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भारत की विद्या प्लास्टिक सर्जरी

*भारत की विद्या प्लास्टिक सर्जरी 

सर्जरी का अविष्कार तो हुआ ही है प्लास्टिक सर्जरी का अविष्कार भी यहाँ ही हुआ है। प्लास्टिक सर्जरी मे कहीं की प्रचा को काट के कहीं लगा देना और उसको इस तरह से लगा देना की पता ही न चले यह विद्या सबसे पहले दुनिया को भारत ने दी है। 

1780 मे दक्षिण भारत के कर्णाटक राज्य के एक बड़े भू भाग का राजा था हैदर अली। 1780-84 के बीच मे अंग्रेजों ने हैदर अली के ऊपर कई बार हमले किये और एक हमले का जिक्र एक अंग्रेज की डायरी मे से मिला है। एक अंग्रेज का नाम था कोर्नेल कूट उसने हैदर अली पर हमला किया पर युद्ध मे अंग्रेज परास्त हो गए और हैदर अली ने कोर्नेल कूट की नाक काट दी। 

कोर्नेल कूट अपनी डायरी मे लिखता है कि “मैं पराजित हो गया, सैनिको ने मुझे बन्दी बना लिया, फिर मुझे हैदर अली के पास ले गए और उन्होंने मेरा नाक काट दिया।” फिर कोर्नेल कूट लिखता है कि “मुझे घोडा दे दिया भागने के लिए नाक काट कर हाथ मे दे दिया और कहा कि भाग जाओ तो मैं घोड़े पर बैठ कर भागा। भागते भागते मैं बेलगाँव मे आ गया, बेलगाँव मे एक वैद्य ने मुझे देखा और पूछा मेरी नाक कहाँ कट गयी? तो मैं झूठ बोला कि किसी ने पत्थर मार दिया, तो वैद्य ने बोला कि यह पत्थर मारी हुई नाक नही है यह तलवार से काटी हुई नाक है, मैं वैद्य हूँ मैं जानता हूँ। तो मैंने वैद्य से सच बोला कि मेरी नाक काटी गयी है। वैद्य ने पूछा किसने काटी? मैंने बोला तुम्हारी राजा ने काटी। वैद्य ने पूछा क्यों काटी तो मैंने बोला कि उनपर हमला किया इसलिए काटी। फिर वैद्य बोला के तुम यह काटी हुई नाक लेकर क्या करोगे? इंग्लैंड जाओगे? तो मैंने बोला इच्छा तो नही है फिर भी जाना ही पड़ेगा।” 

यह सब सुनके वो दयालु वैद्य कहता है कि मैं तुम्हारी नाक जोड़ सकता हूँ, कोर्नेल कूट को पहले विश्वास नही हुआ, फिर बोला ठीक है जोड़ दो तो वैद्य बोला तुम मेरे घर चलो। फिर वैद्य कोर्नेल को ले गया और उसका ऑपरेशन किया और इस ऑपरेशन का तीस पन्नों मे वर्णन है। ऑपरेशन सफलता पूर्वक संपन्न हो गया नाक उसकी जुड़ गयी, वैद्य जी ने उसको एक लेप दे दिया बनाकर और कहा कि यह लेप ले जाओ और रोज सुबह शाम लगाते रहना। वो लेप लेकर चला गया और 15-17 दिन के बाद बिलकुल नाक उसकी जुड़ गयी और वो जहाज मे बैठ कर लन्दन चला गया। 

फिर तीन महीने बाद ब्रिटिश पार्लियामेन्ट मे खड़ा हो कोर्नेल कूट भाषण दे रहा है और सबसे पहला सवाल पूछता है सबसे कि आपको लगता है कि मेरी नाक कटी हुई है? तो सब अंग्रेज हैरान होकर कहते है अरे नही नही तुम्हारी नाक तो कटी हुई बिलकुल नही दिखती। फिर वो कहानी सुना रहा है ब्रिटिश पार्लियामेन्ट में कि मैंने हैदर अली पर हमला किया था, मैं उसमे हार गया उसने मेरी नाक काटी फिर भारत के एक वैद्य ने मेरी नाक जोड़ी और भारत की वैद्यों के पास इतनी बड़ी हुनर है इतना बड़ा ज्ञान है कि वो काटी हुई नाक को जोड़ सकते है।

फिर उस वैद्य जी की खोज खबर ब्रिटिश पार्लियामेन्ट मे ली गयी, फिर अंग्रेजो का एक दल आया और बेलगाँव की उस वैद्य को मिला, तो उस वैद्य ने अंग्रेजो को बताया के यह काम तो भारत के लगभग हर गाँव मे होता है; मैं अकेला नहीं हूँ ऐसा करने वाले हजारो लाखों लोग है। तो अंग्रेजों को हैरानी हुई कि कौन सिखाता है आपको? तो वैद्य जी कहने लगे कि हमारे इसके गुरुकुल चलते है और गुरुकुलों मे सिखाया जाता है। 

फिर अंग्रेजो ने उस गुरुकुलों मे गए उहाँ उन्होंने एडमिशन लिया, विद्यार्थी के रूप में भर्ती हुए और सिखा, फिर सिखने के बाद इंग्लॅण्ड मे जाके उन्होंने प्लास्टिक सर्जरी शुरू की। और जिन जिन अंग्रेजों ने भारत से प्लास्टिक सर्जरी सीखी है उनकी डायरियां हैं। एक अंग्रेज अपने डायरी मे लिखता है कि ‘जब मैंने पहली बार प्लास्टिक सर्जरी सीखी, जिस गुरु से सीखी वो भारत का विशेष आदमी था और वो नाई था जाती का। मतलब जाती का नाई, जाती का चर्मकार या कोई और हमारे यहाँ ज्ञान और हुनर के बड़े पंडित थे। नाई है, चर्मकार है इस आधार पर किसी गुरुकुल मे उनका प्रवेश वर्जित नही था, जाती के आधार पर हमारे गुरुकुलों मे प्रवेश नही हुआ है, और जाती के आधार पर हमारे यहाँ शिक्षा की भी व्यवस्था नही था। वर्ण व्यवस्था के आधार पर हमारे यहाँ सबकुछ चलता रहा। तो नाइ भी सर्जन है चर्मकार भी सर्जन है। और वो अंग्रेज लिखता है के चर्मकार जादा अच्छा सर्जन इसलिए हो सकता है कि उसको चमड़ा सिलना सबसे अच्छे तरीके से आता है। 

एक अंग्रेज लिख रहा है के ‘मैंने जिस गुरु से सर्जरी सीखी वो जात का नाई था और सिखाने के बाद उन्होंने मुझसे एक ऑपरेशन करवाया और उस ऑपरेशन की वर्णन है। 1792 की बात है एक मराठा सैनिक की दोनों हाथ युद्ध मे कट गए है और वो उस वैद्य गुरु के पास कटे हुए हाथ लेकर आया है जोड़ने के लिए। तो गुरु ने वो ऑपरेशन उस अंग्रेज से करवाया जो सिख रहा था, और

वो ऑपरेशन उस अंग्रेज ने गुरु के साथ मिलकर बहुत सफलता के साथ पूरा किया। और वो अंग्रेज जिसका नाम डॉ थॉमस क्रूसो था अपनी डायरी मे कह रहा है कि “मैंने मेरे जीवन मे इतना बड़ा ज्ञान किसी गुरु से सिखा और इस गुरु ने मुझसे एक पैसा नही लिया यह मैं बिलकुल अचम्भा मानता हूँ आश्चर्य मानता हूँ।” और थॉमस क्रूसो यह सिख कर गया है और फिर उसने प्लास्टिक सेर्जेरी का स्कूल खोला, और उस स्कूल मे फिर अंग्रेज सीखे है, और दुनिया मे फैलाया है। दुर्भाग्य इस बात का है कि सारी दुनिया मे प्लास्टिक सेर्जेरी का उस स्कूल का तो वर्णन है लेकिन इन वैद्यो का वर्णन अभी तक नही आया विश्व ग्रन्थ में जिन्होंने अंग्रेजो को प्लास्टिक सर्जेरी सिखाई थी।

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