अपनी बलि क्यों नहीं देते ?
यूनान के एक प्राचीन मंदिर में प्रतिवर्ष उत्सव का आयोजन किया जाता था। पूरे देश से असंख्य श्रद्धालु इस समारोह में शामिल होते थे । उन दिनों यूनान में प्रमुख दार्शनिक प्लेटो की ख्याति चरम सीमा पर थी । वह आडंबरों से दूर रहकर सात्त्विक जीवन बिताने की प्रेरणा दिया करते थे। लोग उनके पास पहुँचकर धर्म और समाज-संबंधी जिज्ञासाओं का समाधान पाया करते थे । उत्सव के आयोजकों ने एक बार प्लेटो को भी समारोह में आमंत्रित किया। प्लेटो सहज भाव से महोत्सव में जा पहुँचे ।
यूनान में उन दिनों देव प्रतिमा के समक्ष पशुबलि जैसी कुप्रथा प्रचलित थी । प्लेटो ने पहली बार देखा कि अपने को देवता का भक्त बताने वाले एक व्यक्ति ने निरीह पशु को मूर्ति के सामने खड़ा किया और तेज धार वाली तलवार से उसका सिर उड़ा दिया । निरीह पशु को तड़पते देखकर प्लेटो का हृदय हाहाकार कर उठा । वे इस घोर अमानवीय कृत्य को सहन नहीं कर पाए। वे कुरसी से उठे और सीधे मूर्ति के सामने जा पहुँचे। दूसरे पशु की बलि देने को तत्पर अंधविश्वासी व्यक्ति तथा उपस्थित जनों से प्लेटो ने कहा, 'देवता इन निरीह और मूक पशुओं की बलि से यदि प्रसन्न होता है, तो क्यों न आप और हम अपनी बलि देकर देवता को हमेशा के लिए तृप्त कर दें । ' उनके ये शब्द सुनकर सब काँप उठे । पशुबलि देने के लिए आया व्यक्ति भाग गया। उसी दिन से वहाँ पशुबलि बंद हो गई।
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