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अपनी ना समझी और दूसरे का आश्रय भयानक साक्षात्कार मृत्यु का है

 


अपनी ना समझी और दूसरे का आश्रय भयानक साक्षात्कार मृत्यु का है। 

     यह मेरा स्वयं का अनुभव है, जैसा आज के समय में अनचाहे बच्चे पैदा हो रहे हैं, ऐसा पहले भी होता था, लोग धनी और सम्पन्न थे यद्यपि गैरजिम्मेदार मक्कार निकम्मे कामचोर आलसी थे, यह माँ बाप के द्वारा संरक्षित 'संपत्ति का दूरप्रयोग  करने के और कुछ जानते ही नहीं थे, भारत पर शासन करने वाले विदेशी आक्रांताओं ने यहाँ के लोगों के यह सब लक्षण देख कर किया था, क्योंकि इनके पास अकूत धन वैभव ऐश्वर्य समृद्धि का मूल श्रोत इनके पुर्वजो द्वारा इन्हे दे दिया गया था।, जैसा की हम सब जानते हैं कि महाभारत काल के भयंकर विश्वयुद्ध के बाद जब पुरे विश्व में विद्वान योद्धा ज्ञानी पुरुषों का अकाल पड़ गया था।,  क्योंकि यह सब भारी संख्या में आपस में लड़कर समाप्त हो चुके थे, 'विश्व के दूसरे देश भारत के अतिरिक्त जो देश थे वह सब धिरे धिरे अपने आपको पुनः व्यवस्थित कर लिया था कुछ सौ सालो में, लेकिन भारत जहाँ यह युद्ध लड़ा गया था वह देश बहुत बुरी तरह से हताहत घायल हुआ था, बस यह मान लिजिए के बड़ी कठिनाइयों के साथ अपनी सांसे ले रहा था। कही किसी कोने इस देश की शरीर में प्राण अभी बचे थे, यह स्वयं को संतुलित कर पाता उससे पहले इस देश पर बाहरी जो कभी भारत के गुलाम थे वह भारत को गुलाम बनाने के लिए हमेशा लार टपकाते रहते थे, जब उन पर नियंत्रण करने वाले नहीं रहे, तो वह सभी अनियंत्रित आताताई पागल भेड़िये के झुण्ड की तरह ऐसे असुरक्षित मेमेनो के झुण्ड पर धावा बोल देते हैं, और अपने मन की मौज उड़ाते हैं, उसी प्रकार से यहा महाभारत युद्ध के बाद बचे हुये लोग भारत में लाचार बेवस असहाय असुरक्षित मेमने की तरह भारती थे, हजारों साल तक यह भारतिय यहा के मूल निवासी जो कभी उनके पुर्वजो के गुलाम थे आज वही लोग अपने मन मर्जी से शासन करने लगे। महाभारत के बाद सर्वप्रथम भारत पर आक्रमण करने वाले पश्चिम दिशा से आए हुए लोग थे, फारस की खाड़ी मार्ग से यह पहले यहां स्वयं को सेवक के रूप में प्रसिद्ध किया, इनकी अपनी कोई संस्कृत सभ्यता नहीं थी, इसलिए इन्होने पहले यहां भारत में उपलब्ध वैदिक सिद्धांत का अनुकरण किया और यह दुष्प्रचार किया कि भारतिय वैदिक संस्कृति सभ्यता' परंपरा में बहुत दोष है, इस दोष कमी के कारण ही यहां भारत में भयंकर महाभारत का संग्राम हुआ, इसमें सुधार की आवश्यकता है अंयथा भविष्य में भारत मे फिर से महासंग्राम हो सकता है। यहा की भोली भाली औरते और बच्चे जो नादान थे वह सब इन दुष्टों के बहकावे में आकर इनका साथ देने लगे, महाभारत युद्ध के बाद भारी मात्रा में वृद्ध भी बचे थे,वह भी लाचार बेबश थे उनको सहारे की जरूरत थी वह अपने घरों के बच्चों और औरतों को पूर्णतः नियंत्रित करने में असमर्थ सिद्ध हो चुके थे क्योकि युवा सोलह साल के उपर के सभी शक्तिशाली पुरुष मार दिए गए, उनकी विधवा बहुत सारी औरते भारी संख्या में बची थी जिनमें अधिकतर औरतों ने व्यभिचार करना शुरु कर दिया जो उनके योग्य पुरुष नहीं थे उनके साथ भी संभोग कराके देश की आबादी को बढ़ाने का कार्य किया, क्योंकि महाभारत या रामायण किसी औरतों की सेना के साथ लड़ने का कोई प्रमाण नहीं मिलता हैं, क्या आपने ऐसा कभी विचार किया है। क्या ओरते कमजोर थी, बुद्धिमान नहीं थी, या इनमे शक्ति की कमी थी यह सेना का संचालन करने में असमर्थ थी, यह तो औरतों के साथ इंसाफ नहीं हुआ कुछ बुद्धिजीवी औरते ऐसा मान सकती हैं । औरत को हमेशा इस संसार में चलने के लिए एक रक्षक कि जरूरत पड़ती है, जबकि पुरुष अकेला चल सकता है। आज की औरत संसार में अकेला रहने का चलने का दम भरती है और कुछ हैं जो चलती हैं इसके पिछे कारण है की पुरुष कमजोर हो चुका है। सब जगह पुरुष कमजोर नहीं हैं लेकिन जहाँ भी पुरुष कमजोर है औरत उसका नाजायज फायदा उठाती है और उस पुरुष का सर्वनाश कर देती है|

    महाभारत और रामायण के दो बड़े संग्राम के युद्ध के बाद बीच के हजारों साल तक औरतों ने इस देश अर्थात भारत वर्ष पर एकाधिकार किया है यद्यपि यह राज्य संचालन देश संचालन विश्व संचालन का कार्य नहीं किया है, इन्होन अपने समय शक्ति और धन का उपयोग काम शास्त्र के विकास में किया है, इन्होने भारी मात्रा में लोगों को कामुक बनाया, और कुत्ताें  की मौत मरने के लिए मजबूर किया, खुजराहों की मंदिर आसाम की कामाख्या मंदिर इत्यादि प्रमाण आज भी उपलब्ध हैं। इसी कारण भारत को भारत माता कहकर पुकारते है, महाभारत तक इस देश को आर्यावर्त कहते थे, महाभारत शास्त्र को पहले जय संहिता के नाम से जानते थे| संस्कृत के हजारो लाखो ग्रंथ को देखने पर शायद  ही आपको कोई ग्रंथ मिले जिसे किसी महिला ने लिखा हो, ऐसा क्यों है क्या आपने कभी इस पर विचार किया है, आज बहुत सारी औरते किताबे लिख रही है। पहले औरते इसमें रुची नहीं  लेती थी क्या औरते पढ़ती लिखती नहीं थी, ऐसा तो नहीं था क्योंकि वेद के मंत्र का साक्षात्कार बहुत सारी महिलाओं ने किया है, अपाला लोपमूद्रा गार्गी अरुंधति इत्यादि आगे इनपर नियंत्रण पुरुष करते थे क्योंकि यह भरोशे की नहीं थी, इनकी स्वतंत्रता और इनके अधिकार मे पुरुष के रहने से देश समाज परिवार का पूर्ण विकास नहीं होता है, इसलिए इनपर बार बार पुरुष वर्गो अधिकार कर लेता है, ऐसा ही हुआ फारस मार्ग से आये हुये दुष्ट लोगों ने भारत माता पर अधिकार करने के लिए भारतिय वैदिक धर्म के अंदर बदलाव लाने के लिए,  पहले इसका अध्ययन किया फिर अपना एक नया धर्म बना लिया जिसे हम सब पारसी धर्म कहते हैं जो आज केवल भारत में संरक्षित है, जिसके संस्थापक जरथ्रुस्त माना जाता है, इनके द्वारा जो किताब लिखी गई है जिंदावस्ता उसमें बहुत से उद्धरण वेद मंत्रो के मिलते हैं,

     यहा पहली बात जो समझने कि है, वह भारत का पतन हुआ, और पतन स्वयं के द्वारा किया गया, इसका नुकसान स्वयं भारतियो ने उठाया, इसमें ध्यान देने की बात यह है इसमे निरंतर आगे बढोत्तरी हुई, बार बार भारत को नुकसान किया जाता यह समझते नहीं थे क्योंकि यह नादान थे, और जो इस देश को पतन के गर्त में झोकना चाहते थे वह फायदा उठाते रहे, क्योंकि जिस प्रकार कोई नासमझ व्यक्ति अपनी गलती से भयंकर कष्ट उठाता है, बार बार उसके साथ यही होता और वह अपनी गलती को सुधारता नही है। क्योकि उसकी मांयता और अहंकार उसके साथ खेलते है और वह मात्र उनका साधन बन कर रह जाता है, जिस प्रकार कोई व्यक्ति धुम्रपान करता है, मादक द्रव्यों का सेवन करता है, उस वस्तु के साथ उसकी चेतावनी भी सेवन करने वालो को दी जाती है, जिसकी अवहेलना या नजरांदाज करता है जिसका नुकसान उस व्यक्ति या समाज को झेलना पडता है, आज भी यही होरहा है, जब आप स्वयं और अपने समुह की गलती को नजरांदाज करते है तो आप को भी यह प्रकृति नजरांदाज अथवा आपके स्वय के जीवन का या आपके सामाजिक जीवन का आपके देश का या फिर विश्व की परवाह नहीं करती हैं आपको अपनी प्रकृति का ध्यान देना होगा जिससे आपकी प्रकृति आपका ध्यान देगी इसके शिवाय दूसरा कोई मार्ग नहीं  है|  

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