हिंदी धार्मिक कथा-बल्लाल की कथा
सच्ची निष्ठा
प्राचीन काल की बात है। सिन्धु देश की
पल्ली नगरी में कल्याण नाम का एक धनी सेठ रहता था। उसकी पत्नी का नाम इन्दुमती था।
विवाह होने के बहुत दिनों के बाद उनके पुत्र हुआ। उसके जन्मोत्सव में उन लोगों ने
अनेक दान-पुण्य किए, राग-रंग और आमोद-प्रमोद में पर्याप्त धन व्यय
किया। उसका नाम रखा गया बल्लाल वह उन दोनों के नयनों का तारा था।
“कितना मनोरम धन है!” सरोवर में
अपने समवयस्क बाल-गोपालों के साथ स्नान करते हुए बल्लाल ने अपने कथन का समर्थन
कराना चाहा। वह उन्हें नित्य अपने साथ लेकर पल्ली से थोड़ी दूर स्थित वन में आकर
सैर-सपाटा किया करता था। बालकों ने उसकी ‘हां-में-हां’ मिलाई.।
हिंदी धार्मिक कथा-बल्लाल की कथा
“चलो, हम
लोग भगवान विघ्नेश्वर श्रीगणेश की पूजा करें उनकी कृपा से समस्त संकट मिट जाते
हैं।” बल्लाल ने सरोवर के किनारे एक छोटे-से पत्थर को श्रीगणेश का श्रीविग्रह
मानकर बालकों को पूजा करने की प्रेरणा दी। उसने श्रीगणेश महिमा के सम्बन्ध में
अनेक बातें घर पर सुनी थीं।
लता-पत्र एकत्र कर बालकों ने एक मण्डप
बना लिया। उसमें तथाकथित श्रीगणेश-विग्रह की स्थापना करके-फूल, धूप,
दीप, नैवेद्य, फल,
ताम्बूल, दक्षिणा आदि से मानसिक पूजा आरम्भ
की। उनमें से कई एक पण्डितों का स्वांग बनाकर पुराणों और शास्त्रों की चर्चा करने
लगे। इस प्रकार श्रीगणेश की उपासना में उनका मन लग गया। वे दोपहर भोजन करने घर
नहीं आते थे, इसलिए दुबले हो गए। उनके पिताओं ने कल्याण सेठ
से कहा कि यदि बल्लाल का वन में जाना नहीं रोका गया तो हम राजा से शिकायत करके
आपको पल्ली नगरी से बाहर निकलवा देंगे। कल्याण का मन चिन्तित हो उठा।
“ये तो नकली गणेश हैं, बच्चो। असली गणेशजी तो हृदय में रहते हैं।” कल्याण ने बल्लाल को
समझाया।
“पिताजी, आप
जो कुछ भी कह रहे हैं, वह आपकी दृष्टि में नितान्त सच है पर
मेरी निष्ठा तो श्रीगणेश के इसी श्रीविग्रह में है। मैं पूजा नहीं छोड़ सकता।”
बल्लाल का इतना कहना था कि सेठ ने उसे
मारना आरम्भ किया अन्य बालक भाग निकले। सेठ ने मण्डप तोड़ डाला। बल्लाल को एक मोटे
से रस्से से पेड़ के तने में बांध दिया।
“यदि इस विग्रह में श्रीगणेश जी
होंगे तो तुम्हारा बन्धन खुल जाएगा। इस निर्जन वन में वे ही तुम्हारी रक्षा
करेंगे।” यह कहकर कल्याण ने घर का रास्ता लिया।
“निस्सन्देह श्रीगणेश जी ही
मेरे माता-पिता हैं। वे दयामय ही मेरी रक्षा करेंगे। वे विघ्न-विदारक, सिद्धिदायक, सर्वसमर्थ हैं। मैं उनकी शरण में अभय
हूं।” बल्लाल की निष्ठा बोल उठी। वह हृदय में करुणा का वेग समेटकर निर्निमेष
दृष्टि से श्रीगणेश के विग्रह को देखने लगा।
“मेरा तन भले ही बांधा जाए,
पर मेरा मन स्वतन्त्र है, मैं अपने प्राण
श्रीगणेश के चरणों में अर्पित करूंगा।” बल्लाल के इस निश्चय से पाषाण से श्रीगणेश
प्रकट हो गए।
“तुम्हारी निष्ठा धन्य है, वत्स।” श्रीगणेश ने उसका आलिङ्गन किया। वह बन्धनमुक्त हो गया। उसने अपने आराध्य की जी भर स्तुति की। गणेशजी ने अभय दान दिया और अन्तर्धान हो गए।
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