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मूर्ख कौन है ?

 

मूर्ख कौन है ?

श्रावस्ती में दो युवक कुसंग में पड़कर जेब काटने और लोगों को ठगने का धंधा करने लगे । वे किसी की जेब पर हाथ साफ करते और किसी दुःखी को देखते, तो तंत्र-मंत्र से सुखी बनाने का आश्वासन देकर ठग लेते थे। एक दिन उन्होंने काफी लोगों को बुद्ध के सत्संग - प्रवचन में जाते देखा । वे दोनों भी वहाँ जा पहुँचे। उनमें से एक के कान में जैसे ही बुद्ध के वचन पहुँचे, वह उस मधुर वाणी की ओर आकर्षित हो गया और चुपचाप बुद्ध का उपदेश सुनता रहा। दूसरे ने इस बीच कई श्रोताओं की जेब साफ कर दी । लौटते समय जेब काटने वाले ने साथी से पूछा, तेरे पल्ले क्या पड़ा ?

उसने कहा, मैंने भगवान् बुद्ध के उपदेश के कारण किसी की जेब नहीं काटी ।

__ यह सुनकर दूसरे ने व्यंग्य से कहा, अरे मूर्ख, तू उपदेश से प्रभावित होकर अपने को धर्मात्मा समझ रहा है । क्या अपना और परिवार का पेट उस उपदेश से भर पाएगा?

साथी के व्यंग्य भरे वाक्य भी उसे डिगा न सके और उसने उसका साथ छोड़ दिया । अगले दिन वह पुनः भगवान् बुद्ध का उपदेश सुनने जा पहुँचा। सत्संग के बाद तथागत को उसने दोस्त से मन- मुटाव और अपने पिछले दुष्कर्मों की जानकारी देते हुए पूछा, मुझे परिवार का काम चलाने के लिए क्या करना चाहिए ?

तथागत ने कहा, अपने हाथों का सदुपयोग कर मजदूरी करो । सात्त्विक जीवन जीओ। मूर्ख तुम नहीं हो, तुम्हारा कुकर्मी साथी है मूर्ख है । कुछ ही दिन बाद उसका साथी अपराध करता हुआ पकड़ा गया और जेल भेज दिया गया, जबकि उस संकल्पी व्यक्ति की गणना नगर के प्रतिष्ठित व्यक्तियों में होने लगी ।


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