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गृहस्थ ही श्रेष्ठ है

 

गृहस्थ ही श्रेष्ठ है

महर्षि अंगिरा अपने गुरुकुल के शिष्यों को साक्षर बनाने के साथ- साथ यह मार्गदर्शन भी किया करते थे कि उन्हें शिक्षा प्राप्त करने के बाद क्या करना चाहिए । गोपमाल नामक शिष्य को अध्ययन के बाद विदा करते समय महर्षि ने कहा, मैं जानता हूँ कि तुम विरक्त स्वभाव के हो, किंतु वर्णाश्रम धर्म की मर्यादा के अनुसार गृहस्थ धर्म का पालन करते हुए सांसारिक भोगों से विरक्त बने रहना । गोपमाल आशीर्वाद लेकर घर लौटा । माता- पिता ने मालिनी नामक एक सुयोग्य कन्या से उसका विवाह कर दिया । गोपमाल गृहस्थ होते हुए भी भगवत भक्ति में लगा रहता ।

एक बार सांसारिक प्रपंच के कारण उससे कोई मर्यादा विरुद्ध कार्य हो गया । इससे उसे गृहस्थ जीवन से ऊब हो गई । उसने पत्नी से कहा, गृहस्थ में रहकर धर्म का पालन असंभव है । मैं जंगल में जाकर भजन साधना करूँगा । तुम सास- ससुर की सेवा करना।

___ गोपमाल चुपचाप रात को घर से जाने लगा । आहट सुनकर पत्नी भी पीछे- पीछे चल दी । उसने पत्नी को आते देखा, तो बोला, तुम नारी हो, जंगल की कठिनाइयाँ नहीं सहन कर पाओगी। लेकिन वह नहीं मानी और दोनों गुरु अंगिरा के पास पहुँचे।

___ महर्षि ने कहा, गृहस्थी में रहते हुए छोटे - मोटे पाप अनजाने में होते ही रहते हैं । संयम का अभ्यास करो । वृद्ध माता-पिता को छोड़कर जंगल में तपस्या करना ठीक नहीं ।

गुरु के वचन ने दोनों का विवेक जगा दिया । वे घर लौटकर मर्यादाओं का पालन करने लगे । आगे चलकर गोपमाल ने अग्रणी साधक के रूप में ख्याति अर्जित की ।


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