ब्रह्मचारी तथा दो मुनि
From Chandogya Upanishad, 4.3
एक ब्रह्मचारी था जो वैश्व ब्रह्म पर ध्यान करता था। एक दिन वह भोजन के लिए भिक्षाटन करने निकला। भ्रमण करते हुए वह दो विख्यात मुनियों के निवास स्थान पर पहुँचा। वे उस समय भोजन करने ही जा रहे थे। ब्रह्मचारी ने उनसे कुछ भोजन की याचना की। किन्तु उन्होंने ब्रह्मचारी की याचना पर ध्यान नहीं दिया।
ब्रह्मचारी ने उन दोनों मुनियों के उपेक्षा-भाव को देख कर कहा, ‘‘हे महामुनियों, मेरी बात पर ध्यान दें। एक महान देव है जो अन्य चारों को निगल जाता है। यह देव कौन है? वह सभी जगतों का रक्षक है। कोई उस महान देव की उपस्थिति को नहीं देखता। हे महामुनियो! आप दोनों यह नहीं अनुभव करते कि इस जगत के समस्त अन्न पर इसी का अधिकार है और इसी देव को आपने भोजन देने से मना कर दिया है।’’
वह थोडी देर तक रुक कर पुनः बोला, ‘‘समस्त सृष्टि का सारा अन्न केवल उसी देव का है और जब वह भोजन मांग रहा है जिस पर केवल उसी का अधिकार है, आप मुनिगण उसे नहीं दे रहे हैं। आप को अपने कर्म का प्रतिफल समझना चाहिए। आपने मेरी उपेक्षा करके एक बडा अपराध किया है। आपने मेरी बात लेशमात्र भी नहीं सुनी। आपने मुझे मांगने पर भोजन नहीं दिया और इस प्रकार शांत बैठे हैं मानो कुछ हुआ नहीं। अब आप इस अज्ञान का परिणाम भोगने के लिए सिद्ध हो जाइये।’’
ब्रह्मचारी के इस प्रकार के वचन सुन कर दोनों मुनियों में से एक, जिसका नाम शौनक था, ब्रह्मचारी से बोला, “आप कह रहे हैं कि महान देवता को, जो सर्वव्यापक है, अन्न-दान करने से मना कर दिया गया है। मैं जो कहता हूँ उसे सुनिये। आप ऐसा इसलिए कह रहे है क्योंकि आप यह समझते हैं कि आप वैश्व ब्रह्म पर ध्यान करते हैं और हमलोग इस बारे में कुछ नहीं जानते। आपने टिप्पणी की कि हमलोग उस महान देव की उपस्थिति के प्रति अनभिज्ञ हैं जो समस्त अन्न का स्वामी है। तब हमलोग किस पर ध्यान कर रहें हैं? मैं आपको बताता हूँ।
सभी वस्तुओं का जन्मदाता, सृष्टिकर्ता, सभी देवों का उद्गम तथा सारतत्त्व, सभी सत्ताओं की आत्मा एक महान आत्मा है। वही ज्ञान के मुख से खाता है। यह सामान्य मुख नहीं है जिसमें भौतिक दांत और जीभ हो। उसके दांत ज्ञान की दीप्ति से चमक रहे हैं। ज्ञान का सारतत्त्व ही उसकी सत्ता का सारतत्त्व है और वह सभी वस्तुओं को निगल जाता है। वह एक महान भक्षक है। सृष्टि में ऐसी कोई वस्तु नहीं है जिसे वह निगल नहीं सकता। हर वस्तु उसका भोजन है और वह इसे अपनी सत्ता के माध्यम से ही खाता है, किसी बाहरी यन्त्र के द्वारा नहीं। वह सम्पूर्ण सृष्टि में श्रेष्टतम ज्ञानी है। सचमुच उसकी महिमा महान है। कोई व्यक्ति उसका भक्षण नहीं कर सकता और न कोई उसे कुछ हानि पहुँचा सकता है, और न किसी प्रकार से उसके साथ सम्पर्क कर कोई उसे दूषित कर सकता है। परन्तु उसके लिए सब कुछ उसका भोज्य पदार्थ है। वह केवल सामान्य भोजन नहीं अपितु अभोज्य भी खाता है। स्वयं खाने वालों की वह खा जाता है। इसी विषय पर हमलोग ध्यान कर रहे हैं।’’
इतना कह कर दोनों मुनियों ने ब्रह्मचारी को भोजन खिलाया।
उपनिषदों के टीकाकारों ने कहा है कि दोनों मुनि ब्रह्मचारी के ज्ञान की गहराई की परीक्षा लेना चाहते थे और यह जानना चाहते थे कि उसका व्यक्तित्व किस उपादान से निर्मित है। इसलिए उन्होंने ऐसा उत्तर दिया जिससे यह पता चलें कि वे भी ज्ञानी हैं, सम्भवतः ब्रह्मचारी की अपेक्षा वे कही अधिक श्रेष्ठ ज्ञानी हैं।
–(छान्दोग्य उपनिष्द, 4.3 से)
0 Comments
If you have any Misunderstanding Please let me know