*ओ३म् विष्णो॒: कर्मा॑णि पश्यत॒ यतो॑ व्र॒तानि॑ पस्प॒शे ।*
*इन्द्र॑स्य॒ युज्य॒: सखा॑ ॥*
ऋग्वेद 1/22/19
कोटि-कोटि धन्यवाद तुझे भगवन्
साथ तू सभी के रहे जनम जनम
सारे जगत् का हितैषी सखा
नि:स्वार्थ न्याय युक्त सर्वहितकारी प्रभु
परिपूर्ण नियमबद्ध शासन तेरा
शासन तेरा
कोटि-कोटि धन्यवाद तुझे भगवन्
साथ तू सभी के रहे जनम जनम
सब जीवो का सर्वदा और सर्वत्र
सच्चा साथी है और सच्चा ही मित्र
तेरी कृपा से अहिंसा अस्तेय
लेते व्रत ब्रह्मचर्य और सत्य का
कोटि-कोटि धन्यवाद तुझे भगवन्
साथ तू सभी के रहे जनम जनम
जुड़वाँ सखा सारे जीवों का तू
ऐसा सखा तो जगत् में नहीं
अन्य हैं मित्र अस्थाई अस्थिर
स्वार्थ के वश हैं कहीं ना कहीं
कोटि-कोटि धन्यवाद तुझे भगवन्
साथ तू सभी के रहे जनम जनम
दिव्य व्यवस्था प्रभु की निहारें
मुग्ध वो इन्द्र पे होवें ना क्यों !
प्रीतम सखा के प्रति हो आवर्जित
उसको बसाये हृदय में ना क्यों ?
कोटि-कोटि धन्यवाद तुझे भगवन्
साथ तू सभी के रहे जनम जनम
अब तो व्रतों का परिपूर्ण पालन
भक्त-हृदय में समाए सहज
सत्य अहिंसादि व्रत के पालन की
जीवन की बगिया में छाए महक
कोटि-कोटि धन्यवाद तुझे भगवन्
साथ तू सभी के रहे जनम जनम
सारे जगत् का हितैषी सखा
नि:स्वार्थ न्याय युक्त सर्वहितकारी प्रभु
परिपूर्ण नियमबद्ध शासन तेरा
शासन तेरा
कोटि-कोटि धन्यवाद तुझे भगवन्
साथ तू सभी के रहे जनम जनम
*रचनाकार व स्वर :- पूज्य श्री ललित मोहन साहनी जी – मुम्बई*
*रचना दिनाँक :--* 5.5.2007 10.45pm
*राग :- भूपाली*
गायन समय रात्रि का प्रथम प्रहर, ताल कहरवा 8 मात्रा
*शीर्षक :- भगवान परिश्रमी की सहायता करते हैं* भजन678वां
*तर्ज :- *मोळी मोळी कातिरुन्दर(मलयालम)
हितैषी = हित चाहनेवाला
अस्तेय = चोरी ना करना
आवर्जित = खींचा हुआ,वश में किया हुआ
*प्रस्तुत भजन से सम्बन्धित पूज्य श्री ललित साहनी जी का स्वाध्याय-सन्देश :-- 👇👇*
भगवान् परिश्रमी की सहायता करते हैं
जो जीव का सदा साथ निभाने वाला सखा है, जिसके अपार अनुग्रह से मनुष्य व्रतों, श्रेष्ठ कर्मों का स्पर्श कर पाता है, उत्तम उत्तम कर्मों का आचरण कर पाता है, उस अनन्त सामर्थ्य के धनी सर्वव्यापक प्रभु के कर्मों को देखो!जीव का जुड़वा सखा तो प्रभु ही है।अन्य सब सखा तो जुड़ने बिछड़ने वाले हैं। जीव का सच्चा स्थाई और नि:स्वार्थ मित्र तो बस एक सर्वव्यापक प्रभु ही है। अन्य तो सब अस्थिर अस्थाई एक देशी सखा हैं। वे भी प्राय: स्वार्थवश बने हुए मित्र होते हैं। जब स्वार्थ सिद्ध हुआ तब बहुत शीघ्र ऐसे बन जाते हैं मानो कभी कोई परिचय ही ना था। परन्तु इन सब मित्रों से ऊपर उठकर जब यह जीव उस प्यारे और सब जग से न्यारे अपने परम मित्र के अद्भुत निस्वार्थ न्याय युक्त सर्वहितकारी कर्मों को देखता है । उसके अद्भुत व्रत उसके अनुपम नियम और उसकी दिव्य व्यवस्थाओं को देखता है तब वह जीव उस पर सहज ही मुग्ध हो जाता है। सहज ही उसका हृदय से प्रशंसक हो जाता है। उस समय यह अपने उस प्रियतम सखा के प्रति इतना आवर्जित(वश में) हो जाता है कि इसको यह अनुभव होने लगता है कि वह प्रभु उसमें बस रहा है। तब सहज ही वह भी अपने क्षेत्र अनुसार वैसे ही आचरण कर पाता है,अर्थात् अहिंसा सत्य आदि व्रतों का,उत्तमोत्तम नि:स्वार्थ और सर्वहितकारी कर्मों का, नियम और व्यवस्थाओं का सहज ही स्पर्श कर पाता है, सहज ही आचरण कर पाता है।
🎧828 वां वैदिक भजन🕉️👏🏽
🕉👏ईश भक्ति भजन
भगवान ग्रुप द्वारा🙏🌹
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🙏 *Today's vaidik bhajan* 🙏 1257
*om vishno॒: karma॑ni pashyat॒ yato॑ vra॒tani॑ pasp॒she .*
*indra॑sya॒ yujya॒: sakha॑ ॥*
rigved 1/22/19
koti-koti dhanyawaad tujhe bhagawan
sath too sabhi ke rahe janam janam
saare jagat kaa hitaishi sakhaa
ni:swarth nyaay yukta sarvahitakaari prabhu
paripurna niyamabaddh shaasan teraa
shaasan teraa
koti-koti dhanyawaad tujhe bhagawan
saath too sabhi ke rahe janam janam
sab jivon kaa sarvadaa aur sarvatra
sachaa saathi hai aur sachaa hi mitra
teri kripaa se ahinsaa asteya
lete vrat bramacharya aur satya kaa
koti-koti dhanyawaad tujhe bhagavan
saath too sabhi ke rahe janam janam
judvaan sakhaa saare jivon kaa too
aisaa sakhaa to jagat men nahin
anya hain mitra asthaai asthir
swarth ke vash hain kahin naa kahin
koti-koti dhanyawaad tujhe bhagawan
saath too sabhi ke rahe janam janam
divya vyavastha prabhu ki nihaaren
mugdh vo indra pe hoven na kyon !
pritam sakhaa ke prati ho aavarjit
usako basaayen hridaya men na kkyon?
koti-koti dhanyawaad tujhe bhagavan
sath too sabhi ke rahe janam janam
ab to vraton ka paripurna paalan
bhakt-hridaya men samaaye sahaj
satya ahinsaadi vrat ke paalan ki
jivan ki bagiyaa men chhaaye mahak
koti-koti dhanyawaad tujhe bhagavan
saath too sabhi ke rahe janam janam
sare jagat kaa hitaishi sakhaa
ni:swarth nyaay yukt sarvahitakaari prabhu
paripurna niyamabaddh shaasan teraa
shasan teraa
koti-koti dhanyawaad tujhe bhagavan
saath tu sabhi ke rahe janam janam*
**lyricist instrumentalist and singer :- pujya shri lalit mohan sahani ji – mumbai
** composition date :--* 5.5.2007 10.45pm
*raag :- bhupali*
singing time first face of the night
taal kaharava 8 beats
Title:- God helps the diligent
* bhajan 678th
*tune:- *Mozhi mozhi kathirunder (malayalam)
👇🏼Meaning of words👇🏼
Hitaishi= seeking the interest
Asteya= not to steal
Aavarjit=drown, subdued
👇Meaning of bhajan👇
Thank you so much, Lord
Be with you all for life and life
Friendly friend of the whole world
Lord of all benevolence with selfless justice
Your perfectly regulated rule
The rule is yours
Thank you so much, Lord
Be with you all for life and life
of all beings always and everywhere
He is a true companion and a true friend
By your grace, non-violence is unstoppable
taking vows of celibacy and truth
Thank you so much, Lord
Be with you all for life and life
You are the twin friend of all beings
There is no such friend in the world
Others are friends temporarily unstable
They are subject to selfishness somewhere
Thank you so much, Lord
Be with you all for life and life
Look to the divine order of the Lord
Mugdh wo Indra pe hove na kyon!
Be averted towards your beloved friend
Why not settle him in your heart?
Thank you so much, Lord
Be with you all for life and life
Now the perfect observance of the vows
Easily absorbed in the heart of the devotee
He observed the vows of truth and non-violence
Smells in the garden of life
Thank you so much, Lord
Be with you all for life and life
Friendly friend of the whole world
Lord of all benevolence with selfless justice
Your perfectly regulated rule
The rule is yours
Thank you so much, Lord
Be with you all for life and life
🕉👏Eesh bhakti bhajan
By bhagwan group🙏🌹
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