उपदेश से कर्म श्रेष्ठ है
गौतम बुद्ध को उनके अनुयायी यदि स्नेह से कहीं बुलाते थे, तो वे अवश्य जाते। फिर जब बुद्ध पहुँचते तो श्रोताओं की भारी भीड़ उमड़ पड़ती। बुद्ध के वचनों में जो अमृतत्व होता था, उसका पान करना सभी को प्रीतिकर लगता था। उनके उपदेशों में ऐसा कुछ अवश्य होता था, जिससे गंभीर समस्याएँ सुलझ जातीं और कुछ-न-कुछ सार्थक भी प्राप्त होता।
एक गरीब किसान गौतम बुद्ध का बहुत बड़ा भक्त था। एक दिन वह बुद्ध के पास आया, और अपने गाँव आने का आग्रह किया। बुद्ध उसके गाँव पहुँचे तो सारा गाँव उन्हें देखने व सुनने के लिए उमड़ पड़ा, किंतु वह किसान नहीं आया। हुआ यह कि उसी दिन किसान के बैलों की जोड़ी कहीं खो गई। किसान इस दुविधा में रहा कि बुद्ध का प्रवचन सुने या अपने बैलों को खोजे? काफी सोचने के बाद उसने अपने बैलों को खोजने का निर्णय किया। घंटों भटकने के बाद बैल मिले। थका-हारा किसान घर आया और भोजन कर सो गया। अगले दिन वह अति संकोच से क्षमाप्रार्थी बन बुद्ध के पास पहुँचा, तो वे बड़े स्नेह से बोले, "मेरी दृष्टि में यह किसान मेरा सच्चा अनुयायी है। इसने उपदेश से अधिक महत्त्व कर्म को दिया। यदि यह कल बैलों को न ढूँढ़ते हुए उपदेश सुनता, तो मेरी बातें इसकी समझ में नहीं आतीं, क्योंकि मन बैलों में अटका रहता। इसने कर्म को महत्त्व देकर प्रशंसनीय काम किया।
सार यह है कि हम जहाँ जिस भूमिका में हों, उसका ईमानदारी से निर्वाह करें, यही सच्ची आध्यात्मिकता है, क्योंकि प्रत्येक धर्म 'कर्म' को ही सर्वोपरि महत्त्व देता है।
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