आज से १३० वर्ष पूर्व संवत १९४९ में, द्वारका मठ के जगद्गुरु शङ्कराचार्यश्री ने स्वयं एक मठादेश जारी करके हिन्दुओं को चेताया था। मठादेश में कहा गया था कि *निरयण पञ्चाङ्ग धार्मिक रूप से ग्राह्य नहीं हैं क्योंकि उनसे व्रत पर्वों के निर्धारण में गम्भीर त्रुटि हो रही हैं।* मैंने आचार्यश्री का वह मूल आदेश पत्र, अब तक प्रकाशित,अपने लगभग सभी वैदिक पञ्चाङ्गों ( श्री मोहन कृति आर्ष पत्रकम्) में प्रकाशित किया हुवा है। पञ्चाङ्ग में प्रकाशित ये मठादेश देख सकते हैं और उसकी गणितीय और शास्त्रीय परख कर सकते हैं।
सन् १९५२ में भारत सरकार द्वारा बिठाई गयी कैलेण्डर रिफार्म कमेटी ने जो रिपोर्ट प्रस्तुत की है उस रिपोर्ट के पेज २६० पर लिखा है, *"निरयण पञ्चाङ्गों को जारी रखने वाले पञ्चाङ्गकार अगर यह समझते हैं कि वे हिन्दू जनता का धार्मिक मार्गदर्शन कर रहे हैं तो वे भ्रम में हैं। वास्तव में ऐसा करके वे सारे समाज को गुमराह कर रहे हैं और इसप्रकार उनको अधर्म की और ले जा रहे हैं।"* निरयण पञ्चाङ्गों की निरर्थकता की बात यथार्थतः इसलिए भी सही है क्योंकि वेद हमें ऋतुबद्ध पञ्चाङ्ग का मार्गदर्शन देते हैं जबकि *निरयण व्यवस्था का ऋतुबद्धता से दूर दूर तक कोई लेना देना नहीं है।*
भाटापाड़ा के सुप्रसिद्ध खगोलविद् , स्मृतिशेष डॉक्टर रहिमाल प्रसाद तिवारी ने सतर्क स्पष्ट किया है कि *निरयण प्रथा एक कुप्रथा है।* चूंकि निरयण नामसे कही गयी राशियों की क्रान्तिवृत्त में कोई स्थिति होती ही नहीं है इसी से कथित निरयण पञ्चाङ्ग पूरी तौर से अवैज्ञानिक और निराधार हैं। वे ऋतुवों का सही संज्ञान नहीं दे रहे हैं। सुप्रसिद्ध कश्मीरी ज्योतिर्विद स्मृतिशेष श्री अवतार कृष्ण कौल एवं उत्तराखण्ड से श्री भोला दत्त महतोलिया ( बहुत ही दुखद है कि इनका भी १८.१२. २०२२ को निधन हो गया है ) ने तो *निरयण पञ्चाङ्गों के मिथ्यात्व के स्वीकरण में अपने पञ्चाङ्गों को प्रकाशित करते रहना ही बन्द कर दिया था ।* मेरा सौभाग्य है कि भाटापाड़ा, छत्तीसगढ़ से सुप्रसिद्ध खगोल विद डॉक्टर रहिमाल प्रसाद तिवारी सहित उक्त तीनों वयोवृद्ध ज्योतिर्विदों का श्री मोहन कृति आर्ष पत्रकम् को पूर्ण समर्थन प्राप्त रहा है।
*कृषि प्रधान आर्यावर्त में वेदों का एक बहुत बड़ा विज्ञान है 'ऋतु दर्शन'।* इस अर्थ से भी संवत्सर को प्रजापति कहा गया है। *प्रजापतिर्वै संवत्सर:* क्योंकि वह हमें ऋतु क्रम देता है। ऋतुवें हमें घड़ी में लगे सचेतक समय (अलार्म) की तरह कृषि साधने की चेतना देती हैं। कृषि हमें अन्न देती हैं। *अन्नाद् भवन्ति भूतानि,* अन्न हमें जीवन और आयु देता है। *मुझे अति प्रसन्नता है कि कुछ बुद्धिजीवियों की चेतना अब इधर जाने लगी है कि यदि होली और दीपावली नवसस्येष्टि के त्यौहार हैं तो आज दीपावली एवं होली पर नई फसल का उत्पादन क्यों नहीं दिख रहा है? वस्तुतः उनको यह बात मालूम नहीं है कि आज ऋतुवें फसलों का नियमन नहीं कर रही हैं। आज तो मनुष्य और उनके ये भ्रान्त निरयण पञ्चाङ्ग, ऋतुओं का नियमन कर रहे हैं।* इसी से दीपावली, दीप अवली की तरह तो है पर नवसस्येष्टि का त्यौहार नहीं रह गया है। स्मरण रहे कि *'अवली'* का एक अर्थ 'पहले पहल खेत में काटा जाने वाला अन्न' भी होता है। अब आप समझ सकते हैं कि *मनमर्जी की ऋतुवें भला फसलों का नियमन कैसे करेंगी?*
मार्तण्ड पञ्चाङ्ग के विद्वान सम्पादक एवं स्वनाम धन्य श्री प्रियव्रत शर्मा ने इस बात को स्वीकार किया था कि हमारे वर्तमान पञ्चाङ्गों की मास गणना ऋतुओं से हटती जा रही है। इसी प्रकार काशी हिन्दू विश्व विद्यालय के पूर्व प्रोफेसर केदार दत्त जोशी जी का शुभ नाम अपने सुना होगा। उनकी पुस्तक ' मुहूर्त्तमार्तण्डः' की भूमिका से लिखे गए उनके वचन देखें -
"…… परन्तु खगोल ज्ञान शून्य आज के अनभिज्ञ पञ्चाङ्गकार सारणियों पर अशुद्ध पञ्चाङ्ग निकाल कर अपनी अज्ञानता के अहं को तुष्ट करने पर लगे हैं। *यथा मकर राशि पर सूर्य २१/२२ दिसम्बर को ही वेध से आता स्पष्ट प्रतीत होने पर भी १४ ,१५ जनवरी को ही मकर सङ्क्रान्ति पञ्चाङ्गों में करना कहाँ तक समीचीन है?* ………………… जब तक पञ्चाङ्ग शुद्ध ग्रह गणित से नहीं निकालेंगे तब तक फलित शास्त्र विश्वशनीय नहीं हो पायेगा। आज प्रायः सभी भारतीय पञ्चाङ्ग ग्रह गणित से अशुद्ध हैं। परम्परावादी सुधार करना भी नहीं चाहते। यदि अन्य सुधि जन इसका प्रयास करते भी हैं तो उन्हें इनके संगठित विरोध का सामना करना पड़ता है और उनका स्वर इनके स्वर के सामने दब जाता है।. …… "
आर्य -पर्वपद्धति के विद्वान लेखक स्वर्गीय पण्डित भवानी प्रसाद जी ने मकर सङ्क्रान्ति नाम से इस त्यौहार पर लिखा है, *"उत्तरायण के आरम्भ दिवस मकर की सङ्क्रान्ति* को भी अधिक महत्व दिया जाता है और स्मरणातीत चिरकाल से उस पर पर्व मनाया जाता है।" सभी सिद्धान्तकारों की भाषा में उन्होंने लिखा है, *"सूर्य की मकर राशि की सङ्क्रान्ति से उत्तरायण और कर्क सङ्क्रान्ति से दक्षिणायन प्रारम्भ होता है।*
ऋतुबद्ध पञ्चाङ्ग व्यवस्था में *'विषुव'* और *'अयन'*ही समस्त ऋतुवों के नियामक हैं। इन विन्दुओं (आज के ग्रेगोरी कैलेण्डर के अनुसार २१/२२ मार्च, २२/२३ सितम्बर, २१/२२ जून और २१/२२ दिसंबर ) से हटकर दिखाई गयी सङ्क्रान्तियां कपोल कल्पित हैं। सच्चाई ये है कि सूर्य कि क्रान्ति और भोगांश प्रकृतितः सुसम्बद्ध हैं। अन्योनाश्रित सम्बन्ध में हैं। क्रान्ति से भोगांश की और भोगांश से क्रान्ति की गणित की जासकती है किन्तु कथित निरयण भोगांश के साथ ये समन्वय दूर दूर तक भी सम्भव नहीं है सोचने की बात ये है कि अगर *एक भी सङ्क्रान्ति किसी भी महीने के २१ या २२वें दिनाङ्क में होगी तो बाकी बचे सभी ११ महीनों में से किसी भी महीने की सङ्क्रान्ति क्या कभी १३, १४ या १५वें दिनाङ्क में हो सकती है?* नहीं, कभी नहीं, कभी नहीं और कभी भी नहीं। मकर सङ्क्रान्ति के बाद का पहला शुक्ल पक्ष ही माघ शुक्ल होता है।अन्यथा स्थिति से लिया गया माघ शुक्ल वास्तविक माघ शुक्ल नहीं हो सकता। उलटे, वह सारे वर्ष के मास गणनाक्रम को ही भ्रष्ट कर देगा। यही है जो आज के पञ्चाङ्ग कर रहे हैं।
अस्तु, विचारणीय है कि अब, जब सही तौर पर सङ्क्रान्ति को ही नहीं लिया जायेगा तो क्या ऐसे लोग माघ शुक्ल को सही ले सकेंगे और यदि माघ शुक्ल गलत होगया तो ? क्या चैत्र शुक्ल या आश्विन शुक्ल आदि कोई भी चान्द्र मास सही ले सकेंगे ? नहीं, कभी नहीं और कभी भी नहीं। इसीलिये जब वास्तविक पितृपक्ष चल रहा होता है तो हमको उसकी सूचना ही नहीं हो पाती है। पितृपक्ष ही क्या, दशहरा, दीपावली, होली, गुरु पूर्णिमा आदि सब के सब त्यौहार ऐसे असूचित और अमान्य रह जाते हैं जिनकी वास्तविक तिथियों की सूचना हमको होती ही नहीं है। जब पितृ अमावस्या मनानी है तब हम वह नहीं मनाएंगे और जब दीपावली मनानी है तब आप दीपावली नहीं मनाएंगे। न पितरों के सगे रहे और न मां लक्ष्मी के ..... इसी प्रकार और भी !
वर्तमान में छप रहे, सारे के सारे पञ्चाङ्ग अशुद्ध हैं क्योंकि उनकी सौर मास गणना ऋतुबद्ध व क्रान्तिसिद्ध सङ्क्रान्तियों पर आधारित नहीं है जो कि वैदिक पञ्चाङ्ग की पहली आवश्यकता है। उनमें नक्षत्रों का परिमाप और उनकी संख्या भी गलत लिए जा रहे हैं,ये और एक अलग बात है।
*आज सभी प्रचलित पञ्चाङ्गों की अशुद्धि के कारण हम अपने व्रत पर्व और त्यौहार लगभग २४ दिन की गलती के साथ मना रहे हैं।* यही हाल रहा तो वक्त आएगा जब शिशिर में जन्माष्टमी, ग्रीष्म ऋतु में मकर सङ्क्रान्ति और वर्षा ऋतु में श्री राम नवमी मनेगी। अस्तु, मैं चेतावनी देता कि *यदि हम समय पर नहीं सुधरे तो हम सुधरने लायक भी नहीं रह जाएंगे। कुछ सोचेंगे आप? कब तक ?*
यदि हमारा परम पावनी, सनातन प्रवाही, वैदिक संस्कृति से जरा भी लगाव है तो ये सत्य आप को अवश्य स्वीकार करना पड़ेगा। आज नहीं, अभी। जी हां, अभी के अभी। स्वस्ति ओं शम्।
*आचार्य दार्शनेय लोकेश,*
सम्पादक एवं गणितकर्ता,
श्री मोहन कृति आर्ष पत्रकम् ( एक मात्र वैदिक पञ्चाङ्ग )
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