वार्तिक
संस्कृत साहित्य की परम्परा में उन
ग्रन्थों को भाष्य (शाब्दिक अर्थ - व्याख्या के योग्य), कहते हैं जो दूसरे
ग्रन्थों के अर्थ की वृहद व्याख्या या टीका प्रस्तुत करते हैं। मुख्य रूप से सूत्र
ग्रन्थों पर भाष्य लिखे गये हैं।
सूत्रार्थो वर्ण्यते यत्र, पदैः
सुत्रानुसारिभिः।
स्वपदानि च वर्ण्यन्ते, भाष्यं भाष्यविदो विदुः ॥
अनुवाद : जिस ग्रन्थ में सूत्र में
आये हुए पदों से सूत्रार्थ का वर्णन किया जाता है, तथा ग्रन्थकार अपने द्वारा पद
प्रस्तुत कर उनका वर्णन करता है, उस ग्रन्थ को भाष्य के
जानकार लोग "भाष्य" कहते हैं।)
भाष्य, मोक्ष की प्राप्ति
हेतु अविद्या (ignorance) का नाश करने के साधन के रूप में
जाने जाते हैं। वेदों, ब्राह्मणों, एवं
आरण्यकों का सायणाचार्य कृत भाष्य, प्रस्थानत्रयी (उपनिषद्,
ब्रह्मसूत्र एवं गीता) का शंकराचार्य कृत भाष्य और पाणिनि के
अष्टाध्यायी पर पतंजलि का व्याकरणमहाभाष्य आदि कुछ प्रसिद्ध भाष्य हैं।
भाष्यकार
Mahibhar में भाष्यकार के पाँच कार्य गिनाये
गये हैं-
पदच्छेदः पदार्थोक्तिर् विग्रहो वाक्ययोजना।
आक्षेपेषु समाधानं व्याख्यानं पञ्चलक्षणम् ॥
प्रकार
भाष्य कई प्रकार के होते हैं -
प्राथमिक, द्वितीयक या तृतीयक। जो भाष्य मूल ग्रन्थों की टीका करते हैं उन्हें
प्राथमिक भाष्य कहते हैं। किसी ग्रन्थ का भाष्य लिखना एक अत्यन्त विद्वत्तापूर्ण
कार्य माना जाता है।
अपेक्षाकृत छोटी टीकाओं को वाक्य या
वृत्ति कहते हैं। जो रचनायें भाष्यों का अर्थ स्पष्ट करने के लिये रची गयी हैं
उन्हें वार्तिक कहते हैं।
प्रमुख भाष्यों की सूची
वेदों के भाष्य स्कन्दस्वामी, वेंकटमाधव, सायण,
स्वामी दयानन्द सरस्वती, श्रीपाद दामोदर
सातवलेकर
निघण्टु के भाष्य यास्क
द्वारा
पाणिनि के अष्टाध्यायी का भाष्य पतंजलि का व्याकरणमहाभाष्य
ब्रह्मसूत्र के भाष्य आदि शंकराचार्य का भाष्य (शारीरकभाष्य); रामानुज का
ब्रह्मसूत्र भाष्य (श्रीभाष्य)
उपनिषदों के भाष्य शंकराचार्य ने ईश, केन, कठ, प्रश्न, मुण्डक, माण्डूक्य, तैत्तिरीय, ऐतरेय,
छान्दोग्य, बृहदारण्यक और श्वेताश्वतर- इन
ग्यारह उपनिषदों का भाष्य किया है। वाचस्पति मिश्र ने वैशेषिक दर्शन को छोड़कर
बाकी पाँचो दर्शनों पर भाष्य लिखा है।
योगसूत्र के भाष्य व्यासभाष्य, वाचस्पति मिश्र कृत तत्त्ववैशारदी,
विज्ञानभिक्षु कृत योगवार्तिक, भोजवृत्ति
न्यायदर्शन के भाष्य वात्स्यायनकृत न्यायभाष्य; वाचस्पति मिश्र का
न्यायसूची, वात्स्यायन के न्यायभाष्य पर उद्योतकर की टीका -
न्यायवार्तिक; न्यायवार्तिक पर वाचस्पति मिश्र की टीका -
न्यायवार्तिकतात्पर्यटीका
मीमांसा के भाष्य शाबरभाष्य; शाबर भाष्य पर कुमारिल भट्ट के तीन
वृत्तिग्रंथ हैं - श्लोकवार्तिक, तंत्रवार्तिक तथा टुप्टीका;
वाचस्पति मिश्र कृत न्यायकणिका तथा तत्त्वविन्दु
वेदान्त के भाष्य आदि शंकराचार्य का भाष्य ; वाचस्पति मिश्र कृत
शांकरभाष्य पर टीका - भामती ; मंडन मिश्र के ब्रह्मसिद्धि पर
वाचस्पति मिश्र की व्याख्या –
ब्रह्मतत्त्वसमीक्षा
वैशेषिकसूत्र के भाष्य प्रशस्तपाद भाष्य:
सांख्यदर्शन के भाष्य [विज्ञानभिक्षु] कृत 'सांख्यप्रवचनभाष्य'
गीता के भाष्य आदि
शंकराचार्य का भाष्य
आर्यभटीय के भाष्य भास्कर प्रथम (आर्यभटतन्त्रभाष्य), ब्रह्मगुप्त,
सोमेश्वर, सूर्यदेव (भटप्रकाश), नीलकण्ठ सोमयाजि (आर्यभटीयभाष्य), परमेश्वर
(भटदीपिका) आदि।
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