महिला संत
की प्रेरणा
दक्षिण भारत की महिला संत औव्वैयार बचपन में ही अनाथ हो गई थीं । एक
सद्गृहस्थ संत ने, जो प्रभु
भक्ति के गीत रचते थे, उनका पालन-पोषण किया । अपने धर्मपिता के भक्ति गीतों ने औव्वैयार को भगवत्
भक्ति की प्रेरणा दी । दस वर्ष की आयु होते ही वे भी भक्ति गीतों की रचना करने
लगीं । अपने इष्ट देवता विघ्नेश्वर की पूजा उपासना में लीन रहतीं । कठोर तप और
साधना के बल पर उन्हें अलौकिक सिद्धि प्राप्त हुई ।
अनेक बीमार और दुःखी उनके पास पहुँचते, तो वे उन्हें जड़ी-बूटियों से निर्मित औषधि देतीं और भगवान् का
भजन करने और सात्त्विक जीवन जीकर निरोगी बनने की प्रेरणा देतीं । वे स्वयं गाँवों
और नगरों का भ्रमण कर लोगों को सदाचार का उपदेश देतीं । एक बार वे किसी गृहस्थ के
द्वार पर भिक्षा माँगने पहुंचीं। उन्होंने देखा कि पति पत्नी किसी बात पर झगड़ते
हुए एक - दूसरे को कटु वचन कह रहे हैं । यह देखकर वे वापस लौटने लगीं । गृहस्वामी
उन्हें पहचान गया और उनसे भोजन ग्रहण करने की प्रार्थना करने लगा ।
संत ने कहा, तुम दोनों
भविष्य में न लड़ने का संकल्प लो और प्रेम से रहना सीखो, मैं तभी भोजन करूँगी । क्रोध में आकर गालियाँ
देने वाले का भोजन मेरी बुद्धि को भ्रष्ट कर देगा । दोनों ने उनके चरणों में गिरकर
क्रोध त्यागने का संकल्प लिया ।
संत औव्वैयार ने असंख्य व्यक्तियों को दुर्व्यसनों से मुक्त कराकर धर्म के
मार्ग पर चलाया । उनहोंने कोन्नेर वेन्तन, अरने विचारम् जैसे लोकप्रिय ग्रंथ भी लिखे।
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