*🚩‼️ओ३म्‼️🚩*
*🕉️🙏नमस्ते जी🙏🕉️*
दिनांक - - ०७ फ़रवरी २०२५ ईस्वी
दिन - - शुक्रवार
🌓 तिथि -- दशमी ( २१:२६ तक तत्पश्चात एकादशी )
🪐 नक्षत्र - - रोहिणी ( १८:४० तक तत्पश्चात मृगशिर्ष )
पक्ष - - शुक्ल
मास - - माघ
ऋतु - - शिशिर
सूर्य - - उत्तरायण
🌞 सूर्योदय - - प्रातः ७:०६ पर दिल्ली में
🌞 सूर्यास्त - - सायं १८:०५ पर
🌓 चन्द्रोदय -- १२:५३ पर
🌓 चन्द्रास्त - - २७:४४ पर
सृष्टि संवत् - - १,९६,०८,५३,१२५
कलयुगाब्द - - ५१२५
विक्रम संवत् - -२०८१
शक संवत् - - १९४६
दयानंदाब्द - - २००
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*🚩‼️ओ३म्‼️🚩*
🔥 सृष्टी की सारी आयु
४,३२,००,००,००० ( चार अरब बत्तीस करोड़ ) वर्ष है। इसमें से १, ९६, ०८, ५३, १२५ का समय व्यतीत हो चुका है , ओर २, ३५, ९१, ४५, ८७५ इतना समय सृष्टि का अभी शेष है इसके बाद प्रलय काल है । सृष्टि के पश्चात प्रलय और प्रलय के पश्चात सृष्टि दिन और रात के रूप में हमेशा चला आ रहा है तथा चलता रहेगा। इसका कोई आरम्भ या अन्त नही है। प्रलय के समय प्रकृति परम सुक्ष्म परमाणुओं के रूप मे होती है। सृष्टि रचना के समय परमात्मा उनको बुद्धिपुर्वक मिलता है। सृष्टि की रचना करना, सृष्टि को धारण करना तथा फिर समय आने पर प्रलय करना यह सब सर्व सामर्थ्यवान् पूर्ण ज्ञानवान् परमेश्वर का ही काम है।परमेश्वर अपने सामर्थ्य को सार्थक करने के लिए तथा जीवों के उनके कर्मों के अनुसार यथायोग्य फल देने के लिए ही सृष्टि की रचना करता है।
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*🍀‼️आज का मंत्र‼️🍀*
*🌷 यथाऽल्पाऽल्पमदन्त्याधं वार्योकोवत्सषट्पदा;।*
*यथाऽल्पाऽल्पो ग्रहीतव्यो राष्ट्राद्राज्ञाब्दिक: कर:।।( मनुस्मृति )*
🌷 जैसे जोंक, बछड़ा और भौंरा थोड़े-थोड़े भोज्य पदार्थ को ग्रहण करते है।वैसे राजा प्रजा से थोड़ा-थोड़ा वार्षिक कर लेवे ।
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🔥विश्व के एकमात्र वैदिक पञ्चाङ्ग के अनुसार👇
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🙏 🕉🚩आज का संकल्प पाठ 🕉🚩🙏
(सृष्ट्यादिसंवत्-संवत्सर-अयन-ऋतु-मास-तिथि -नक्षत्र-लग्न-मुहूर्त) 🔮🚨💧🚨 🔮
ओ३म् तत्सत् श्री ब्रह्मणो दिवसे द्वितीये प्रहरार्धे श्वेतवाराहकल्पे वैवस्वते मन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे 【एकवृन्द-षण्णवतिकोटि-अष्टलक्ष-त्रिपञ्चाशत्सहस्र- पञ्चर्विंशत्युत्तरशततमे ( १,९६,०८,५३,१२५ ) सृष्ट्यब्दे】【 एकाशीत्युत्तर-द्विसहस्रतमे ( २०८१) वैक्रमाब्दे 】 【 द्विशतीतमे ( २००) दयानन्दाब्दे, काल -संवत्सरे, रवि- उत्तरायणे , शिशिर -ऋतौ, माघ - मासे, शुक्ल पक्षे, दशम्यां
तिथौ,
रोहिणी नक्षत्रे, शुक्रवासरे
, शिव -मुहूर्ते, भूर्लोके जम्बूद्वीपे, आर्यावर्तान्तर गते, भारतवर्षे भरतखंडे...प्रदेशे.... जनपदे...नगरे... गोत्रोत्पन्न....श्रीमान .( पितामह)... (पिता)...पुत्रोऽहम् ( स्वयं का नाम)...अद्य प्रातः कालीन वेलायाम् सुख शांति समृद्धि हितार्थ, आत्मकल्याणार्थ,रोग,शोक,निवारणार्थ च यज्ञ कर्मकरणाय भवन्तम् वृणे।
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