आरती भगवान श्रीशंकर
जयति जयति जग-निवास, शंकर सुखकारी ॥
अजर अमर अज अरूप, सत चित आनंदरूप,
व्यापक ब्रह्मस्वरूप, भव! भव-भय-हारी ॥ जयति०॥
शोभित बिधुबाल भाल, सुरसरिमय जटाजाल,
तीन नयन अति विशाल, मदन-दहन-कारी ॥ जयति०॥
भक्तहेतु धरत शूल, करत कठिन शूल फूल,
हियकी सब हरत हूल, अचल शान्तिकारी ॥ जयति०॥
अमल अरुण चरण कमल, सफल करत काम सकल,
भक्ति-मुक्ति देत विमल, माया-भ्रम-टारी ॥ जयति०॥
कार्तिकेययुत गणेश, हिमतनया सह महेश,
राजत कैलास-देश, अकल कलाधारी ॥ जयति०॥
भूषण तन भूति व्याल, मुण्डमाल कर कपाल,
सिंह-चर्म हस्ति खाल, डमरू कर धारी ॥ जयति०॥
अशरण जन नित्य शरण, आशुतोष आर्तिहरण,
सब बिधि कल्याण-करण, जय जय त्रिपुरारी ॥ जयति०॥
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