अंतरिक्ष – क्या है अंतरिक्ष ? : भाग 1
अंतरिक्ष क्या है, भाग -1
हम सब लोग इस पृथ्वी पर रहते है और अपनी दुनियाँ के बारे में हमेशा सोचते भी रहते है जैसे- सामानों, कारों, बसों, ट्रेनों और लोगो के बारे में भी। लगभग सारे संसार मे हमारी रोजमर्रा की जिंदगी के सभी चीज हमारे आसपास ही मौजूद है किसी बड़े महानगर जैसे- न्यूयॉर्क, मुम्बई, दिल्ली इन भीड़-भाड़ वाले शहरों में तो ये सभी सामान से भरे पड़े है। फिर भी, हमारे रोजमर्रा के जिंदगी के सभी चीजों के आसपास ही कुछ और भी है जो काफी महत्वपूर्ण है और बहुत अधिक रहस्यमय भी है। वो है स्थान(Space)। वही स्थान जहाँ सब सामान मौजूद है हम आप से लेकर सबकुछ तक। हम जिस स्थान के बारे में बात कर रहे है इसे महसूस करने के लिए एक पल के लिए रुककर आप कल्पना करें। क्या होगा यदि यह सब सामान को हटा दिया जाय मेरा मतलब यह है कि सभी लोगो, कारो, बसों, ट्रेनों, इमारतों यहाँ तक कि पृथ्वी, सभी बड़े छोटे ग्रहों, तारो और आकाशगंगाओ तक को हटा दिया जाय और तो और न सिर्फ बड़े सामानों को बल्कि छोटी से छोटी चीजो जैसे गैसों और धूल के अंतिम परमाणुओं तक को हटा दिया जाय तो वास्तव में क्या बचेगा ?
हममे से अधिकांश लोगों का जवाब होगा “कुछ भी नही”।
यह जवाब सही भी है लेकिन दूसरे तरीके से इसे देखे तो यह जवाब गलत भी है। क्या खाली है खाली स्थान ? खाली स्थान भी कहीं खाली हो सकता है ? जैसा कि हमलोग सोचते है और हमे पता भी चलता है कि रिक्त स्थान का मतलब कुछ भी नही है लेकिन वास्तव में यह रिक्त स्थान ही अपनी छिपी हुई विशेषताओं के साथ बहुत कुछ है जो कि हमारे रोजमर्रा के जीवन के लिए सभी चीजों के साथ हमारे आसपास ही मौजूद है। जब बात अंतरिक्ष(स्पेस, रिक्त स्थान) की होती है तो हम ज्यादातर लोग आसमान को ओर निहारने लगते है जबकि वास्तव में अंतरिक्ष तो आपके आसपास सभी जगह मौजूद ही है यहाँ तक कि आपके पैरों के नीचे भी। अंतरिक्ष वास्तव में एक सत्य है जो सभी जगह मौजूद है आप अंतरिक्ष को मोड़ सकते है इसे लहरेदार बना सकते है इसे सिकोड़ सकते है फैला भी सकते है। अंतरिक्ष इतना वास्तविक है कि यह खाली स्थान ही हमारे आसपास की दुनियां में सबकुछ को आकार देने में मदद करता है और हमारे ब्रह्माण्ड को फैब्रिकेटेड(Fabricated) बनाता है।
शिकागो विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर और भौतिकविद् क्रैग होगन(Craig Hogan) का कहना है कि
आप इस दुनियां के बारे में कुछ नही समझ सकते जबतक की आप अंतरिक्ष को नही समझते हो क्योंकि इस दुनियां में उसके सामानों के साथ -साथ दुनियां का स्थान भी विद्यमान है।
मेरीलैंड विश्वविद्यालय के भौतिकविद् प्रोफ़ेसर एस जेम्स गेट्स जेआर(S.James Gates, Jr) कहते है:
हम आमतौर पर अंतरिक्ष के बारे में बहुत सचेत नही होते लेकिन मैं फिर भी लोगो को बताता हूँ शायद मछली भी पानी के प्रति सचेत नही होती जबकि उसे हर समय उसमे ही रहना है।
फर्मी राष्ट्रीय त्वरक प्रयोगशाला के भौतिकवैज्ञानिक जोसफ लयकेन(Joseph Lykken) का कहना है:
हमारी नजर से अंतरिक्ष कुछ भी नही है लेकिन वास्तव में इसके अंदर बहुत कुछ हमेशा चल रहा होता है।
हममे से ज्यादातर लोगों के दिमाग मे जो अंतरिक्ष की छवि होती है वो बाहरी अंतरिक्ष के बारे में होती है एक ऐसी जगह जो हमसे दूर है बहुत दूर लेकिन अंतरिक्ष तो सब जगह मौजूद है। आप कह सकते है अंतरिक्ष ब्रह्माण्ड में सबसे प्रचुर मात्रा में मौजूद है यहाँ तक की सबसे छोटी चीजो जैसे- परमाणुओं, आपके और मेरे मूल तत्व और हमारे चारों ओर की दुनियां में जो कुछ भी हम देखते वो लगभग पूरी तरह से खाली स्थान ही है। यदि आप किसी बड़ी इमारत जैसे एम्पायर स्टेट बिल्डिंग को तोड़कर किसी परमाणु के अंदर डाल दे और उस परमाणु में रिक्त स्थान न बचने दे तो यह पूरी बिल्डिंग एक चावल के दाने से भी छोटी आकर में समा जाएगी लेकिन इस चावल के दाने का वजन पूरी बिल्डिंग के वजन के बराबर होगा। इससे आप अनुमान लगा सकते है कि सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में कितनी खाली जगह मौजूद है।
अब सवाल उत्पन्न होता है कि वास्तव में स्पेस क्या है ?
हम आपको अंतरिक्ष की तस्वीर तो दिखा सकते है लेकिन आपको अंतरिक्ष दिखेगा क्या ? सिर्फ रिक्त स्थान। जब अंतरिक्ष मे खाली स्थान के अलावा कुछ दिखता ही नही तो आप अंतरिक्ष को कैसे समझ सकते है ?
लियोनार्ड सुसकिंड(Leonard Susskind) स्टैनफ़ोर्ड विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक है उनके अनुसार अंतरिक्ष क्या है इसे समझने के वजाय
- अंतरिक्ष ऐसा क्यों है ?
- अंतरिक्ष तीन आयामी क्यो है ?
- अंतरिक्ष बड़ा क्यों है ?
- हमारे चारों ओर घूमने के लिए बहुत सारी खाली जगह क्यों मौजूद है ?
- अंतरिक्ष छोटा क्यों नही है ?
इन सारे प्रश्नों पर विचार करना ज्यादा महत्वपूर्ण है लेकिन इन चीजों के बारे में हममे कोई आम सहमति नही है।
एलेक्स फिलिपेन्को(Alex Filippenko) कैलिफ़ोर्निया विश्वविद्यालय(वर्कले) इनके अनुसार अंतरिक्ष क्या है ? हम वास्तव में अभी तक पुर्णतः जान नही पाये है। एस जेम्स गेट्स जेआर के अनुसार अंतरिक्ष भौतिकी के सबसे गहन रहस्यों में से एक है।
लेकिन सौभाग्य से, हम पूरी तरह अंधेरे मे भी नही है हम सदियों से अंतरिक्ष के बारे में जानकारी इकट्ठा करने में लगे है। हम जल्द ही यह जानने लगे है कि कोई भी वस्तु अंतरिक्ष के माध्यम से कैसे आगे बढ़ पाता है। इसे समझने के लिए आप रिंग पर स्केटिंग(Sketting) करती हुई एक युवती पर नजर डाले। यह युवती पूरी रिंग भर में कलाबाजियां दिखा रही है। वह अपने चारों ओर निर्विरोध गति कर रही है जब वह युवती गोल-गोल घूमने लगती है तो वह देखती है कि उसके आसपास की सारी चीजें घूम रही है वह इसे महसूस भी कर रही है। जब वह अपनी बाँह को फैला देती है तो उसे लगता है कि यह स्पेस उसे बाहर की तरफ खिंच रहा है यहाँ वास्तव में सिर्फ वो युवती ही स्पिन नही कर रही है यहाँ अंतरिक्ष भी उसके साथ स्पिन कर रहा होता है। एक पल के लिए आप यह कल्पना करे यह युवती किसी रिंग में नही बल्कि अंतरिक्ष मे स्केटिंग कर रही है उसका दायरा अब बढ़कर सम्पूर्ण आकाशगंगा हो गया है। उसके आसपास कुछ भी नही सिर्फ अंतरिक्ष को छोड़कर वह सिर्फ खाली स्थान में स्केटिंग कर रही है। यहाँ भी यह युवती बाँहे फैलाने पर वह बाहर की ओर खिंचाव महसूस करेंगी लेकिन वो युवती जानती है कि वो सिर्फ स्केटिंग कर रही है। लेकिन अगर खाली स्थान कुछ नही है तो वह स्केटिंग किस माध्यम से कर रही है ? अगर आप भी स्केटिंग कर रहे है तो आपको बाहर की ओर देखने पर सिर्फ सामानों के अलावा कुछ नही दिखेगा लेकिन आप जानते है आपके आसपास खाली स्थान मौजूद है यही खाली स्थान आपको स्केटिंग करने की अनुमति दे रहा है। आप कह सकते है कि किसके साथ स्केटिंग कर रहा हूँ कुछ तो ऐसा है जो मैं देख नही पा रहा हूँ लेकिन मेरी स्केटिंग उसके माध्यम से ही हो रही है। अंतरिक्ष को समझने और इन जटिल सवालो के जवाब देने की कोशिश वैज्ञानिक काफी समय से कर रहे है। नई जानकारियां और विशेषताओं को आपसे साझा भी कर रहे है यह वैज्ञानिक आपको अंतरिक्ष की बिल्कुल नई तस्वीर दिखा रहे है।
जब आप किसी थियेटर या सिनेमाघरों में जाते है तो अभिनेता, अभिनेत्री, दृश्यावली या कहानी देखते है और शायद प्रोडक्शन कंपनी, थियेटर, फ़ाइल फुटेज भी। लेकिन यहाँ कुछ और भी महत्वपूर्ण है जिसका उल्लेख न तो फ़िल्म की कहानी में मिलेगा न ही अपने कभी ध्यानपूर्वक नोटिस किया होगा। वो है…मंच…शो का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा।
फिर भी हममे से अधिकांश लोग इसपे ज्यादा विचार नही करते परंतु एक व्यक्ति था जिसने इसपर सर्वप्रथम अपने विचार रखा था नाम..सर आइजैक न्यूटन(Sir Issac Newton)। उन्होंने जो अंतरिक्ष का चित्रण किया था उसके अनुसार अंतरिक्ष सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में एक खाली स्थान के रूप में है जो सबकुछ के लिए एक रूपरेखा तैयार करता है अंतरिक्ष वो खाली स्थान है जहाँ ब्रह्माण्ड अपना नाटक खेलता है। न्यूटन के अनुसार स्पेस पूर्ण शाश्वत और अपरिवर्तनीय(Unchangeable) है। आपके द्वारा किया गया कोई भी कार्य अंतरिक्ष को प्रभावित नही कर सकता और अंतरिक्ष भी आपके कार्य को प्रभावित नही कर सकता। इस प्रकार न्यूटन ने जो अंतरिक्ष का चित्रण किया वह हमारी दुनियां का वर्णन करने में तो सक्षम था क्योंकि इससे पहले कभी ऐसा सोचा नही गया था। उनके इस अपरिवर्तनीय सिद्धान्त ने हमे लगभग सभी अंतरिक्षीय प्रस्तावों को समझने की अनुमति तो दे दी जो हमलोग अपने चारों ओर देखते है जैसे कि सेब का पेड़ से गिरने से लेकर पृथ्वी की सूर्य का चक्कर लगाने तक। न्यूटन के इन नियमो ने इतनी अच्छी तरह से काम किया कि आज भी हम उपग्रहों के प्रक्षेपण से लेकर एयरप्लेन के लैंडिंग तक इन नियमो का प्रयोग करते है। अंतरिक्ष वास्तविक है हालांकि आप उसे देख नही सकते, छू नही सकते लेकिन प्रत्येक भौतिक चीज के लिए यह जरूरी है।
हम सब वाक़ई रंगमंच की कठपुतलियाँ हैं। हमारे सामने लोग सड़कों पर चल रहे हैं, गाड़ियाँ दौड़ रही हैं। बच्चे स्कूल जा रहे हैं, लोग दफ़्तर। रेलगाड़ियाँ पटरियों पर सरक रही हैं, हवाई जवाज़ आसमान में। सूर्य गगन में उगता दिख रहा है, चन्द्रमा भी। अब तनिक पृथ्वी छोड़िए और अन्तरिक्ष में जाकर ठहर जाइए।अगर किसी आम व्यक्ति से आप अन्तराल की अवधारणा पूछें, तो खाली जगह बताएगा। वह खाली जगह, ‘जिसमें’ सभी छोटी-बड़ी घटनाएँ हो रही हैं। लोग ‘खाली जगह’ पाते हैं, तो चलते हैं। गाड़ियाँ ‘खाली जगह’ में दौड़ती हैं। ट्रेनें और हवाई जहाज़ ‘खाली स्थान’ पाकर ही आगे बढ़ते हैं। और थोड़ा कुरेदने पर कि क्या यह ‘खाली स्थान’ सचमुच खाली है, तो कह देते हैं कि है तो, लेकिन इसमें हवा मौजूद है।
और फिर अन्तरिक्ष में जो ‘खाली स्थान’ है, वह क्या है ? वहाँ तो बहुत जगहों पर धूल-गैस है, लेकिन ज़्यादातर जगह वह भी नहीं। तो उसका खालीपन कैसे समझा जाए ? और फिर समय क्या है ? क्या सबके लिए समय एक-सा ही है ? क्या ब्रह्माण्ड में हर स्थान पर समय एक-सा ही बर्ताव करेगा ? ब्रह्माण्ड में कहीं रुके हुए या अलग-अलग गतियों से चलते व्यक्तियों के लिए समय का ‘गुज़रना’ कैसा होगा ?
अगर सर आइज़ेक न्यूटन से इन प्रश्नों के उत्तर पूछे जाते, तो वे कुछ-कुछ ऐसा ही जवाब देते। उनके अनुसार ब्रह्माण्ड का हर पिण्ड(मनुष्य-जीवजन्तु-पेड़पौधे-खगोल पिण्ड) रंगमंच की कठपुतलियाँ ही हैं। और रंगमंच ? वह एकदम स्थिर और तटस्थ रहता है। सभी पात्रों के लिए समय एक-सा बीतता है और नाटक ख़त्म हो जाता है। न्यूटन से अगर आइंस्टाइन मिले होते तो न्यूटन से जरूर पूछते कि रंगमंच की कठपुतलियों के कारण मंच पर कोई प्रभाव पड़ता है ? क्या मंच इन कठपुतलियों के कारण फैल या सिकुड़ सकता है ? हालांकि इन प्रश्नों का उत्तर वे ‘ना’ में देते। न्यूटन के अनुसार रंगमंच, जो कि नाटक के पात्रों के लिए एक रेफ़रेंस फ़्रेम है, किसी के होने या न होने से ‘बदलता’ या ‘प्रभावित’ नहीं होता। वह यथावत् बना रहता है।
हममें से ज़्यादातर लोग गुरुत्व को और ब्रह्माण्ड को न्यूटनीय दृष्टि से ही समझते हैं। हम सोचते हैं कि सेब पृथ्वी पर गिरता है क्योंकि इनके बीच में कोई अदृश्य बल की डोरी है जिस कारण पृथ्वी सेब को अपनी ओर खींच लेती है। लेकिन क्या सेब पृथ्वी को अपनी ओर नहीं खींच रहा, सत्य यह है कि सेब भी पृथ्वी को अपनी ओर खींच रहा है। बल्कि सत्य यह है कि सेब और पृथ्वी दोनों एक-दूसरे को अपनी ओर खींच रहे हैं। सेब पृथ्वी पर गिर रहा है, लेकिन पृथ्वी भी सेब पर गिर रही है। गुरुत्व का यह बल परस्पर है, दोनों पिण्डों को एक-दूसरे के समीप ला रहा है। लेकिन फिर सेब और पृथ्वी के ‘होने’ से, जहाँ वे स्थिर हैं, वहाँ कोई प्रभाव पड़ रहा है ? ‘वहाँ’ यानी अन्तराल या खाली जगह में ? अब यह अधिकांश को चकराने वाली बात लगेगी। लेकिन वास्तविकता वह नहीं है, जो न्यूटन हमें बताते हैं। बल्कि न्यूटन का बताया गुरुत्व-ज्ञान हमारे लौकिक जगत् के लिए व्यावहारिक तो है, पर अधूरा है। इसीलिए न्यूटनीय भौतिकी से हम रोज़मर्रा के जीवन में गेंद-सेब-बस-आदमी-जैसी चीज़ों की गति और स्थिति समझ सकते हैं, किन्तु दो तरह के पिण्डों के मामले में न्यूटन हमें गच्चा दे जाते हैं और भौतिकी के उनके नियम असत्य सिद्ध हो जाते हैं। वे दो तरह के पिण्ड, बहुत छोटे(एलेक्ट्रॉन-प्रोटॉन-न्यूट्रॉन) व बहुत बड़े पिण्ड ग्रह-तारे-गैलेक्सी हैं। यहाँ न्यूटन की समझ से बातें नहीं घटतीं, कुछ और ही ढंग-ढर्रा काम करता है। न्यूटन का यह सिद्धान्त बड़ा हिट हुआ 200 साल से अधिक समय तक इस सिद्धान्त का वर्चस्व बना रहा लेकिन 20वी सदी के शुरुआती दशकों में एक युवा क्लर्क ने अपनी बिल्कुल नई विचारो से अंतरिक्ष के इस चित्रण को ही बदल कर रख दिया। वो था स्विस पेटेंट कार्यालय में क्लर्क की नौकरी करनेवाला एक युवा, नाम – अलबर्ट आइंस्टाइन(Albert Einstein)।
अलबर्ट आइंस्टाइन जिन्होंने हमें बताया कि रंगमंच कोई तटस्थ और स्थिर स्थान नहीं, वह भी फैलता और सिकुड़ता है। समय भी हर पात्र के लिए एक-सा नहीं बीतता, वह अलग-अलग लोगों के लिए अलग-अलग दर से बीत सकता है। न्यूटन से अगर आइंस्टाइन मिलते तो यही कहते कि आपने सेब का गिरना देखा और समझा, लेकिन सेब के चारों और धँस रहे काल और अन्तराल के समन्वय को न देख पाये।
फिलॉसफर भी अंतरिक्ष की प्रकृति पर बहुत लंबे समय से बहस करते आ रहे है लेकिन न्यूटन के इस अपरिवर्तनीय सिद्धान्त ने उनके बहस के शर्तों को ही बदल कर रख दिया शायद इसलिए न्यूटन को आधुनिक विज्ञान का जनक कहा जाता है। 1800 के दशक के उत्तरार्द्ध में पूरा विज्ञान जगत विधुत धारा(Electric power) से बड़े शहरों को प्रकाश देने में लगा रहा था इस घटनाओं में कुछ ने आइंस्टीन को बड़ा प्रभावित किया था अब आइंस्टीन सिर्फ कुछ शहरों को प्रकाश बल्ब या स्ट्रीट लाइट ही नही बल्कि संपूर्ण विश्व को प्रकाश की प्रकृति से अवगत करनेवाले थे। प्रकाश की यह अजीब विशेषता न्यूटन के अंतरिक्ष की तस्वीर को अब गिराने वाली थी।
इसे अच्छी तरह समझने के लिए हम एक कैब(Cab) की यात्रा पर आपको ले चलते है। मैं अब एक कैब में हूँ मेरी कैब लगभग 20 मील/घण्टे की रफ्तार से चल रही है। मैं अपनी कैब की रफ्तार को और बढ़ा रहा हूँ आप इस गति के बदलाव को महसूस कर सकते है और अपनी कैब की स्पीडोमीटर(Speedometer) पर देख भी सकते है। आपके कैब का स्पीडोमीटर आपके लिए एक गति संकेत है आप अपनी कैब की रफ्तार को बढ़ा भी सकते है या घटा भी सकते है। अब आप कल्पना करे कि आपके पास एक और स्पीडोमीटर है जो प्रकाश की गति को भी माप सकता है। आपने अपनी कैब की हेडलाइट जलाई आपका स्पीडोमीटर संकेत 671,000,000 मील/घण्टे की माप कर रहा है। एक सिद्धान्त हमे बताता है कि जब कैब चलनी शुरू करती है तो प्रकाश की गति को भी आखिरकार बढ़नी ही चाहिये क्योंकि कैब की गति प्रकाश को अतिरिक्त पुश दे रहा है। लेकिन आश्चर्य की बात है ऐसा नही हो रहा वास्तव में प्रकाश की गति सभी के लिए समान ही है। मेरी कैब चलती रहे या रुकी रहे मेरा हेडलाइट प्रकाश स्पीडोमीटर हमेशा 671,000,000 मील/घण्टे की गति को ही दर्शाता रहेगा। यहाँ सवाल उत्पन्न होता है कि
- क्यों प्रकाश की गति सभी के लिए एक समान ही है ?
- प्रकाश की गति में परिवर्तन क्यों नही हो रहा है ?
आइंस्टीन ने इस असाधारण पहेली का जवाब खोज निकाला था। जैसा कि हमसब जानते है गति समय के साथ स्थान परिवर्तन है। आइंस्टीन ने कहा अंतरिक्ष और समय अलग-अलग नही है दोनों एक है और एक साथ काम करते है। आप प्रकाश की गति को मापेगे तो हमेशा आपको प्रकाश की गति एक समान ही मिलेगी चाहे आप किसी भी गति से यात्रा क्यों न कर रहे हो। प्रकाश की गति की गुणवत्ता एवं उसकी गति सीमा की रक्षा के लिए समय अपनी रफ्तार को धीमा करने लगता है और अंतरिक्ष गति की दिशा में सिकुड़ने लगता है। मतलब स्पष्ट था, वास्तव में अंतरिक्ष और समय बहुत लचीला है लेकिन हमें कभी इसका आभास नही होता केवल इसलिए कि हम रोजमर्रा के जीवन मे इतनी तेज गति से कभी भी यात्रा नही करते। यदि मैं अपनी कैब को प्रकाश के गति के समीप ले जाऊ तो यह प्रभाव अब बिल्कुल भी छिप नही सकता।
मान लीजिये मेरी कैब अब प्रकाश गति के समीप की गति से यात्रा कर रही है यदि आप सड़क के किनारे खड़े होकर मेरी कैब को देख रहे है तो आप क्या देखेगे ?? आपको मेरी कैब सिर्फ एक इंच लंबी दिखाई देगी क्योंकि आपके नजर में मेरा स्पेस सिकुड़ गया है। यदि आप किसी तकनीक से मेरी घड़ी को देख पा रहे है तो आपको मेरी घड़ी बहुत धीमी या लगभग रुकी हुई मालूम पड़ेगी। लेकिन मेरे परिपेक्ष्य से कैब के अंदर, न केवल मेरी घड़ी सामान्य दर से चल रही है बल्कि अंतरिक्ष भी बिल्कुल सामान्य है अर्थात उसमे कोई बदलाव नही आया है। जब मैं कैब के बाहर देखता हूँ तो सभी जगहों को बेतहाशा समायोजन होते हुए देख रहा हूँ यहाँ भी प्रकाश गति सीमा की रक्षा हो रही होती है क्योंकि प्रकाश गति सबके लिए समान ही होनी चाहिये। आइंस्टीन के अनुसार, समय और अंतरिक्ष न तो कठोर है न ही निरपेक्ष इसके वजाय वे एकत्रित होकर एक एकल इकाई बनाते है जिसे उन्होंने “स्पेसटाइम”(Spacetime) कहा है।
जैसा कि हमसब अपनी जिंदगी जीते है। हम न्यूटन के द्वारा प्रस्तावित समय और स्पेस के साथ बहुत सहज महसूस करते है और शायद आइंस्टीन भी सहज महसूस करते होंगे इसके बावजूद आइंस्टीन ने जो स्पेसटाइम का चित्रण किया वह वास्तव में उनके अद्भुत प्रतिभा को दर्शाता है।
अंतरिक्ष और समय सबके लिए एक समान है यह हमारी कितनी गलत धारणा रही है आइंस्टीन से पहले कभी किसी ने इसका प्रतिवाद नही किया था शायद मनुष्यों द्वारा किया गया अनुभव इस प्रतिवाद को रोकता आ रहा होगा। आइंस्टीन द्वारा सुझाया स्पेसटाइम की नई तस्वीर ब्रह्माण्ड के नायक कहे जानेवाले सबसे परिचित ताकत से जुड़ी एक गहरी रहस्य को भी हल करने वाली थी वह नायक था…
गुरुत्वाकर्षण(Gravitation)।
न्यूटन के अनुसार गुरुत्वाकर्षण एक बल है जिसके कारण एक वस्तु दूसरे वस्तु को अपनी ओर आकर्षित करता है। अपने गुरुत्वाकर्षण नियम से उन्होंने दो वस्तुओं के बीच लगनेवाले बल की परिशुद्धता से अनुमान लगाया और मापन भी किया।
- लेकिन गुरुत्वाकर्षण वास्तव में कैसे काम करता है ?
- लाखो मील की दूरी पर स्थित पृथ्वी, चन्द्रमा को अपनी ओर कैसे खिंच सकती है जबकि दोनों के बीच मे केवल रिक्त स्थान है ?
चन्द्रमा ऐसा व्यवहार करती है जैसे वह पृथ्वी से एक अदृश्य रस्सी से जुड़ी हो लेकिन हमसबको पता है यह सत्य नही है। न्यूटन का नियम इसकी कोई व्याख्या नही कर पाता कि चन्द्रमा पृथ्वी की परिक्रमा क्यों करती है ?
आइंस्टीन को भी यह समस्या हल करने में दस साल लग गये अब आइंस्टीन फिर से एक चौकाने वाले निष्कर्ष के साथ उपस्थित होनेवाले थे। आइंस्टीन ने कहा- गुरुत्वाकर्षण का रहस्य वास्तव में अंतरिक्ष और समय की प्रकृति में छुपा हुआ है इसे समझने के लिए आपको पहले स्पेसटाइम को समझना होगा।
असल मे अंतरिक्ष और समय बहुत लचीला है बहुत ही ज्यादा लचीला। यह एक वास्तविक फैब्रिकेटेड कपड़े की तरह ही फैल सकता है सिकुड़ भी सकता है। इसे समझने के लिए हम कल्पना करे कि हमारी टेबल एक स्पेसटाइम है और कुछ गेंदे इस स्पेसटाइम के वास्तु है। अब यदि यह स्पेसटाइम कठोर और सपाट हो तो सभी वस्तुओं को सीधी रेखा में ही गति करनी चाहिये थी। लेकिन वास्तव में यह अंतरिक्ष ऐसा नही है स्पेसटाइम फैब्रिकेटेड है जिसमे खिंचाव, सिकुड़न, मुड़ाव जैसी विकृतियाँ बनती है। यह सुनने में थोड़ा अजीब लग सकता है लेकिन अगर हम इस खिंचाव वाली स्पेसटाइम के कपड़े पर कोई भारी वस्तु रख दे तो यह वस्तु स्पेसटाइम में वक्रता उत्पन्न कर देता है। अगर मेरी यह टेबल कठोर और चिकनी न होकर फैब्रिकेटेड हो और मैं एक भारी गेंद इसके बीच मे रख दूँ तो यह गेंद मेरी टेबल में वक्रता ला देगा। अब मैं कोई छोटी गेंद उस बड़ी गेंद की ओर फेक दूँ तो मेरी छोटी गेंद उस बड़ी गेंद द्वारा बनी स्पेसटाइम वक्रता के कारण उसके चारों ओर चक्कर लगाने लगेगा।
आइंस्टीन को यह अहसास हुआ फिर उन्होंने विश्व को बताया देखो गुरुत्वाकर्षण ऐसे काम करता है। चन्द्रमा इसलिए पृथ्वी की परिक्रमा नही करती की पृथ्वी उसे अपनी ओर एक अदृश्य ताकत से खींचता है बल्कि इसलिए करती है कि पृथ्वी द्वारा बनी स्पेसटाइम वक्रता उसे परिक्रमा करने के लिए बाध्य कर देता है। आइंस्टीन ने अनुसार अंतरिक्ष सिर्फ वास्तविक ही नही बल्कि लचीली भी है बिल्कुल एक पतली रबर शीट की तरह। जहाँ न्यूटन ने अंतरिक्ष को निष्क्रिय बताया था आइंस्टीन ने उसे डायनामिक(Dynamic) बताया जो समय के साथ पूरी तरह से जुड़ा है। आइंस्टीन के सिद्धान्त को सत्यापित करने की सबसे उपयुक्त जगह तो ब्लैक होल ही थी। ब्लैक होल बड़ा सघन(Dense) होता है तारो और ग्रहों को अपने मे समा लेता है इसके चारों ओर गुरुत्वाकर्षण बड़ा प्रवल होता है। बड़ा ब्लैक होल अंतरिक्ष और समय मे बहुत बड़ी विकृति ला देता है। पृथ्वी से निकटतम ब्लैक होल भी खरबों मील की दूरी पर स्थित है जिसके कारण आइंस्टीन की भविष्यवाणी का परीक्षण करना बड़ी चुनौती बन रही थी।
लेकिन 1950 के दशक में, एक भौतिकविज्ञानी लियोनार्ड शिफ़(Leonard Schiff) ने अंतरिक्ष के बारे में आइंस्टीन के सिद्धांतों के परीक्षण के लिए एक क्रांतिकारी रास्ता खोज निकाला। उनका प्रस्तावित उपकरण आमतौर पर एक बच्चे के खिलौने जैसा ही था नाम था घूर्णदर्शी(जाइरोस्कोप/Gyroscope).
जाइरोस्कोप(Gyroscope) एक घूमता हुआ पहिया या डिस्क है जिसमे रोटेशन का अक्ष(Axis) स्वतः किसी भी अभिविन्यास(Orientation) को ग्रहण करने के लिए स्वतंत्र रहता है।
उन्होंने सोचा अगर अंतरिक्ष वास्तव में एक कपड़े की तरह ट्वीस्टी(Twisty) है तो जाइरोस्कोप यह पता लगाने में मददगार साबित हो सकता है। यह एक अजीब विचार था शिफ़ ने अपने दो कॉलेज मित्रों विलियम फैरबैंक और बॉब केनन(William Fairbank and Bob Cannon) से अपने इस विचार को साझा किया। जाइरोस्कोप को और उच्च तकनीक से बनाने की कोशिशों पर भी विचार विमर्श किया साथ ही साथ पृथ्वी की कक्षा में स्थापित करने का भी फैसला किया। समान्यतः जाइरोस्कोप का जो अक्षीय केंद्र होता है वो एक निश्चित दिशा में स्थित रहता है लेकिन अगर पृथ्वी वास्तव में अंतरिक्ष को खींच रही है तो जाइरोस्कोप के अक्ष को भी इसके साथ खिंचेगी। लियोनार्ड शिफ़ इसी खिंचाव को देखना और मापना चाह रहे थे।
यह शानदार और बेहद सरल लगनेवाली योजना लग रही थी सिर्फ एक समस्या अब भी बनी हुई थी। आइंस्टीन का यह सैद्धान्तिक अनुमान की पृथ्वी का घूमना केवल एक छोटी सी राशि है जो अंतरिक्ष मे एक बहुत मामूली खिंचाव ला रही है तो क्या हम इस जाइरोस्कोप से इस नगण्य सी खिंचाव को माप सकेंगे वो भी सिर्फ 62 मील की दूरी से। वैज्ञानिको की टीम ने सटीक मापन करने के लिए दो साल से अधिक का समय इसपर खर्च किया। आखिरकार इस टीम ने एक दूरबीन के साथ चार स्वतंत्र रूप से फ्लोटिंग जाइरोस्कोप(Freely-Floating Gyroscopes) संलग्न करने की योजना बनायी। 1962 में इनलोगों ने नासा को एक अनुदान के लिए आवेदन किया जिसमें इस योजना(ग्रैविटी प्रोब-बी : Gravity Prob-B) के लिए 1 लाख डॉलर का अनुरोध किया गया था। टीम के सदस्य काफी आशावादी थे उन्होंने सोचा कि इस परियोजना में तीन साल लगेंगे लेकिन बढ़ती हुई टीम के साथ, ग्रैविटी प्रोब-बी विज्ञान के इतिहास में सबसे लंबे समय तक चलने वाले प्रयोगों में से एक बन गया।
चार दशकों से अधिक और लगभग 750,000,000 डॉलर खर्च को देखते हुए नासा ने यह परियोजना लगभग नौ बार रद्द कर दी। पर अंत मे नासा ने अप्रैल 2004 में इसे प्रक्षेपित किया लेकिन इस समय 1959 के तीन मुख्य सूत्रधार लोगों में से केवल एक ही इसे देखने के लिए जीवित था। एक वर्ष से अधिक समय तक ग्रैविटी प्रोब-बी ने पृथ्वी की कक्षा में परिक्रमा की जबकि टीम ने घबराहट के साथ हर कदम पर पूरी नजर गड़ाये रखी यह देखने की लगातार कोशिश करती रही कि पृथ्वी सच मे अंतरिक्ष को मोड़ती है या नही। अंत मे आंकड़े आने शुरू हो गए और समस्यायें भी। जाइरोस्कोप बहुत ही अप्रत्याशित आंकड़े दे रहे थे जो वैज्ञानिको के लिए किसी झटके से कम नही था।
वैज्ञानिको ने इस आंकड़े के विश्लेषण करने के लिए लाखों डॉलर और खर्च होने का अनुमान लगाया। इस अतिरिक्त धनराशि लगने के चलते इस मिशन को पूरा करना बड़ा मुश्किल होने लगा फिर लगभग आखिरी संभावित क्षणों में अतिरिक्त धन के दो स्रोत सामने आये एक विलियम फैरबैंक के बेटे और दूसरा सऊदी शाही परिवार के एक सदस्य टर्की अल-सऊद(Turki al-Saud) जिन्होंने इस बड़े अनुदान की व्यवस्था की। अगले दो वर्षों में आंकड़ो के साथ आनेवाली सारी समस्याएं हल हो गयी और यह खुलासा हुआ कि जाइरोस्कोप का अक्ष बिल्कुल आइंस्टीन के समीकरणों की भविष्यवाणी को पूरा कर रहा था। पहली बार विज्ञानियों ने आइंस्टीन के प्रभावों को नग्न आंखों से देखा था। यह प्रयोग सबसे प्रत्यक्ष सबूत था जिसने बताया कि अंतरिक्ष वास्तविक भौतिक इकाई है। वैज्ञानिको ने माना अगर अंतरिक्ष कुछ भी नही है तो उसमें कोई मोड़ या विकृति कभी नही आ सकती।अल्बर्ट आइंस्टीन ने जो हमे अंतरिक्ष की तस्वीर दिखाई यह तो अंतरिक्ष के बड़े पैमाने पर हमें दिखता देता है लेकिन अंतरिक्ष सिर्फ बड़े पैमाने पर ही नही बल्कि छोटे पैमाने(Tiny Scale) में भी स्थित है वो है क्वांटम पैमाना(Quantum Scale).।
जारी….
अगले भाग मे क्वांटम स्केल पर अंतरिक्ष..
स्रोत :
ब्रायन ग्रीन द्वारा प्रस्तुत वृत्तचित्र द फ़ेब्रिक आफ द कासमास (The Fabric of the Cosmos by Brian Greene)
ब्रायन ग्रीन कोलंबीया विश्वविद्यालय मे भौतिक वैज्ञानिक(Physicist, Columbia University) है।
इस लेख मे निम्नलिखित वैज्ञानिको के कथनों और विचारों का समावेश भी किया गया है।
• Raphael Bousso (UC Berkeley)
• Robert Cannon(Stanford University)
• Alex Filippenko(University of California) Berkeley astro.berkeley.edu/people/faculty/filippenko.html
• S. James Gates, Jr.(University of Maryland)
• Brian Greene(Columbia University)
• Peter Higgs(University of Edinburgh)
• Craig Hogan(University of Chicago)
• Clifford Johnson(University of Southern California)
• Rocky Kolb(University of Chicago)
• Janna Levin(Columbia University)
• Joseph Lykken(Fermilab)
• Brad Parkinson(Stanford University)
• Saul Perlmutter(University of California, Berkeley)
• Adam Riess(Johns Hopkins University)
• Leonard Susskind(Stanford University)
प्रस्तुति : पल्लवी कुमारी
पल्लवी कुमारी, बी एस सी द्वितीय वर्ष(B.Sc 2nd Year) की छात्रा है। वर्तमान मे राम रतन सिंह कालेज मोकामा पटना मे अध्यनरत है।
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