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सच्चे इनसान बन गए हो

 

सच्चे इनसान बन गए हो

शिबली इराक के एक सूबे का शासनाधिकारी था । सेवानिवृत्त होने के बाद वह सूफी संत जुनैद के पास पहुँचा । उसने उनसे कहा, मुझे खुदा का भक्त व ईमान का पाबंद बनना है । मुझे अपना शिष्य बना लें । संत ने कहा, ईमान का पाबंद ऐसे ही नहीं बना जाता । उसके लिए मान- अपमान की भावना बिलकुल खत्म करनी पड़ती है । शिबली ने कहा, बाबा, आप जो कहेंगे, करूँगा । आदेश दें । सूफी जुनैद ने कहा, दरवेश हो जाओ। बगदाद में एक साल तक भीख माँगो । शिबली एक साल तक भीख माँगकर गुजारा करता रहा । लौटा, तो सूफी जुनैद ने कहा, तुम एक सूबे के हुक्मरान थे। जाओ, जिन लोगों का तुमने जाने- अनजाने बुरा किया, उनसे माफी माँगो ।

शिबली घर - घर जाकर माफी माँगता रहा । एक वर्ष बाद लौटकर आया, तो जुनैद ने कहा, अब एक वर्ष तक गरीबों, अपंगों, बीमारों और असहायों की अपने हाथों से सेवा करो, तब लौटकर आना। शिबली जगह - जगह जाता, बीमारों व असहायों की अपने हाथों से सेवा करता । दवाएँ व फल उनमें बाँटता । किसी को रोते देखता, तो उसका दुःख - दर्द जानकर उसका निवारण करता । दुःखी लोग खुश होकर उसे दुआ देते । वह पूरे शहर में लोकप्रिय होता गया ।

एक वर्ष बाद वह लौटा, तो सूफी जुनैद ने पूछा, अब तुम अपने बारे में क्या सोचते हो ? शिबली ने उत्तर दिया, खुदा के तमाम बंदों में मैं खुद को सबसे छोटा मानता हूँ । जुनैद बोले, अब तुम सच्चे इनसान बन गए हो और अब खुदा के भी प्रिय हो गए हो । 



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