*चक्रव्यूह*
अभिमन्यु को कौन नहीं जानता! सभी जानते ही होंगे। पर सभी ये नहीं जानते कि वो भी तो एक अभिमन्यु ही हैं। हर एक इंसान जो अपनी जिम्मेदारियों, अपनी परेशानियों, अपने ख्वाबों का पीछा कर रहा है, वो खुद भी एक चक्रव्यूह में घुसता चला जा रहा है।
तुम खुद सोचो। क्या हमारा जीवन भी एक चक्रव्यूह सा नहीं बनता जा रहा? हम लोग भी बाईस की उम्र में इस तैयारी के मायाजाल में बड़ी जोश के साथ आए थे और आज ऐसे उलझकर रह गए कि दायें, बाएँ, आगे, पीछे कुछ न समझ आता है, न दिखाई देता है। मैं निराश करने नहीं आया हूँ। पर क्या करूँ, कभी-कभी सच का सामना भी करना चाहिए। किसी बीमारी का पता नहीं चलेगा, तब तक उसका इलाज भी संभव नहीं है। इसलिए, हमें पता होना चाहिए कि हमारी बीमारी क्या है।
इलाज क्या हो सकता है। इलाज एक ही है मित्रों, इस चक्रव्यूह से बाहर निकलना। और वो केवल मेहनत से ही हो सकता है। *"जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ, मैं बपुरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ।"* किनारे बैठकर ही मोती हाथ नहीं लगते, पानी में उतरना पड़ेगा, और गोते लगाने होंगे। स्मार्ट वर्क भी एक हार्डवर्क है, ये कोई नहीं बताता। इसलिए, कुछ करो। अपने मन को समझाओ कि अब मेहनत करनी ही होगी। वरना, वक्त हाथ से निकल जाएगा।
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आपका बेस्टफ्रेंड,
GVB
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