🕉️🙏ओ३म् सादर नमस्ते जी 🙏🕉️
🌷🍃 आपका दिन शुभ हो 🍃🌷
दिनांक - -१७ नवम्बर २०२४ ईस्वी
दिन - - रविवार
🌖 तिथि -- द्वितीया ( २१:०६ तक तत्पश्चात तृतीया )
🪐 नक्षत्र - - रोहिणी ( १७:२२ तक तत्पश्चात मृगशिर्ष )
पक्ष - - कृष्ण
मास - - मार्गशीर्ष
ऋतु - - हेमन्त
सूर्य - - दक्षिणायन
🌞 सूर्योदय - - प्रातः ६:४५ पर दिल्ली में
🌞 सूर्यास्त - - सायं १७:२६ पर
🌖चन्द्रोदय -- १८:३३ पर
🌖 चन्द्रास्त - - ८:१८ पर
सृष्टि संवत् - - १,९६,०८,५३,१२५
कलयुगाब्द - - ५१२५
विक्रम संवत् - -२०८१
शक संवत् - - १९४६
दयानंदाब्द - - २००
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🚩‼️ओ३म्‼️🚩
दुष्कर्मों के और कुविचारों के जो कुसंस्कार मन पर जमते हैं वे एक प्रकार से विषैली पर्तों के रूप में चेतन मस्तिष्क और अचेतन चित्त पर जमते रहते हैं। ये मन की चंचलता, उद्विग्नता, अस्थिरता, आवेग, विक्षोभ आदि के रूप में फूटते हैं और व्यक्ति को अर्ध पागल जैसा बना देते हैं। वह किसी काम को एकाग्रचित होकर नहीं कर पाता और हर घडी उधेडबुन में ही लगा रहता है। फलस्वरूप पग-पग पर उसे असफलता मिलती है और ठोकरें लगती हैं। असंतुलित व्यवहार से वह रूष्ट और असंतुष्ट होकर असहयोगी, विरोधी और अपराधी बन जाता है। परिवार और समाज में सभी से कलह करने का अभ्यस्त व्यक्ति हर घडी विक्षुब्ध बना रहता है। न तो मस्तिष्क ठीक प्रकार से सोच पाता है, न कोई सही रास्ता मिलता है। शरीर से रूग्न और मन से विक्षुब्ध व्यक्ति जीवित रहते स्वयं नरक भोगता है और सामाजिक वातावरण को भी दूषित करता है।
व्यसन और मृत्यु में व्यसन अधिक कष्टदायक होता है। व्यसनों में अलिप्त व्यक्ति मरकर भी सुख प्राप्त करता है पर दुर्व्यसनों में फंसा हुआ व्यक्ति प्रति पल मरता रहता है। और अधोगति को प्राप्त होता है। निर्व्यसनता मनुष्य की शोभा का कारण होती है। जो व्यक्ति मादक द्रव्यों का सेवन नहीं करता उसे निश्चित रूप से नशा करने वालों से अच्छा समझा जाएगा। मांसाहार न करने वाला व्यक्ति मांसा हारी की अपेक्षा श्रेष्ठ समझा जाएगा। जुआरी की अपेक्षा जुआ न खेलने वाला ही सम्मान व प्रतिष्ठा पाता है।
दुराचारों, दुष्कर्मों और दुर्व्यसनों में उलझा हुआ व्यक्ति अपने पतन का कारण तो बनता ही है, समाज के प्रति भी घोर अपराध करता है। उसके कारण समाज में अराजकता और अशांति फैलती है और न जाने कितने लोगों के जीवन पर भी उसका दुष्प्रभाव पडता है। व्यभिचार और बलात्कार से पीडित व्यक्ति को आजीवन मानसिक यातना भुगतनी पडती है।
जहां ये सब दुर्व्यसन समाज के प्रति अपराध हैं वहां मांसाहार जीव जगत के प्रति अपराध है। यह मनुष्य को जंगली और अशिष्ट बनाता है और बुद्धि को मलिन करता है। मांसाहार से मनुष्य के हृदय से दया का भाव दूर हो जाता है। यह उसकी शारीरिक, मानसिक, आत्मिक तथा बौद्धिक उन्नति को रोककर अवनति की ओर ले जाता है अतः इसे वर्जित समझना चाहिए। संसार भर में जितने भी महापुरूष हुए हैं वे सभी शाकाहारी रहे हैं और उन्होने मांसाहार की भरपूर निंदा की है। मांसाहार अहिंसा को त्याग कर ही किया जा सकता है। हमारे ऋषियों ने सदैव ही अहिंसा की महिमा का बखान किया है। महाभारत ( आदि पर्व ) में ऋषि ने स्पष्ट कहा है 'अहिंसा परमोधर्मः सर्वप्राणभूतां वर।' किसी भी प्राणी को न मारना ही परम धर्म है। अहिंसा से बढकर दूसरा कोई धर्म नहीं है।
समाज एवं जीव जगत के इन अपराधियों को, मानवता के विरोधियों को उचित दंड अवश्य मिलना चाहिए। ऐसी दुष्प्रवृत्तियों को जड से उखाड फेंकने के उपक्रम हम सभी को करने चाहिए तभी हम सामाजिक उत्तरदायित्व को भली प्रकार निभा सकेंगे।
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🕉️🚩 आज का वेद मंत्र 🕉️🚩
🌷ओ३म् अग्निरस्मि जन्मना जातवेदा घृतं मे चक्षुरमृतं मऽआसन्।अर्कस्त्रधातू रजसो विमानोऽजस्रो घर्मो हविरस्मि नाम॥ यजुर्वेद १८-६६॥
💐 अर्थ :- अग्नि मुझ में जन्म से है, और मैं इस प्रारंभिक ज्ञान से निरंतर ज्ञान प्राप्त करता रहूं। मेरे चक्षु(घृत) प्रकाश ग्रहण करने वाली हो, मेरी वाणी मधुर हो। मेरा मन आराधना के लिए हो, मेरा मस्तिष्क ज्ञान के लिए हो, और शरीर उत्तम कर्मों के लिए हो। 'हे ईश्वर, मेरे ज्ञान में वृद्धि करो और मेरी वाणी को मधुर करो।
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🔥विश्व के एकमात्र वैदिक पञ्चाङ्ग के अनुसार👇
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🙏 🕉🚩आज का संकल्प पाठ 🕉🚩🙏
(सृष्ट्यादिसंवत्-संवत्सर-अयन-ऋतु-मास-तिथि -नक्षत्र-लग्न-मुहूर्त) 🔮🚨💧🚨 🔮
ओ३म् तत्सत् श्रीब्रह्मणो द्वितीये प्रहरार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे 【एकवृन्द-षण्णवतिकोटि-अष्टलक्ष-त्रिपञ्चाशत्सहस्र- पञ्चर्विंशत्युत्तरशततमे ( १,९६,०८,५३,१२५ ) सृष्ट्यब्दे】【 एकाशीत्युत्तर-द्विसहस्रतमे ( २०८१) वैक्रमाब्दे 】 【 द्विशतीतमे ( २००) दयानन्दाब्दे, काल -संवत्सरे, रवि- दक्षिणायने , हेमन्त -ऋतौ, मार्गशीर्ष - मासे, कृष्ण पक्षे , द्वितीयायां
तिथौ, रोहिणी
नक्षत्रे, रविवासरे
, शिव -मुहूर्ते, भूर्लोके जम्बूद्वीपे, आर्यावर्तान्तर गते, भारतवर्षे भरतखंडे...प्रदेशे.... जनपदे...नगरे... गोत्रोत्पन्न....श्रीमान .( पितामह)... (पिता)...पुत्रोऽहम् ( स्वयं का नाम)...अद्य प्रातः कालीन वेलायाम् सुख शांति समृद्धि हितार्थ, आत्मकल्याणार्थ,रोग,शोक,निवारणार्थ च यज्ञ कर्मकरणाय भवन्तम् वृणे
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