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प्राण बचाए

 

प्राण बचाए

महर्षि च्यवन वनस्पतियों की खोज में जंगल -जंगल घूमा करते थे । एक बार वेशिष्य सुश्रुत के साथ वन में बहुत दूर निकल गए । थक जाने पर वे दोनों एक वृक्ष की छाँव में विश्राम करने लगे । अचानक उन्हें स्त्रियों के रोने की आवाज सुनाई दी । दोनों ने सोचा कि कहीं कोई परिवार विपत्ति में तो नहीं फँस गया है । ऐसी स्थिति में सहायता करना मनुष्य धर्म है, यह सोचकर गुरु और शिष्य आवाज की दिशा में बढ़े । कुछ दूर पहुँचने पर उन्होंने देखा कि एक बालक जमीन पर अचेतावस्था में लेटा है और उसे घेरे उसके परिजन रो रहे हैं । पूछने पर पता लगा कि बालक के पैर में साँप ने डस लिया है । दो ओझा उसके पास बैठकर मंत्र पढ़ रहे थे । सुश्रुत ने आयुर्वेद का अध्ययन किया था । उन्होंने बालक के परिजनों से कहा, मंत्र पढ़ने वाले अपना काम करते रहें । मैं बालक का उपचार कर उसकी जान बचाने का प्रयास करता हूँ ।

 

सुश्रुत ने अपने थैले में से रस्सी निकाली । साँप के काटे हुए स्थान पर उसे बाँधकर चाकू से विषैले स्थान पर चीरा लगाया और विषाक्त खून निकाल दिया । फिर कुछ वनस्पतियों को पीसकर लेप बनाया और घाव पर लगा दिया । देखते - ही - देखते बालक ने आँखें खोल दीं ।

बालक के दादा ने सुश्रुत को गले लगाते हुए कहा, तुम हमारे लिए देवदूत बनकर आए हो । मेरा आशीर्वाद है कि तुम अपने कुल का नाम अमर करोगे ।

आगे चलकर सुश्रुत ने चिकित्सा के क्षेत्र में अनेक प्रयोग किए । उन्हें विश्व के पहले शल्य चिकित्सक के रूप में ख्याति मिली ।


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