*रावण को लेकर घमासान*
मुझे एक मित्र ने एक पत्र की प्रतिलिपि भेजी। इस पत्र में एक आदिवासी संगठन ने यह लिखा था की रावण आदि उनके पूर्वज थे। वे लोग आदिवासी है न की हिन्दू है। उनके पूर्वजों के पुतलों का दशहरे पर दहन नहीं होना चाहिए। क्यूंकि यह उनकी संस्कृति पर आघात है। अगर ऐसा हुआ तो आदिवासी समाज न्यायालय जायेगा।
इस पत्र से एक बात तो स्पष्ट थी कि यह पत्र लिखने वाले तो कठपुतलियां हैं। इसके पीछे कोई NGO वाला, अम्बेडकरवादी, साम्यवादी, नक्सली या ईसाई दिमाग सक्रिय हैं। जो इन लोगों के भोलेपन का फायदा उठाकर अपनी दुकानदारी चमकाना चाहता हैं। असल में वन क्षेत्र में रहने वाले आदिवासी समाज के लोग अशिक्षित एवं पिछड़े हुए हैं। इनकी गरीबी का फायदा उठाकर इन्हें ईसाई बनाने के लिए अम्बेडकरवाद का लबादा लपेट कर ईसाई मिशनरी बड़े पैमाने पर लगी हुई हैं। इन लोगों को कानूनी धाराएं जानने, पुलिस में शिकायत करने , कोर्ट में केस करने की फुरसत कहां। गरीबी इतनी है कि दो समय के भोजन का जुगाड़ हो जाये तो बड़ी बात है। इसलिए इनके मध्य छुपे हुए भेड़िये को यथोचित उत्तर देना अत्यंत आवश्यक हैं।
सबसे पहले लंकापति रावण सारस्वत ब्राह्मण पुलस्त्य ऋषि का पौत्र और विश्रवा का पुत्र था। रावण वेद आदि शास्त्रों का प्रखर ज्ञाता ,प्रकान्ड विद्वान पंडित एवं महाज्ञानी था। वह वेदों की शिक्षा को भूलकर गलत रास्ते पर चल पड़ा था। जिसकी सजा श्री रामचंद्र जी ने उसे दी। फिर किस आधार पर रावण को कुछ नवबौद्ध, अम्बेडकरवादी अपना पूर्वज बताते हैं? कोई आधार नहीं। केवल कोरी कल्पना मात्र है।
*दूसरी बात वनवासी कौन है? श्री राम के काल में वानर जाति अर्थात वन में रहने वाली जाति का स्पष्ट उल्लेख है। किष्किन्धा राज्य जंगलों में बसा हुआ था। जिसका राजा सुग्रीव था।* शबरी से लेकर वाल्मीकि मुनि का आश्रम भी वन में था। पंचवटी , चित्रकूट आदि में ऋषि मुनियों का प्रवास था। इससे यही सिद्ध होता है कि प्राचीन काल से वन में अनेक लोगों का प्रवास होता आया हैं। वन में प्रवास करने वालों का शहरों में प्रवास करने वालों से सम्बन्ध था। सभी एक वैदिक धर्म को मानने वाले थे। फिर यह कल्पना करना कि रावण आदिवासियों के राजा थे। जो प्रकृति पूजक थे। एक मिथक नहीं तो क्या है? आदिवासी समाज को हिन्दू समाज से अलग थलग सिद्ध कर उनका धर्मान्तरण करने का यह एक सुनियोजित षड़यंत्र है। इस षड़यत्र को चर्च बढ़ावा दे रहा है।
तीसरी सबसे महत्वपूर्ण बात जानिए। इसे जानकार भी कोई रावण को अपना महान पूर्वज बताये। तो आप उसे मुर्ख ही कहेंगे। रावण यह व्यक्ति था। जिसने एक विवाहिता स्त्री सीता छदम वेश धारण कर उसका अपहरण किया था। क्या आप ऐसे अपहरणकर्ता को अपना महान पूर्वज बताएँगे? बिलकुल नहीं।
रावण एक विलासी था। अनेक देश - विदेश की सुन्दरियां उसके महल में थीं। हनुमान अर्धरात्रि के समय माता सीता को खोजने के लिए महल के उन कमरों में घूमें जहाँ रावण की अनेक स्त्रियां सोई हुई थी। नशा कर सोई हुई स्त्रियों के उथले वस्त्र देखकर हनुमान जी कहते हैं।
कामं दृष्टा मया सर्वा विवस्त्रा रावणस्त्रियः ।
न तु मे मनसा किञ्चद् वैकृत्यमुपपद्यते ।।
*अर्थात* - मैंने रावण की प्रसुप्तावस्था में शिथिलावस्त्रा स्त्रियों को देखा है, किन्तु इससे मेरे मन में किञ्चन्मात्र भी विकार उत्पन्न नहीं हुआ। जब सब कमरों में घूमकर विशेष-विशेष लक्षणों से उन्होंने यह निश्चिय किया कि इनमें से सीता माता कोई नहीं हो सकती।
ऐसा निश्चय हनुमान जी ने इसलिए किया क्यूंकि वह जानते थे की माता सीता चरित्रवान स्त्री है। न की रावण और उसकी स्त्रियों के समान भोगवादी है। अंत में सीता उन्हें अशोक वाटिका में निरीह अवस्था में मिली।
अगर आपका पूर्वज शराबी, व्यभिचारी, भोग-विलासी, अपहरणकर्ता, कामी, चरित्रहीन, अत्याचारी हो तो आप उसके गुण-गान करेंगे अथवा उस निंदा करेंगे?
स्पष्ट है उसकी निंदा करेंगे। बस हम यही तो कर रहे है। यही सदियों से दशहरे पर होता आया है। रावण का पुतला जलाने का भी यही सन्देश है कि पापी का सर्वदा नाश होना चाहिए।
एक ओर वात्सलय के सागर, सदाचारी, आज्ञाकारी, पत्नीव्रता, शूरवीर, मर्यादापुरुषोत्तम श्री राम है।
दूसरी ओर शराबी, व्यभिचारी, भोग-विलासी, अपहरणकर्ता, कामी, चरित्रहीन, अत्याचारी रावण है।
किसकी जय होनी चाहिए। किसकी निंदा होनी चाहिए। इतना तो साधारण बुद्धि वाले भी समझ जाते है।
*आप क्यों नहीं समझना चाहते? इसलिए यह घमासान बंद कीजिये और पक्षपात छोड़कर सत्य को स्वीकार कीजिये।*
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