अब तक का सबसे ताकतवर सुपरनोवा ASASSN-15lh
खगोलविदों ने अब तक के सबसे ताक़तवर सुपरनोवा ASASSN-15lh की खोज की है। इस सुपरनोवा का मूल तारा भी काफ़ी विशाल रहा होगा- संभवतः हमारे सूर्य के मुक़ाबले 50 से 100 गुना तक बड़ा।
इस फट रहे तारे/मृत्यु को प्राप्त हो रहे तारे को पहली बार बीते साल जून 2015 में देखा गया था लेकिन अभी भी इससे अपार ऊर्जा निकल रही है। अपने चरम पर यह सुपरनोवा तारा सामान्य सुपरनोवा से 200 गुना ताक़तवर था और हमारे सूर्य से यह 570 अरब गुना ज़्यादा चमक रहा है। खगोलविदों के मुताबिक़ ये सुपरनोवा बेहद तेज़ गति से घूम रहा है। साथ ही इसकी रफ़्तार धीमी भी हो रही है और इस प्रक्रिया में फैल रहे गैस और धूल के गुबार में ये अपार ऊर्जा छोड़ रहा है।
ओहायो स्टेट यूनिवर्सिटी से जुड़े प्रोफ़ेसर क्रिस्टोफ़र कोचानेक इस सुपरनोवा तारे की खोज करने वाले दल में शामिल हैं।
वे बताते हैं,
“केंद्र में ये बहुत ठोस है। संभवतः इसका द्रव्यमान हमारे सूर्य के बराबर है और जिस क्षेत्र में यह अपनी ऊर्जा छोड़ रहा है उसका द्रव्यमान हमारे सूर्य से पांच-छह गुना ज़्यादा है और यह बाहर की ओर 10 हज़ार किलोमीटर प्रति सेकंड की रफ़्तार से बढ़ रहा है।”
इस सुपरनोवा के बारे में जानकारियां साइंस जर्नल के ताज़ा अंक में प्रकाशित की गई हैं।
अब तक के सबसे शक्तिशाली माने जा रहे इस सुपरनोवा की खोज “स्काई ऑटोमेटेड सर्वे फ़ॉर सुपरनोवा(All-Sky Automated Survey for SuperNovae)” ने धरती से क़रीब 3.8 अरब प्रकाशवर्ष दूर की है।
सुपरनोवा क्या होते है ?
जब तारों मे प्रज्वलन (तत्वों के संलयन) के लिये इंधन समाप्त हो जाता है तब वे अपनी मृत्यु की ओर बढ़ते है। तारो की मृत्यु उनके द्रव्यमान के अनुसार भिन्न भिन्न तरह से होती है। एक सामान्य द्रव्यमान का तारा अपनी बाहरी परतों का झाड़ कर एक “ग्रहीय निहारिका(Planetary nebula)” में परिवर्तित हो जाता है। बचा हुआ तारा यदि सूर्य के द्रव्यमान के 1.4 गुणा से कम हो तो वह श्वेत वामन तारा बन जाता है जिसका आकार पृथ्वी के बराबर होता है जो धीरे धीरे मंद होते हुये काले वामन तारे के रूप में मृत हो जाता है।
सूर्य के द्र्व्यमान से 1.4 गुणा से ज्यादा भारी तारे होते है अपने द्र्व्यमान को नियंत्रित नहीं कर पाते है। इनका केन्द्र अचानक संकुचित हो जाता है। इस अचानक संकुचन से एक महा विस्फोट होता है, जिसे सुपरनोवा कहते है। सुपरनोवा इतने चमकदार होते है कि कभी कभी इन्हें दिन मे भी देखा गया है। सुपरनोवा विस्फोट मे फेंके गये पदार्थ से निहारिका बनती है। कर्क निहारिका इसका उदाहरण है। बचा हुआ तारा न्युट्रान तारा बन जाता है। ये कुछ न्युट्रान तारे पल्सर तारे होते है। यदि बचे हुये तारे का द्रव्यमान 4 सूर्य के द्र्व्यमान से ज्यादा हो तो वह एक श्याम विवर(Black Hole) मे बदल जाता है।
संक्षिप्त मे किसी सुपरनोवा विस्फोट के बाद बचे ताराकेन्द्र के भविष्य की तीन संभावनाएं होती है।
- श्वेत वामन तारा : 1.4 सौर द्रव्यमान से कम भारी “शेष तारा केन्द्र” का गुरुत्व इतना शक्तिशाली नही होता कि वह परमाण्विक और नाभिकिय बलो पर प्रभावी हो सके। वह श्वेत वामन तारे के रूप मे परिवर्तित हो जाता है।
- न्युट्रान तारा :1.4 सौर द्रव्यमान से भारी “शेष तारा केन्द्र”का गुरुत्व कुछ सीमा तक परमाण्विक तथा नाभिकिय बलो पर प्रभावी हो जाता है, जिससे तारा केन्द्र न्यूट्रॉन की एक भारी गेंद बन जाता है, जिसे न्युट्रान तारा कहते है।
- श्याम विवर: 4 सौर द्रव्यमान से ज्यादा भारी “शेष तारा केन्द्र” मे अंततः गुरुत्वाकर्षण की विजय होती है, वह सारे परमाण्विक तथा नाभिकिय बलो को तहस नहस करते हुये उस तारे को एक बिंदु के रूप मे संपिड़ित कर देती है, जो किएक श्याम विवर होता है।
सुपरनोवा अपनी चरमसीमा पर होता है, वह कभी-कभी कुछ ही हफ़्तों या महीनो में इतनी उर्जा प्रसारित कर सकता है जितनी की हमारा सूरज अपने अरबों साल के जीवनकाल में करेगा। इस महाविस्फोट के दौरान उष्मा और दबाव इतना ज्यादा होता है कि लोहे से भारी सभी तत्वो का निर्माण इन्ही सुपरनोवा भट्टियों मे हुआ है। हमारा अपना सूर्य और सौर मण्डल के सभी ग्रह किसी सुपरनोवा विस्फोट के पश्चात बचे हुये पदार्थ से निर्मित है।
इस तरह से हम देखते है कि ब्रह्माण्ड मे हल्के तत्वों की अधिकता है, जैसे जैसे तत्वों का भार बढ़ते जाता है उनकी उपलब्धता कम होते जाती है क्योंकि उनकी निर्माण प्रक्रिया उतनी ही कठीन होते जाती है।
खगोलविद हमेशा से आकाश में होने वाले तारों के इन विशाल धमाकों की ओर आकर्षित होते रहे हैं। हमारे ब्रह्मांड का विकास कैसे हुआ, यह समझने में सुपरनोवा अहम कड़ी हैं।
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