूत पकड़ बनाई हुई है. साल 1930 में नीदरलैंड की एक कंपनी वनस्पति घी का कारोबार करने के उद्देश्य से भारत आई थी जिसने यहां डाडा नाम से वनस्पति घी के ब्रांड की शुरुआत की.90 के दशक तक ‘डालडा’ भारत का नंबर वन ब्रांड बन चुका था. मार्किट में इसकी अपनी एक अलग पहचान थी. लेकिन 90 के दशक के अंत तक इसका व्यवसाय सिकुड़ने लगा. क्योंकि अन्य भारतीय कंपनियां भी ‘वनस्पति घी’ का विकल्प लेकर मार्केट में आ चुकी थीं. इस दौरान कुछ कंपनियों ने अफ़वाह फैलाई की ‘डालडा’ द्वारा ‘वनस्पति घी’ में चर्बी मिलाई जाती है. हालंकि, ये अफ़वाह मात्र ही रही.21वीं सदी की शुरुआत के साथ ही कई कंपनियों ने ‘वनस्पति घी’ के विकल्प के तौर पर ‘रिफ़ाइंड ऑइल’ की शुरुआत कर दी. इस दौरान मार्केट में भारी मात्रा में मूंगफली, सूरजमुखी, तिल, सोयाबीन आदि के ‘रिफ़ाइंड ऑइल’ आ गए जो उस वक़्त ‘डालडा’ की तुलना में सस्ते थे. इस दौरान ‘डालडा’ की विरोधी कंपनियों ने ऐसे विज्ञापन बनवाये जिसमें दिखाया गया कि ‘रिफ़ाइंड ऑइल’ की तुलना में ‘डालडा’ सेहत के लिए बेहद नुकसानदेह है

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