कल्याण का सरल साधन
कुरुक्षेत्र में खग्रास सूर्यग्रहण
लगा था । ब्रज से वसुदेवजी भी वहाँ पहुँचे। ऋषि गणों के शिविर में उन्होंने
शास्त्र प्रवक्ता व्यासजी से अनेक प्रश्न किए । वसुदेवजी ने जिज्ञासावश पूछा, सद्गृहस्थ के लिए कल्याण के सरल साधन कौन से
हैं ?
महर्षि व्सास ने कहा , न्यायपूर्वक अर्जित धन से पूजन - अर्चन तथा यज्ञ करें , इच्छाएँ सीमित रखें , परिवार का पालन- पोषण करें और धर्म व सत्य के
मार्ग पर अटल रहें - इन नियमों के पालन से स्वत : कल्याण हो जाता है ।
वसुदेवजी ने पूछा, ऋषिवर , इच्छाएँ त्यागने के उपाय क्या हैं ? – व्यासजी
ने बताया, धनार्जन करें, परंतु धर्मपूर्वक और न्यायपूर्वक ( ईमानदारी) ही । भले ही भूखे रहना पड़े, पर
अधर्मपूर्वक ( बेईमानी से ) धन कदापि अर्जित न करें । वही धन सार्थक होता है, जो
यज्ञ, दानादि व परोपकार में व्यय किया जाता है । व्यासजी ने आगे कहा, जब
मनुष्य को पौत्र हो जाए, तो उसे गृहस्थ का मोह त्यागकर तपस्या, भजन -
पूजन व समाज के ऋण से उऋण होने में लग जाना चाहिए । वसुदेवजी ने पूछा, ऋषिवर, मुझे
क्या करना चाहिए ? व्यासजी ने बताया, मधुसूदन ने साक्षात् आपके पुत्र के रूप में जन्म लिया
है — यह आपके पूर्वजन्मों के पुण्यों का प्रताप है । आप समस्त कर्तव्यों से मुक्त
हो चुके हैं । देवऋण से विमुक्त होने के लिए आप प्रतिदिन अग्निहोत्र व पंचयज्ञ
करते रहें । वसुदेवजी व्यासजी से आशीर्वाद ग्रहण कर कृतकृत्य हो उठे ।
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