👉 किरायेदार की दास्तान
🔷 एक नगर मे एक बहुत ही आलीशान भवन बना हुआ था
उस भवन मे एक सेठजी रहते थे दो खाली कमरे थे वहाँ दो किरायेदार आये और सेठजी से प्रार्थना
करने लगे की हमें अपना मकान किराये पर दे दीजिये उनकी हालत देखकर सेठजी को रहम आ गया
सेठजी बहुत भोले और भले पुरूष थे!
🔶 सेठजी ने कहा की मैं मकान किराये पर तो दे
दुं पर देता हूं निश्चित अवधि के लिये और कोर्ट से लिखापढ़ी कराकर देता हूं ताकि
बाद मे कोई लफड़ा न हो और जब मैं चाहूं तब आपको मकान खाली करना पड़े यदि मेरी ये शर्तें
स्वीकार है तो आ जाओ नहीं तो दुनियाँ बहुत लम्बी चौड़ी है आप जा सकते है! और हाँ
मुझे गन्दगी पसंद नहीं है यदि आप साफ सफाई रख सकते हो तो लेना बाकी मत लेना !
किरायेदार ने शर्तों पर मकान ले लिया!
🔷 हर महीने वो किराया देते थे धीरे - धीरे
बहुत समय व्यतीत हुआ एक दिन मकान मालिक ने उन दोनों से कहा की आप मकान खाली कीजिये
तो एक ने तत्काल मकान खाली कर दिया और वहाँ से आगे चला गया!
🔷 पर वो जो दूसरा था वो कहे की मकान तो मेरा
है क्यों खाली करूँ तो सेठजी अपने साथ पहलवानों को लाये और उसकी खुब पिटाई की और पिटाई
करते करते उसे मकान से बाहर निकाल दिया!
🔶 अब वो थाने में हवलदार साहब के पास पहुँचा
सेठजी के खिलाफ मुकदमा दर्ज करवाया और थानेदार सेठजी को लेने पहुँचे पर जब थानेदार
जी को हकीकत पता चली तो उस किरायेदार को डंडे से पिटा और जेल में डाल दिया!
🔷 पहले और दूसरे किरायेदार में कितना अन्तर था!
🔶 एक ने किराये के मकान को अपना समझा साफ सफाई
भी रखी और जैसे ही सेठजी का आदेश हुआ तत्काल मकान खाली भी कर दिया! और दुसरा मकान
को भी गंदा किया और मालिक भी बनना चाहा तो डंडे पड़े!
🔷 यदि वो दुसरा भी किरायेदार बनकर रहता मालिक
बनने की कोशिश न करता तो उसे यु डंडे न पड़ते और कारावास की सजा न होती!
🔶 हम सब यहाँ एक किरायेदार ही है इससे
ज्यादा और कुछ नहीं! ये काया और ये माया इन्हें व्यवहार में अपना कह लीजिये पर
अधिकारपूर्वक मत कहना क्योंकि पता नहीं मकान मालिक कब मकान खाली करवा दे!
🔷 ये कभी नहीं भुलना चाहिये की हम सब किरायेदार
है और किरायेदार बनकर रहेंगे तो सदा लाभ मे रहेंगे मालिक बनने की कोशिश की तो डंडे
पडेंगे! मालिक बनने की कोशिश कभी नहीं करनी चाहिये क्योंकि ये काया किराये का एक
मकान है और हम केवल एक किरायेदार है और एक दिन किराये के इस मकान को खाली करना ही
पड़ेगा।
🔶 राम सुमिरन और राम सेवा से इसका ईमानदारी से
किराया अदा करते हुये चले!
👉 सहकारिता
🔶 राजा ने मंत्री से कहा- "मेरा मन प्रजा
जनों में से जो वरिष्ठ हैं उन्हें कुछ बड़ा उपहार देने का हैं। बताओ ऐसे अधिकारी व्यक्ति
कहाँ से और किस प्रकार ढूंढ़ें जाये?"
🔷 मंत्री ने कहा - "सत्पात्रों की तो कोई
कमी नहीं,
पर उनमें एक ही कमी है कि परस्पर सहयोग करने की अपेक्षा वे एक दूसरे
की टाँग पकड़कर खींचते हैं। न खुद कुछ पाते हैं और न दूसरों को कुछ हाथ लगने देते
हैं। ऐसी दशा में आपकी उदारता को फलित होने का अवसर ही न मिलेगा।"
🔶 राजा के गले वह उत्तर उतरा नहीं। बोले! तुम्हारी
मान्यता सच है यह कैसे माना जाये? यदि कुछ प्रमाण प्रस्तुत कर सकते हो तो
करो। मंत्री ने बात स्वीकार कर ली और प्रत्यक्ष कर दिखाने की एक योजना बना ली। उसे
कार्यान्वित करने की स्वीकृति भी मिल गई।
🔷 एक छः फुट गहरा गड्ढा बनाया गया। उसमें बीस
व्यक्तियों के खड़े होने की जगह थी। घोषणा की गई कि जो इस गड्ढे से ऊपर चढ़ आवेगा
उसे आधा राज्य पुरस्कार में मिलेगा।
🔶 बीसों प्रथम चढ़ने का प्रयत्न करने लगे। जो
थोड़ा सफल होता दिखता उसकी टाँगें पकड़कर शेष उन्नीस नीचे घसीट लेते। वह औंधे मुंह
गिर पड़ता। इसी प्रकार सबेरे आरम्भ की गई प्रतियोगिता शाम को समाप्त हो गयी। बीसों
को असफल ही किया गया और रात्रि होते-होते उन्हें सीढ़ी लगाकर ऊपर खींच लिया गया।
पुरस्कार किसी को भी नहीं मिला।
🔷 मंत्री ने अपने मत को प्रकट करते हुए कहा
- "यदि यह एकता कर लेते तो सहारा देकर किसी एक को ऊपर चढ़ा सकते थे। पर वे ईर्ष्या
वश वैसा नहीं कर सकें। एक दूसरे की टाँग खींचते रहे और सभी खाली हाथ रहे। संसार
में प्रतिभावानों के बीच भी ऐसी ही प्रतिस्पर्धा चलती हैं और वे खींचतान में ही
सारी शक्ति गँवा देते है। अस्तु उन्हें निराश हाथ मलते ही रहना पड़ता है।"
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