👉 भाई कब मरेगा?
🔷 एक गांव था जहां सभी धर्म-जाति के लोग निवास
करते थे। उसी गांव में एक गरीब किसान अपने परिवार के साथ रहता था। यह दर्दनाक घटना उसी किसान परिवार की है जिसमें
परिवार का मुखिया, उसकी पत्नी और दो बच्चे थे। घर का मुखिया एक लम्बे अरसे से
बीमार था जो जमा पूंजी थी, वह डाक्टरों की फीस व दवाखानों
में खत्म हो चुकी थी लेकिन वह अभी भी चारपाई से लगा हुआ था और एक दिन इसी हालत में
अपने बच्चों को अनाथ कर इस दुनिया से चला गया।
🔶 मुसीबत का मारा परिवार खाने-पीने का
मोहताज हो गया मगर लोग अपने काम-धंधों में लग चुके थे। किसी ने भी इस परिवार की ओर
ध्यान नहीं दिया। बच्चे अकसर बाहर निकल कर सामने वाले मकान की चिमनी से निकलने
वाले धुआं को आस लगाए देखते रहते। नादान बच्चे समझ रहे थे कि उनके लिए खाना तैयार
हो रहा है। पर मां तो मां होती है उसने घर में रोटी के कुछ सूखे टुकड़े ढूंढ
निकाले। इन टुकड़ों से बच्चों को जैसे-तैसे बहला-फुसला कर सुला दिया।
🔷 अगले दिन फिर भूख सामने खड़ी थी। घर में था
ही क्या,
जिसे बेचा जाता, फिर भी काफी देर खोज के बाद
चार चीजें निकल आईं जिन्हें बेचकर शायद दो समय के भोजन की व्यवस्था हो गई। बाद में
वह पैसा भी खत्म हो गया। भूख से तड़पते बच्चों का चेहरा मां से देखा नहीं गया।
सातवें दिन मां अपने बच्चों के लिए मोहल्ले के पास वाली दुकान पर जा खड़ी हुई।
दुकानदार से महिला ने उधार कुछ राशन मांगा तो दुकानदार ने साफ इनकार कर दिया। एक
तो पिता के मरने से अनाथ होने का दुख और ऊपर से लगातार भूख से तड़पने के कारण उसके
सात साल के बेटे की हिम्मत जवाब दे गई और वह बुखार से पीड़ित होकर चारपाई पर पड़
गया।
🔶 बेटे के लिए दवा कहां से लाती, खाने
तक का तो ठिकाना था नहीं। तीनों एक घर के कोने में सिमटे पड़े थे। मां बुखार से आग
बने बेटे के सिर पर पानी की पट्टियां रख रही थी। तब पांच साल की छोटी बहन अचानक
उठी, मां के कान से मुंह लगाकर बोली, ‘‘मां भाई कब मरेगा?’’
🔷 मां के दिल पर मानो जैसे तीर चल गया, तड़प
कर उसे छाती से लिपटा लिया और पूछा, ‘‘मेरी बच्ची तुम यह
क्या कह रही हो?’’
🔶 बच्ची मासूमियत से बोली, ‘‘हां मां! भाई मरेगा तो लोग खाना देने आएंगे न?’’
🔷 मां यह सुन कर तड़प उठी। इसलिए अपनी दौलत को
धर्म के नाम पर चढ़ावा चढ़ाने की बजाय किसी असहाय भूखे को खाना खिलाकर पुण्य
प्राप्त करें, इससे सारे जहां के मालिक भी खुश होंगे और आपके मन को भी
सुकून मिलेगा।
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