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जो प्रकाशमय प्रभु कोपाने की इच्छा मन मेंवह स्व:स्वरुप ईश्वर जागे हृदय-सदन मेंजो प्रकाशमय प्रभु को

English version is at the end
🙏 *आज का वैदिक भजन* 🙏 1243
*ओ३म् अ॒ग्निना॒ग्निः समि॑ध्यते क॒विर्गृ॒हप॑ति॒र्युवा॑ ।*
*ह॒व्य॒वाड्जु॒ह्वा॑स्यः ॥*
ऋग्वेद 1/12/6
जो प्रकाशमय प्रभु को
पाने की इच्छा मन में
वह स्व:स्वरुप ईश्वर 
जागे हृदय-सदन में
जो प्रकाशमय प्रभु को

बन जाए आत्मा ईंधन
अग्निस्वरुप प्रभु का
परमात्मा-रूप पाता
वह प्रकाश उस विभु का
अग्नि से अग्नि, होता 
प्रकाशमान हर क्षण में
जो प्रकाशमय प्रभु को

वो कवि है क्रान्तदर्शी 
रहता सदा युवा ही
अधिपति है वह ब्रह्माण्ड का
रहता सबल सदा ही
हव्यों को ग्रहण कराता
भक्तों के अन्तर्मन में
जो प्रकाशमय प्रभु को

स्तुत्य वाणी वेदवाक् से
पाते हैं भक्त ज्योति
अनुभूति प्रिय प्रभु की 
शुद्ध आत्मा में होती
अग्नि से अग्नि जागे
वैसे ही परमानन्द में
जो प्रकाशमय प्रभु को
पाने की इच्छा मन में
वह स्व:स्वरुप ईश्वर 
जागे हृदय-सदन में
जो प्रकाशमय प्रभु को
पाने की इच्छा मन में

*रचनाकार व स्वर :- पूज्य श्री ललित मोहन साहनी जी – मुम्बई*
*रचना दिनाँक :--*   २३.१.१९९७    ८.५० रात्रि

*राग :- पटदीप*
राग वेलावली(कर्नाटक संगीत में), गायन समय दिन का तीसरा प्रहर

*शीर्षक :- वह प्रभु कैसा है और हृदय में प्रकाशमान होता है* ८१८ वां वैदिक भजन

*तर्ज :- * अनुराग लाल गात्री (मलयालम) 


क्रान्तदर्शी = वह, जिसकी दृष्टि समय और काल के पार देख सकती हो, सर्वज्ञ परमेश्वर
विभु = सर्वव्यापक परमात्मा
हव्य = आहुति

*प्रस्तुत भजन से सम्बन्धित पूज्य श्री ललित साहनी जी का सन्देश :-- 👇👇*

वह प्रभु कैसा है और हृदय में प्रकाशमान होता है

अग्नि में अग्नि प्रकाशमान होता है, जोकि कवि-क्रान्तदर्शी है, दूरदर्शी है सर्वज्ञ है। वह ब्रहमा स्वरुप ग्रह का स्वामी है। सदा युवा है, स्तुति रूप हव्यों को वहन करने वाला है। जो वाणी से ज्ञान मई स्तुति का मुख द्वारा कहने का मुख्य साधन है। स्तुति रूप हव्यों को वहन करने वाला है।
जब कहा अग्नि से अग्नि प्रकाशमान होता है। इसका अर्थ यह है की अग्नि के संपर्क में आने से अग्नि के जो ७ गुण हैं वह आत्मा में प्रवेश हो जाते हैं और आत्मा भी अग्निमय हो जाती है।
१) ऊर्ध्वगमन=निरन्तर सत्कर्म द्वारा ऊंचाइयों को छूना
२) प्रकाश=चिन्तन और मनन द्वारा आत्मा को प्रकाश से युक्त करना।
३) तेज=जिस प्रकार अग्नि में तेज होता है उसी प्रकार अपनी आत्मा को तेजस्वी बनाना।
४) आत्मसात=अग्नि के संपर्क में आकर अग्नि से आत्मसात हो जाना। परमात्मा अग्नि स्वरूप हैं, जब आत्मा परमात्मा के स्वरूप का चिन्तन और मनन करती है, तब आत्मा में भी परमात्मा के गुण अवतरित होते हैं
५) विस्तार=अग्नि में यह गुण है कि उसका विस्तार होता है, अपने अग्निमय
 गुणों से, स्वयं प्रकाशित होकर, जन-जन को प्रकाशित करना। यह अग्नि का विस्तार है।
६) संघर्ष=अग्नि में संघर्ष का गुण है। संघर्ष या तप से ही अग्नि अपने परिणाम तक पहुंचती है। बादलों में भी संघर्ष होने से विद्युत पैदा होती है। उसी प्रकार अपने जीवन में सही संघर्ष करने से उत्तम परिणाम प्राप्त होता है।
७) परोपकार=अग्नि में जो कुछ आहूत होता है, वह आहुति कई गुना बढ़ाकर चारों ओर फैला देती है। इसी प्रकार आत्मा में अग्नि का स्वरूप आ जाने से आत्मा परोपकार के कार्यों में लग जाता है। और अपना और जन जन का भला करता है।
जिस प्रकार परमात्मा प्रकाशमान है। आत्मा को भी इन गुणों को प्राप्त कर, प्रकाशित होना चाहिए। आत्मा को सदा परमात्मा से हव्यरूप बनकर,आत्मसात होकर,उसके गुणों को ग्रहण करना चाहिए।
🕉👏ईश भक्ति भजन
भगवान ग्रुप 🙏🌹
          ............ 
 👇English version👇

🙏 *Today's vaidik bhajan* 🙏 1243
*om au॒gnina॒gnih sami॑dhyate ka॒virgru॒hap॑ti॒ryuva॑ ।*
*ha॒vya॒vadju॒hva॑syah ॥*
rigved 1/12/6

👇Vaidik bhajan👇

jo prakaashamaya prabhu ko
paane ki icchaa man men
vah sva:svaroop eeshwar 
jaage hridaya-sadan men
jo prakaashamaya prabhu ko

ban jaaye aatmaa eendhan
agniswaroop prabhu kaa
paramaatma-roop paataa
vah prakash us vibhoo kaa
agni se agni, hotaa 
prakashaman har kshan men
jo prakaashamaya prabhu ko

vo kavi hai kraantadarshi 
rahataa sadaa yuvaa hee
adhipati hai vah bramhaand kaa
rahataa sabal sadaa hee
havyon ko grahan karataa
bhakton ke antarman men
jo prakaashamaya prabhu ko

stutya vaani vedavaak se
paate hain bhakt jyoti
anubhooti priya prabhu ki 
shuddh aatmaa men hoti
agni se agni jaage
vaise hi paramaanand men
jo prakaashamaya prabhu ko
paane ki icchaa man men
vah sva:svarup ishwar 
jaage hridaya-sadan men
jo prakaashamaya prabhu ko
paane ki icchaa man men

 *Composer, instrumentalist and voice: Pujya Shri Lalit Mohan Sahni Ji – Mumbai* *Date of composition: 23.1.1997 8.50 pm *Raag: Patdeep* Raag Velavali (Carnatic music)  in), singing time third quarter of the day

*Title :- How is that Lord and shines in the heart* 818th Vedic hymn

*Tune :- *Anurag  Lol gaatree (Malayalam)

👇Meaning of bhajan👇

sire to attain the luminous Lord in the mind, that self-form of God awakens in the heart-house which becomes the luminous Lord.  The soul gets its fuel in the form of fire, finds the divine form of the Lord, the light of that universe, gets illuminated by the fire, becomes luminous in every moment, is a poet to the luminous Lord, always remains young, is the ruler of the universe, he remains strong, always makes the devotees accept the offerings.  Of  Those who find the luminous God in their inner self

Through the praise of the Vedas,

The devotee feels the light

Of the beloved God in his pure soul

Just as fire awakens from fire

In the same way,

The desire to find the luminous God

In the mind,

That God in his own form

Awakens in the heart

Who  There is a desire in the mind to find the luminous Lord. 
           ********
👇**Swadyaay-Message of Pujya Shri Lalit Sahni Ji related to the presented Bhajan :-- 👇👇*

What kind of God is he and who shines in the heart

Fire shines in fire, who is a poet-revolutionary, far-sighted and omniscient. He is the owner of the planet in the form of Brahma. He is always young, who carries the offerings in the form of praise. Who is the main means of saying praise based on knowledge through speech. He carries the offerings in the form of praise.

When it is said that fire shines from fire. It means that by coming in contact with fire, the 7 qualities of fire enter the soul and the soul also becomes fiery.

1) Urdhwagaman = Touching the heights by continuous good deeds

2) Prakash = Filling the soul with light through contemplation and meditation.

3) Tej = Just as there is Tej in fire, similarly make your soul radiant.

 4) Assimilation=Coming in contact with fire and getting assimilated by it. God is the form of fire, when the soul contemplates and meditates on the form of God, then the qualities of God are incarnated in the soul as well.

5) Expansion=Fire has this quality that it expands, by illuminating itself with its fiery qualities, illuminating everyone. This is the expansion of fire.

6) Struggle=Fire has the quality of struggle. Fire reaches its result only through struggle or penance. Electricity is produced due to struggle in the clouds as well. Similarly, by doing the right struggle in your life, you get good results.

7) Altruism=Whatever is offered in the fire, it increases that offering many times and spreads it all around. Similarly, when the soul acquires the form of fire, the soul gets involved in the works of charity. And does good to itself and to everyone.

Just as God is luminous, the soul should also attain these qualities and become illuminated.  The soul should always become an offering to God, assimilate Him and imbibe His virtues.

🕉👏Eesh Bhakti Bhajan
By Bhagwan Group 🙏🌹

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