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मिठास चाहते हो तो अहंकार हटा दो

मिठास चाहते हो तो अहंकार हटा दो

 

🔷 एक नगर के बाहर एक गुरुकुल में दो शिष्य शिक्षा ग्रहण के लिये आये थे एक सेठजी का लड़का था नाम विवेक और दुसरा साधारण किसान का बेटा राम! दोनों ही गुरुकुल में शिक्षा प्राप्त व जीवन निर्माण के उद्देश्य से वहाँ अध्ययन हेतु आये! राम में साधारण बुद्धि थी तो विवेक बहुत ही बुद्धिमान और तेज दिमाग का था!

 

🔶 एक बार निर्जल एकादशी पर संत श्री ने कहा की आप दोनों कल अपने घर जाना और वहाँ से अपने हिसाब से एक - एक कलश लाना और उन्हें कुएँ से भरकर लाना और हम तीनों ही निर्जला का उपवास रखेंगे सूर्यास्त पर ही जल ग्रहण करेंगे और ध्यान रखना कलश आप अपने हिसाब से लाना ! और वही जल हम सब को शाम को पीना है!

 

🔷 दोनों घर गये और कलश लाये पूरे दिन जल न पिया सूर्यास्त तक सभी के कण्ठ सूखने लगे आम के वृक्ष के नीचे रखे अपने - अपने कलश लेकर आये और सन्त श्री ने पहले राम के कलश से सभी ने ठण्डा और मीठा जल आराम के साथ पिया और फिर राम को संत श्री ने कुएँ पर जल लेने को भेजा और राम जल सेवा के लिये चले गये!

 

🔶 पर विवेक की प्यास न बुझी वह छटपटा रहा था! क्योंकि वह जो कलश लेकर आया था वह मिट्टी का न था!

 

🔷 अपने ज्ञान और वैभव पर उसे अहंकार होने लगा था और उसके मन में राम को नीचा दिखाने के भाव आने लगे और वह मिट्टी के कलश की जगह सोने का कलश लाया और जल्दबाजी तथा अपने ऐश्वर्य के प्रदर्शन के चक्कर में वह कलश में खारा पानी ले आया!

 

🔶 अब एक तो पानी गरम था और ऊपर से खाराऊस पानी था इसलिये उस पानी को पीना तो दूर वह मुंह में भी न ले पाया और जब संत श्री ने उसकी तरफ देखा तो विवेक अपने अपराध को समझ गया और वह संत श्री के चरणों में जाकर क्षमा प्रार्थना करने लगा तो संत श्री ने उसे बड़े ही प्यार से समझाया बेटे विवेक जिन्दगी का जो महत्व वास्तविकता में है वह प्रदर्शन में नहीं और किसी को नीचा दिखाने का भाव अपने मन में न रखो वत्स किसी को भी तुच्छ समझने की भूल न करो वत्स तुमने मिट्टी के कलश को तुच्छ समझकर उसकी अवहेलना की और सोने के कलश को वरीयता दी और प्रदर्शन के चक्कर में उसमें खारा पानी ले आये पर वह कलश और पानी तुम्हारी प्यास को शांत न कर पाया!

 

🔷 हे वत्स यदि जीवन में मिठास चाहते हो तो मन में बसी खरास को अर्थात अहंकार को हटा दो वत्स! क्योंकि अहंकार से दबा इंसान कभी ऊपर नहीं उठ पाता है वत्स, हे वत्स जीवन की जो सौंदर्य सादगी और वास्तविकता में है वह प्रदर्शन और अहंकार में नहीं! है वत्स जीवन की मिठास किसी को बड़ा समझने में है न की उसे नीचा दिखाने में हे वत्स यदि वास्तव में ही सफलता चाहते हो तो सब को सम्मान और प्रेम देते हुए सब का उत्साह बढ़ाते हुए चलो!

 

🔶 और फिर विवेक ने गलती न दोहराने का संकल्प लिया! इतने में राम कुएँ से जल ले आया और विवेक ने ठण्डा और मीठा पानी पीकर अपनी प्यास बुझाई!

 

🔷 एक बात हमेशा याद रखना की सादगी और प्रेम में मिठास का निवास है तो उपेक्षा और अहंकार से जीवन कसैलापन और खारा हो जायेगा इसलिये सभी को मान देते हुए सभी का उत्साह बढ़ाते हुए सत्य पथ पर आगे बढ़ते चलो! 

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