दुनिया के हर इक मुद्दे पर गला फाड़ चिल्लाने वालों
जीभ टूट कर कहीं गिरी है या फिर आँखें फूट गईं हैं
हम जिनको नायक कहते हैं, वे सारे अभिनेता चुप हैं
स्याही सूख गई है शायद, गीतों के 'विक्रेता' चुप हैं
बुद्धिजीवियों की मेधा को शायद लकवा मार गया है
लगता है कविधर्म आज फिर स्वार्थ सिद्धि से हार गया है
गाल - बाल पर, चाल - ढाल पर अपनी कलम चलाने वालों
'टाइप करना' भूल गये हो या फिर बाँहें टूट गईं हैं
यह बर्बरता देख, तुम्हारा हृदय कभी रोता तो होगा
कहो! अहिंसक और नपुंसक में अंतर होता तो होगा
भाई का चारा बन जाने को रहते तैयार हम्ही हैं
नित्य घट रही घटनाओं के शायद ज़िम्मेदार हम्ही हैं
फूहड़ फ़िल्मी गानों पर ही अपनी कमर हिलाने वालों
रामायण - गीता पढ़ते हो या वे पीछे छूट गईं हैं
कब तक यह कह कर टालोगे, 'ये सब तो होता रहता है'
एक पक्ष है लगा काम पर, एक पक्ष सोता रहता है
हम तटस्थ ही रहे सदा पर अब मन में आक्रोश भरा है
हमको ज्ञान न देना साहब! अभी हमारा ज़ख़्म हरा है
'शठे शाठ्यम समाचरेत' का पावन मंत्र भुलाने वालों
ये घटनायें आज हमारे स्वाभिमान को लूट गई है।
0 Comments
If you have any Misunderstanding Please let me know