🕉️🙏ओ३म् सादर नमस्ते जी 🙏🕉️
🌷🍃 आपका दिन शुभ हो 🍃🌷
दिनांक - - ०१ दिसम्बर २०२४ ईस्वी
दिन - - रविवार
🌘 तिथि -- अमावस्या ( ११:५० तक तत्पश्चात प्रतिपदा )
🪐 नक्षत्र - - अनुराधा ( १४:२४ तक तत्पश्चात ज्येष्ठा )
पक्ष - - कृष्ण
मास - - मार्गशीर्ष
ऋतु - - हेमन्त
सूर्य - - दक्षिणायन
🌞 सूर्योदय - - प्रातः ६:५७ पर दिल्ली में
🌞 सूर्यास्त - - सायं १७:२४ पर
🌘चन्द्रोदय -- ६:५८ पर
🌘 चन्द्रास्त - - १७:१४ पर
सृष्टि संवत् - - १,९६,०८,५३,१२५
कलयुगाब्द - - ५१२५
विक्रम संवत् - -२०८१
शक संवत् - - १९४६
दयानंदाब्द - - २००
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🚩‼️ओ३म्‼️🚩
🔥 ईशवर एक, अनादि, निराकार और सर्वव्यापी चेतन तत्व ( वस्तु ) है
जो इस जगत का निमित्त कारण है और सबका आधार है ।ईशवर सत +चित + आनन्द है , अनन्त स्वरूप है तथा शुद्ध- बुद्ध मुक्त स्वभाव वाला है ।वह सबसे महान एवं सर्वशक्तिमान् है ।जँहा तक हम सभी अपनी कल्पना कर सकते है ईशवर की सत्ता उससे अधिक है , अनन्त है ।असंख्य सृष्टियाँ तथा आत्माएँ उसी एक परमेश्वर में निवास करतीं है और वह परमात्मा स्वयं भी इन सब में विधमान रहता है ।ब्रह्माण्ड में कोई ऐसा स्थान नही है जहाँ ईशवर की सत्ता न हो ।
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🚩‼️आज का वेद मंत्र‼️🚩
🌷ओ३म् ईशा वास्यमिदं सर्वं यत्किचं जगत्वां जगत् ( यजुर्वेद ४०\१ )
💐अर्थ - इस गतिशील संसार में जो कुछ भी है ईशवर उस सब में बसा हुआ है ।
🌷 न तस्य् प्रतमाऽस्ति यस्य नाम महधश : ।( यजुर्वेद। ३२\३ )
अर्थ - उस परमात्मा की कोई आकृति या मूर्ति नही है ।उसे नापा या तोला नही जा सकता । उस परमात्मा का नाम स्मरण अर्थात उसकी आज्ञा का पालन करना अर्थात धर्मयुक्त कर्मों का करना बड़ी कीर्ति देने वाला है ।
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🔥विश्व के एकमात्र वैदिक पञ्चाङ्ग के अनुसार👇
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🙏 🕉🚩आज का संकल्प पाठ 🕉🚩🙏
(सृष्ट्यादिसंवत्-संवत्सर-अयन-ऋतु-मास-तिथि -नक्षत्र-लग्न-मुहूर्त) 🔮🚨💧🚨 🔮
ओ३म् तत्सत् श्रीब्रह्मणो द्वितीये प्रहरार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे 【एकवृन्द-षण्णवतिकोटि-अष्टलक्ष-त्रिपञ्चाशत्सहस्र- पञ्चर्विंशत्युत्तरशततमे ( १,९६,०८,५३,१२५ ) सृष्ट्यब्दे】【 एकाशीत्युत्तर-द्विसहस्रतमे ( २०८१) वैक्रमाब्दे 】 【 द्विशतीतमे ( २००) दयानन्दाब्दे, काल -संवत्सरे, रवि- दक्षिणायने , हेमन्त -ऋतौ, मार्गशीर्ष - मासे, कृष्ण पक्षे, अमावस्यायां
तिथौ,
नक्षत्रे, अनुराधा रविवासरे
, शिव -मुहूर्ते, भूर्लोके जम्बूद्वीपे, आर्यावर्तान्तर गते, भारतवर्षे ढनभरतखंडे...प्रदेशे.... जनपदे...नगरे... गोत्रोत्पन्न....श्रीमान .( पितामह)... (पिता)...पुत्रोऽहम् ( स्वयं का नाम)...अद्य प्रातः कालीन वेलायाम् सुख शांति समृद्धि हितार्थ, आत्मकल्याणार्थ,रोग,शोक,निवारणार्थ च यज्ञ कर्मकरणाय भवन्तम् वृणे
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