यह संसार अंधे मनुष्यों के हाथ हिरे के समान है, बड़े नासमझ जन यहा रहते हैं, अपनी नादानी में अपना तो नुकसान करते ही हैं, अपने साथ अपनी पुरी प्रजाति के साथ बहुत घटिया मजाक करते हैं।
यहा ना समझी बहुत बड़ी है, आधी उम्र यह समझने में ही व्यतित हो जाती है कि हमे यहां संसार में क्यों उत्पन्न किया गया है, जीवन लक्ष्य मिल गया तो उसे पाने की दौड़ शुरु होती है। लक्ष्य पाते पाते हाथ से यह जीवन खीसक जाता है।
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