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संत की दलील

 

संत की दलील

दुनिया से दूर, अपनी ही दुनिया में रहनेवाले एक संत के पास एक दिन राजा का दूत पहुँचा । उस समय संत नदी के किनारे बैठे भजन - संध्या कर रहे थे। दूत ने उनसे कहा , " आपको राजा ने अपना प्रधानमंत्री नियुक्त किया है । आपको मेरे साथ चलना होगा । "

संत ने उससे पूछा, " मैंने सुना है कि राजा के पास कछुए की एक बहुत पुरानी खाल पड़ी है, जिसे उन्होंने अपने संग्रहालय में रखा है । " सेवक ने कहा, " हाँ, बहुत मूल्यवान है वह खाल । " संत ने कहा , “ सोचो, अगर वह कछुआ जिंदा होता तो क्या पसंद करता ? राजा के संग्रहालय की शोभा बढ़ाना या जहाँ वह पैदा हुआ उस कीचड़ में लोटना । "

सेवक ने कहा , " उसे तो कीचड़ में लोटना ही ज्यादा पसंद आता । " तब संत ने कहा, " इसी तरह मैं यहीं अपने घर में रहना अधिक पसंद करता हूँ । पद पाकर आदमी मन की शांति खो बैठता है, कभी उसे अपना सम्मान खोना पड़ता है तो कभी अपनी इच्छा के विरुद्ध जाना पड़ता है । इसलिए जाकर, सम्राट से आदरपूर्वक कह देना कि मुझे सम्मान देने के लिए धन्यवाद , लेकिन मैं जहाँ हूँ , जैसा हूँ।


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