🕉️🙏ओ३म् सादर नमस्ते जी 🙏🕉️
🌷🍃 आपका दिन शुभ हो 🍃🌷
दिनांक - -३० अक्तूबर २०२४ ईस्वी
दिन - - बुधवार
🌘 तिथि -- त्रयोदशी ( १३:१५ तक तत्पश्चात चतुर्दशी )
🪐 नक्षत्र - - हस्त ( २१:४३ तक तत्पश्चात चित्रा )
पक्ष - - कृष्ण
मास - - कार्तिक
ऋतु - - शरद
सूर्य - - दक्षिणायन
🌞 सूर्योदय - - प्रातः ६:३२ पर दिल्ली में
🌞 सूर्यास्त - - सायं १७:३७ पर
🌘चन्द्रोदय -- २९:२० पर
🌘 चन्द्रास्त - - १६:२३
सृष्टि संवत् - - १,९६,०८,५३,१२५
कलयुगाब्द - - ५१२५
विक्रम संवत् - -२०८१
शक संवत् - - १९४६
दयानंदाब्द - - २००
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🚩‼️ओ३म्‼️🚩
🔥ईश्वर प्राप्ति का साधन है समाधी, और इसके साधन अनेक हैं लेकिन सभी साधनों की अंतिम अवस्था समाधि ही होगी। किसी भी आध्यात्मिक साधन का बार-बार प्रयोग करने से व्यक्ति आगे बढ़ता जाता है और साधन का प्रयोग न करने से व्यक्ति अपनी प्रगति में खुद ही रुकावट बन जाता है।
हम संसार में अपने पूर्वजन्मों के कर्मों का फल भोगने तथा जन्म-मरण के चक्र से छूटने वा दुःखों से मुक्त होने के लिये आये हैं। मनुष्य जो बोता है वही काटता है। यदि गेहूं बोया है तो गेहूं ही उत्पन्न होता है। हमने यदि शुभ कर्म किये हैं तो फल भी शुभ होगा और अशुभ कर्मों का फल अशुभ ही होगा। मनुष्य का शरीर अनेक ज्ञान व विज्ञान का समावेश करके परमात्मा ने बनाया है। मनुष्य अपने जैसा व अन्य प्राणियों के शरीर जैसी रचना नहीं कर सकता।
जो विद्वान सत्य आध्यात्मिक ज्ञान से युक्त होते हैं वह ईश्वर व जीवात्मा के अस्तित्व, स्वरूप तथा इनके गुण, कर्म तथा स्वभाव को जानते हैं। जो भौतिक विषयों का ज्ञान प्राप्त करते अथवा अल्पशिक्षित होते हैं वह बिना स्वाध्याय, विद्वानों के उपदेशों के श्रवण वा सत्संग के ईश्वर व जीवात्मा को यथार्थ रूप में नहीं जानते। मत-मतान्तरों के ग्रन्थ अविद्या से युक्त होने के कारण उनमें ईश्वर का सत्य ज्ञान उपलब्ध नहीं होता। इस कारण उनके अनुयायी ईश्वर व जीवात्मा के सत्य ज्ञान से वंचित हैं और परिणामस्वरूप वह ईश्वर का ज्ञान न होने के कारण ईश्वर का साक्षात्कार नहीं कर सकते।
ईश्वर की प्राप्ति के लिये मनुष्य को वैदिक साहित्य का अध्ययन करना होता है जिसमें वेद व इसके भाष्य सहित उपनिषद, दर्शन, मनुस्मृति, सत्यार्थप्रकाश, तथा ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका आदि ग्रन्थों का सर्वोपरि स्थान है। इन ग्रन्थों के अध्ययन से ईश्वर को जाना जाता है और योग साधना के द्वारा मनुष्य ध्यान-समाधि अवस्था को प्राप्त कर ईश्वर का ज्ञान, प्रत्यक्ष वा साक्षात्कार करता है। आर्यसमाज के दूसरे नियम में ऋषि दयानन्द ने ईश्वर के सत्यस्वरूप सहित उसके गुण, कर्म व स्वभावों का वर्णन किया है। इस नियम को कण्ठ वा स्मरण कर इसका चिन्तन करते रहने पर मनुष्य ईश्वर के सत्यस्वरूप को जान लेता है।
ईश्वर का मुख्य व निज नाम ओ३म् है। ओ३म् के जप तथा गायत्री मन्त्र के अर्थ सहित जप से भी मनुष्य ईश्वर को प्राप्त कर अपने जीवन को दुःखों से मुक्त एवं सुखों से युक्त कर सकते हैं। मनुष्य का जन्म ईश्वर व जीवात्मा को जानकर ईश्वर की उपासना करने सहित दुःखों को दूर करने तथा सुखों की प्राप्ति के लिये ही हुआ है। इसी आवश्यकता की पूर्ति व मनुष्यों को ईश्वर के स्वरूप व उपासना के महत्व सहित उपासना की विधि का ज्ञान कराने के लिये हमारे वैदिक ऋषियों ने अनेक शास्त्रों व ग्रन्थों की रचना की है। ईश्वर व आत्मा को जानने सहित ईश्वर के कर्म-फल विधान को जान लेने पर मनुष्य दुःखों के कारण अशुभ कर्मों का त्याग कर दुःखों से मुक्त हो जाता है और शुभ कर्मों को करके इससे मिलने वाले सुखों को प्राप्त कर जन्म - जन्मान्तरों में सुखों को प्राप्त करता है।
आध्यात्मिक पथ पर चलने में कभी सफलता तो कभी असफलता मिलती रहती है। उचित साधनों का प्रयोग करने से सफलता और अनुचित साधनों का प्रयोग करने से विफलता मिलती है।
ध्यान रहे कि जब कभी भी विफलता मिले तो व्यक्ति निराश ना हो क्योंकि निराशावादी बनने से अधिक हानि होती है, आशावादी व्यक्ति कभी न कभी अपने लक्ष्य को प्राप्त कर ही लेता है। जब कभी भी भूल हो जाए तो उसका प्रायश्चित(पश्चाताप) करके अर्थात कोई उचित दंड देकर फिर से उस कार्य को संपन्न करें। पश्चाताप करने का लाभ यह है कि उस गलती के करने की वृत्ति समाप्त हो जाती है तथा व्यक्ति सावधान हो जाता है।
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🕉️🚩 आज का वेद मंत्र 🚩🕉️
🌷ओ३म् शि॒वो भू॒त्वा मह्य॑मग्ने॒ऽअथो॑ सीद शि॒वस्त्वम्। शि॒वाः कृ॒त्वा दिशः॒ सर्वाः॒ स्वं योनि॑मि॒हास॑दः॥१७॥
💐भावार्थ - राजा को चाहिये कि आप धर्मात्मा होके प्रजा के मनुष्यों को धार्मिक कर और न्याय की गद्दी पर बैठ के निरन्तर न्याय किया करे॥१७॥
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🔥विश्व के एकमात्र वैदिक पञ्चाङ्ग के अनुसार👇
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🙏 🕉🚩आज का संकल्प पाठ 🕉🚩🙏
(सृष्ट्यादिसंवत्-संवत्सर-अयन-ऋतु-मास-तिथि -नक्षत्र-लग्न-मुहूर्त) 🔮🚨💧🚨 🔮
ओ३म् तत्सत् श्रीब्रह्मणो द्वितीये प्रहरार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे 【एकवृन्द-षण्णवतिकोटि-अष्टलक्ष-त्रिपञ्चाशत्सहस्र- पञ्चर्विंशत्युत्तरशततमे ( १,९६,०८,५३,१२५ ) सृष्ट्यब्दे】【 एकाशीत्युत्तर-द्विसहस्रतमे ( २०८१) वैक्रमाब्दे 】 【 द्विशतीतमे ( २००) दयानन्दाब्दे, काल -संवत्सरे, रवि- दक्षिणायने , शरद -ऋतौ, कार्तिक - मासे, कृष्ण पक्षे , त्रयोदश्यां
तिथौ, हस्त
नक्षत्रे, बुधवासरे,
, शिव -मुहूर्ते, भूर्लोके जम्बूद्वीपे, आर्यावर्तान्तर गते, भारतवर्षे भरतखंडे...प्रदेशे.... जनपदे...नगरे... गोत्रोत्पन्न....श्रीमान .( पितामह)... (पिता)...पुत्रोऽहम् ( स्वयं का नाम)...अद्य प्रातः कालीन वेलायाम् सुख शांति समृद्धि हितार्थ, आत्मकल्याणार्थ,रोग,शोक,निवारणार्थ च यज्ञ कर्मकरणाय भवन्तम् वृणे
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