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जब घर में ही पिता मौजूद होते हैं तो ईसाई, चर्च के पुजारी को फादर क्यों बोलते हैं ? कॉन्वेंट स्कूल में कॉन्वेंट शब्द का असली अर्थ समझना बहुत जरूरी है।*

*जब घर में ही पिता मौजूद होते हैं तो ईसाई, चर्च के पुजारी को फादर क्यों बोलते हैं ? कॉन्वेंट स्कूल में कॉन्वेंट शब्द का असली अर्थ समझना बहुत जरूरी है।* 

‘काँन्वेंट’ !  सब से  पहले तो  यह  जानना आवश्यक है  कि, ये शब्द आखिर आया कहाँ से है, तो आइये प्रकाश डालते हैं। 

ब्रिटेन  में एक कानून था, " लिव इन रिलेशनशिप " बिना किसी वैवाहिक संबंध के एक लड़का और एक लड़की का साथ में रहना,  तो इस प्रक्रिया के अनुसार  संतान भी पैदा हो जाती थी  तो उन संतानों  को किसी  चर्च में  छोड़  दिया जाता था। 

अब ब्रिटेन की सरकार के सामने यह गम्भीर समस्या हुई कि इन बच्चों का क्या किया जाए तब वहाँ की सरकार ने  काँन्वेंट खोले अर्थात्  जो बच्चे अनाथ होने के साथ-साथ नाजायज हैं , उनके लिए ये काँन्वेंट बने। 

उन अनाथ और नाजायज बच्चों को रिश्तों का एहसास कराने के लिए उन्होंने अनाथालयो में एक फादर एक मदर एक सिस्टर की नियुक्ति कर दी क्योंकि ना तो उन बच्चों का कोई जायज बाप है ना ही माँ है। तो काँन्वेन्ट बना नाजायज बच्चों के लिए जायज। 

इंग्लैंड में पहला काँन्वेंट स्कूल सन्  1609 के आसपास एक चर्च में खोला गया था जिसके ऐतिहासिक तथ्य भी मौजूद हैं और  भारत में पहला काँन्वेंट स्कूल कलकत्ता में सन् 1842 में खोला गया था। परंतु तब हम गुलाम थे और आज तो लाखों की संख्या में काँन्वेंट स्कूल चल रहे हैं। 

जब कलकत्ता में पहला कॉन्वेंट स्कूल खोला गया, उस समय इसे ‘फ्री स्कूल’ कहा जाता था, इसी कानून के तहत भारत में कलकत्ता यूनिवर्सिटी बनाई गयी, बम्बई यूनिवर्सिटी बनाई गयी, मद्रास यूनिवर्सिटी बनाई गयी और ये तीनों गुलामी के ज़माने की यूनिवर्सिटी आज भी इस देश में हैं। 

*(मेरे कई मित्रों ने मेरा लेख व्हाट्सएप पर पाने के लिए मुझे इस नंबर 8527524513 पर मिस्ड कॉल तो किया है लेकिन मेरा ये नंबर दिलीप पांडे के नाम से सेव नहीं किया है इसीलिए उनको मेरे लेख नहीं मिल रहे हैं अगर वो मिस्ड कॉल के बाद नंबर भी सेव कर लेंगे तो उनको मेरे लेख जरूर मिलेंगे !)* 

मैकाले ने अपने पिता को एक चिट्ठी लिखी थी बहुत मशहूर  चिट्ठी है। उसमें वो लिखता है कि “इन कॉन्वेंट स्कूलों से ऐसे बच्चे निकलेंगे जो देखने में तो भारतीय होंगे लेकिन दिमाग से अंग्रेज होंगे। इन्हें अपने देश के बारे में कुछ पता नहीं होगा। इनको अपने संस्कृति के बारे में कुछ पता नहीं होगा। इनको अपनी परम्पराओं के बारे में भी  कुछ पता नहीं होगा। इनको  अपने  मुहावरे  ही नहीं मालूम  होंगे, जब ऐसे बच्चे  होंगे  इस देश में तो अंग्रेज भले ही चले जाएँ इस देश से अंग्रेजियत नहीं जाएगी।” उस समय लिखी चिट्ठी की सच्चाई इस देश में अब साफ़-साफ़ दिखाई दे रही है और उस एक्ट की महिमा देखिये कि हमें अपनी भाषा बोलने में शर्म आती है, अंग्रेजी में बोलते हैं कि दूसरों पर रुवाब पड़ेगा। 

भारत देश में अब मूर्खता देखिए…  

जिनके जायज माँ बाप भाई बहन सब हैं, वो काँन्वेन्ट में जाते है तो क्या हुआ  एक बाप घर पर है और दूसरा काँन्वेन्ट में  जिसे फादर कहते हैं। आज जिसे देखो  काँन्वेंट खोल रहा है जैसे- "बजरंग बली काँन्वेन्ट स्कूल", माँ भगवती काँन्वेन्ट स्कूल"।  अब इन मूर्खो को  कौन समझाए कि,  भईया माँ भगवती  या बजरंग बली का काँन्वेन्ट से क्या लेना देना? 

दुर्भाग्य  की बात  यह है कि,  जिन चीजों का हमने त्याग किया अंग्रेजो ने वो सभी चीज़ों  को पोषित और संचित किया   फिर भी  हम  सबने उनकी त्यागी हुई गुलाम सोच को आत्मसात कर  गर्वित होने  का  दुस्साहस  किया।
आइए  आगे से  जब भी  हमसे   कोई  आश्रय  कॉन्वैंट स्कूल की बात  कहेगा या करेगा  तो  उसे उपरोक्त तथ्यों से परिचित अवश्य कराएंगे। 

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