🚩‼️ओ३म्‼️🚩
दिनांक - - २६ दिसम्बर २०२४ ईस्वी
दिन - - गुरूवार
🌘 तिथि -- एकादशी ( २४:४३ तक तत्पश्चात द्वादशी )
🪐 नक्षत्र - - स्वाती ( १८:०९ तक विशाखा )
पक्ष - - कृष्ण
मास - - पौष
ऋतु - - हेमन्त
सूर्य - - उत्तरायण
🌞 सूर्योदय - - प्रातः ७:१२पर दिल्ली में
🌞 सूर्यास्त - - सायं १७:३२ पर
🌘चन्द्रोदय -- २७:४८ पर
🌘 चन्द्रास्त १३:५२ पर
सृष्टि संवत् - - १,९६,०८,५३,१२५
कलयुगाब्द - - ५१२५
विक्रम संवत् - -२०८१
शक संवत् - - १९४६
दयानंदाब्द - - २००
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🚩‼️ओ३म्‼️🚩
🔥 कोई वस्तु परमात्मा से मांगने से पहले उस वस्तु को प्राप्त करने के लिए उसके अनुसार प्रयत्न करना आवश्यक है ।विधार्थी परमात्मा से प्रार्थना करे कि वह उसे परीक्षा में पास कर दे , तो विधार्थी का कर्तव्य है कि वह परीक्षा की तैयारी पूरी मेहनत से करे ।
हम ईशवर से प्रार्थना करे कि वह हमें तीक्ष्ण बुद्धि दे तो उस के लिए हमें भी ऐसे यत्न करने चाहिए जिससे बुद्धि तीक्ष्ण हो - खान, पान, ब्रहचर्य का पालन, अच्छी- अच्छी पुस्तकों का पढ़ना आदि ।यदि हम स्वयं प्रयत्न न करे और ईशवर से मांगते रहें तो हमें कुछ नहीं मिलेगा । जो ईशवर के सहारे आलसी बन कर बैठे रहते है , उन्हें कुछ प्राप्त नहीं होता , क्योंकि ईशवर की पुरूषार्थ करने की आज्ञा है ।
ईशवर उसी की सहायता करता है जो अपनी सहायता आप करता है जो बैठा हुआ गुड़-गुड़ करता रहे, उसे गुड़ प्राप्त नहीं होता ।जो उस के लिए प्रयास करता है उसे कभी न कभी गुड़ अवश्य ही मिल जाता है ।
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तिलेषु तैलं दधिनीव सर्पिराप: स्रोत: सु अरणीषु चाग्नि:।
एवमात्मात्मनि गृहाते ऽसौ सत्येनैनं तपसयोऽ नुपश्यति ।। ( श्वेताश्वतर उपनिषद् )
💐अर्थ :- जैसे तिलों में तेल , दही में घी, झरणों मे पानी और अरणी नाम की लकड़ी में आग रहती है । और तिलों को पीलने से, दही को बिलोने से , और अरणीयों को रगड़ने से ये प्रकट होते है ।वैसे ही जीवात्मा में परमात्मा रहता है और वह वहीं मिलता है ।सत्य और तप से उसे जाना जा सकता है ।
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🔥विश्व के एकमात्र वैदिक पञ्चाङ्ग के अनुसार👇
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🙏 🕉🚩आज का संकल्प पाठ 🕉🚩🙏
(सृष्ट्यादिसंवत्-संवत्सर-अयन-ऋतु-मास-तिथि -नक्षत्र-लग्न-मुहूर्त) 🔮🚨💧🚨 🔮
ओ३म् तत्सत् श्रीब्रह्मणो द्वितीये प्रहरार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे 【एकवृन्द-षण्णवतिकोटि-अष्टलक्ष-त्रिपञ्चाशत्सहस्र- पञ्चर्विंशत्युत्तरशततमे ( १,९६,०८,५३,१२५ ) सृष्ट्यब्दे】【 एकाशीत्युत्तर-द्विसहस्रतमे ( २०८१) वैक्रमाब्दे 】 【 द्विशतीतमे ( २००) दयानन्दाब्दे, काल -संवत्सरे, रवि- उत्तरायणे , हेमन्त -ऋतौ, पौष - मासे, कृष्ण पक्षे, एकादश्यां
तिथौ,
स्वाती नक्षत्रे, गुरुवासरे
, शिव -मुहूर्ते, भूर्लोके जम्बूद्वीपे, आर्यावर्तान्तर गते, भारतवर्षे ढनभरतखंडे...प्रदेशे.... जनपदे...नगरे... गोत्रोत्पन्न....श्रीमान .( पितामह)... (पिता)...पुत्रोऽहम् ( स्वयं का नाम)...अद्य प्रातः कालीन वेलायाम् सुख शांति समृद्धि हितार्थ, आत्मकल्याणार्थ,रोग,शोक,निवारणार्थ च यज्ञ कर्मकरणाय भवन्तम् वृणे
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