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अनूठा वरदान

 

अनूठा वरदान

राज्यवर्धन परम धर्मात्मा तथा प्रजाहितैषी राजा थे। एक दिन रानी मानिनी उनके सिर में तेल लगा रही थीं कि अचानक उन्हें कुछ सफेद बाल दिखे । रानी चिंतित हो उठीं । राजा को जब पत्नी की चिंता का कारण पता चला, तो वे बोले, जन्म लेने के बाद सभी जवान होते हैं और उन्हें बूढ़ा भी होना पड़ता है । इसलिए चिंता कैसी? फिर एक दिन राजा ने घोषणा की , हमने पूर्ण धर्मानुसार जीवन बिताया है । प्रजा की सेवा में कोई कसर नहीं रखी । अब बुढ़ापे ने अपनी झलक दिखाकर हमें वन में जाकर साधना करने की प्रेरणा दी है । राजा प्रजा में बहुत लोकप्रिय थे। उनका यह निर्णय सुनकर सब चिंतित हो उठे । सबने राजा से वन न जाने का आग्रह किया, पर वे रुकने को तैयार नहीं हुए ।

तब गंधर्व सुदाम ने सुझाव दिया कि भगवान् भास्कर को प्रसन्न किया जाए । वे राजा को सैकड़ों वर्षों तक स्वस्थ बने रहने का वरदान दे सकते हैं । राज्य के अनेक लोगों ने कामरूप पर्वत पर जाकर तप शुरू कर दिया । घोर तप के बाद भगवान् भास्कर ने दर्शन दिए और सभी से वर माँगने को कहा । प्रजाजनों ने कहा, हमारे राजा को सैकड़ों वर्ष तक रोग न हो और बुढ़ापा उनसे दूर रहे । भगवान् भास्कर ने तथास्तु कह दिया । राज्यवर्धन को जब यह बताया गया , तो वे बोले, तब तक तो रानी समेत कोई प्रियजन जीवित नहीं रहेगा । भला मैं अकेला जीवित रहकर क्या करूँगा ? भगवान् भास्कर राजा की इस भावना से बहुत प्रसन्न हुए । उन्होंने राजा के बंधु-बांधवों तथा प्रजा को भी दीर्घायु होने का वरदान दिया ।


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