ज्ञानी की आयु नहीं देखी जाती
एक क्षेत्र में अनेक वर्षों से बारिश नहीं हो रही थी। अकाल पड़ गया। लोग जब भूखे मरने लगे, तो उस क्षेत्र को छोड़कर अन्यत्र जाने लगे । युवा मुनि सारस्वत सरस्वती नदी के अनन्य आराधक थे। उन्होंने प्रार्थना की कि अकाल पीड़ितों को संकट से उबारने के लिए कुछ कीजिए। सरस्वती ने कहा, 'तुम निश्चिंत होकर मेरे तट पर वेदों का स्वाध्याय करो। मैं संकट हरने का प्रयास करूँगी । '
सारस्वत मुनि ने तट को वेदों की पवित्र ऋचाओं से गुंजायमान कर दिया। सरस्वती नदी ने खेत-खलिहानों को जल से सराबोर कर दिया। खूब अनाज फल पैदा होने लगे।
आस-पास के ऋषियों को पता चल गया कि मुनि सारस्वत के वेदों के स्वाध्याय और तप के कारण अकाल दूर हुआ है। वे सारस्वत मुनि के दर्शन के लिए पहुँचे और उनसे विनम्रतापूर्वक प्रार्थना की कि हमें वेदों का अध्ययन कराने की कृपा करें।
मुनि ने कहा, 'मैं धर्मशास्त्रों के नियमानुसार केवल शिष्यों को ही अध्ययन कराता हूँ।'
ऋषि आयु में मुनि से बड़े थे, जबकि सारस्वत किशोर ही थे। ऋषियों ने कहा, 'तुम हमारे सामने बालक समान हो। हम तुम्हारे शिष्य कैसे बन सकते हैं?'
सारस्वत मुनि विनम्रता से बोले, 'मैंने संकल्प लिया है कि केवल शिष्य को ही अध्ययन कराऊँगा। मैं अपना संकल्प तोड़कर अधर्म का पाप क्यों मोल लूँ?'
एक वृद्ध ऋषि ने कहा, 'ज्ञानी और तपस्वी की आयु नहीं देखी जाती। जो अधिक ज्ञानी होता है, वह कम आयु का होने पर भी गुरु समान होता है।'
ऋषियों ने शिष्य बनकर उनसे वेदों का अध्ययन किया।
0 Comments
If you have any Misunderstanding Please let me know