👉 वसीयत और नसीहत
🔷 एक दौलतमंद इंसान ने अपने बेटे को वसीयत देते
हुए कहा,
"बेटा मेरे मरने के बाद मेरे पैरों में ये फटे हुऐ मोज़े (जुराबें)
पहना देना, मेरी यह इक्छा जरूर पूरी करना। पिता के मरते ही
नहलाने के बाद, बेटे ने पंडितजी से पिता की आखरी इक्छा बताई।
🔶 पंडितजी ने कहा: हमारे धर्म में कुछ भी पहनाने
की इज़ाज़त नही है। पर बेटे की ज़िद थी कि पिता की आखरी इक्छ पूरी हो। बहस इतनी बढ़ गई
की शहर के पंडितों को जमा किया गया, लेकिन कोई नतीजा नहीं
निकला।
🔷 इसी माहौल में एक व्यक्ति आया, और
आकर बेटे के हाथ में पिता का लिखा हुआ खत दिया, जिस में पिता
की नसीहत लिखी थी "मेरे प्यारे बेटे" देख रहे हो।।? दौलत, बंगला, गाड़ी और बड़ी-बड़ी
फैक्ट्री और फॉर्म हाउस के बाद भी, मैं एक फटा हुआ मोजा तक
नहीं ले जा सकता।
🔶 एक रोज़ तुम्हें भी मृत्यु आएगी, आगाह
हो जाओ, तुम्हें भी एक सफ़ेद कपडे में ही जाना पड़ेगा। लिहाज़ा
कोशिश करना,पैसों के लिए किसी को दुःख मत देना, ग़लत तरीक़े से पैसा ना कमाना, धन को धर्म के कार्य
में ही लगाना।
🔷 क्यूकि अर्थी में सिर्फ तुम्हारे कर्म ही जाएंगे"।
इन्सान फिर भी धन की लालसा नहीं
छोड़ता,
भाई को भाई नहीं समझता, इस धन के कारण भाई,
मां, बाप सबको भूल जाता है अंधा हो जाता है।
👉 सफल वही होता है जो लक्ष्य का निर्धारण कर
उसपर अडिग रहता है!
🔶 एक बार की बात है, एक
निःसंतान राजा था, वह बूढा हो चुका था और उसे राज्य के लिए
एक योग्य उत्तराधिकारी की चिंता सताने लगी थी। योग्य उत्तराधिकारी के खोज के लिए
राजा ने पुरे राज्य में ढिंढोरा पिटवाया कि अमुक दिन शाम को जो मुझसे मिलने आएगा,
उसे मैं अपने राज्य का एक हिस्सा दूंगा। राजा के इस निर्णय से राज्य
के प्रधानमंत्री ने रोष जताते हुए राजा से कहा, "महाराज,
आपसे मिलने तो बहुत से लोग आएंगे और यदि सभी को उनका भाग देंगे तो
राज्य के टुकड़े-टुकड़े हो जाएंगे। ऐसा अव्यावहारिक काम न करें।" राजा ने
प्रधानमंत्री को आश्वस्त करते हुए कहा, ''प्रधानमंत्री जी,
आप चिंता न करें, देखते रहें, क्या होता है।'
🔷 निश्चित दिन जब सबको मिलना था, राजमहल
के बगीचे में राजा ने एक विशाल मेले का आयोजन किया। मेले में नाच-गाने और शराब की
महफिल जमी थी, खाने के लिए अनेक स्वादिष्ट पदार्थ थे। मेले
में कई खेल भी हो रहे थे।
🔶 राजा से मिलने आने वाले कितने ही लोग
नाच-गाने में अटक गए, कितने ही सुरा-सुंदरी में, कितने ही आश्चर्यजनक खेलों में मशगूल हो गए तथा कितने ही खाने-पीने,
घूमने-फिरने के आनंद में डूब गए। इस तरह समय बीतने लगा।
🔷 पर इन सभी के बीच एक व्यक्ति ऐसा भी था जिसने
किसी चीज की तरफ देखा भी नहीं, क्योंकि उसके मन में निश्चित ध्येय था
कि उसे राजा से मिलना ही है। इसलिए वह बगीचा पार करके राजमहल के दरवाजे पर पहुंच
गया। पर वहां खुली तलवार लेकर दो चौकीदार खड़े थे। उन्होंने उसे रोका। उनके रोकने
को अनदेखा करके और चौकीदारों को धक्का मारकर वह दौड़कर राजमहल में चला गया,
क्योंकि वह निश्चित समय पर राजा से मिलना चाहता था।
🔶 जैसे ही वह अंदर पहुंचा, राजा
उसे सामने ही मिल गए और उन्होंने कहा, 'मेरे राज्य में कोई
व्यक्ति तो ऐसा मिला जो किसी प्रलोभन में फंसे बिना अपने ध्येय तक पहुंच सका।
तुम्हें मैं आधा नहीं पूरा राजपाट दूंगा। तुम मेरे उत्तराधिकारी बनोगे।
🔷 सफल वही होता है जो लक्ष्य का निर्धारण करता
है, उसपर अडिग रहता है, रास्ते में आने वाली हर कठिनाइयों का डटकर सामना करता है और छोटी-छोटी
कठिनाईयों को नजरअंदाज कर देता है।
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