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ईश्वर की सर्वव्यापकता।*

 *👉 विषय:-  ईश्वर की सर्वव्यापकता।*



🤔 कई शंका करते हैं कि ईश्वर सब जगह नहीं हो सकता व यह विशेष कर (ब्रह्मकुमारी मत) यदि ईश्वर सब जगह है तो क्या वह मल मूत्र में, 🐷 सूअर, 🐶 कुत्ते, 🎭 चौर-डाकू में भी है? फिर तो ईश्वर भी गंदा, मेला हो जाएगा ? यह उनकी शंका है। 


👊 समाधान - जब हम चुम्बक के टुकड़े को मल में, गन्दगी में, डालते हैं तो चुम्बक का लोहा गंदा होता है, उसकी आकर्षण शक्ति गंदी नहीं होती। 🏞 पृथ्वी पर मल मूत्र गंदगी डालने से 🏞 पृथ्वी गंदी होती है, 

गुरुत्व बल गंदा नहीं होता। 

बिजली के तार पर गंदगी लगने से तार गन्दा होता है, कंरट नहीं  इत्यादि 

इस उदाहरण से पता चलता है कि जिसका आकार है वह गंदा होता है, क्यों कि ईश्वर निराकार है,

 इसलिए वह गंदा नहीं होगा।

 आत्मा शरीर में रहती है जहां गन्दगी है फिर तो आत्मा सदा गंदी ही रहेगी, कभी मोक्ष नहीं होगा?

 क्योंकि ईश्वर निराकार है, शरीर से  रहित है, नस नाड़ियों से रहित है वह तो मल-मूत्र के अन्दर बाहर सब जगह है। सदा पवित्र है, निर्विकार है इसलिए सब जगह होता हुआ भी गंदा नहीं होता। 🌅 सूर्य की किरणें गंदगी पर पड़ने के बाद भी गंदी नहीं होती। 


शंका :- ईश्‍वर है तो दिखाई क्‍यों नहीं देता ? 

 ईश्‍वर एक दिव्‍य चेतन शक्‍ति है । इस संसार में ऐसी अनेक शक्‍तियां है जिनको हम देख नहीं सकते । हम उन शक्‍तियों को केवल अनुभव कर सकते हैं ।उन शक्‍तियों को न तो आंख से देखा जा सकता है  और न ही उनकी फोटो या चित्र बनाया जा सकता है ।  जैसे

• सूरज की गर्मी को केवल अनुभव किया जा सकता है हम उस गर्मी को पकड़ नहीं सकते । 

• सदियों में ठंड को केवल अनुभव किया जा सकता है आप उस ठंडक को पकड़ नहीं सकते ।

• भूख एक शक्‍ति है, भूख को आप अनुभव कर सकते हैं, पकड़ या देख नहीं सकते । न ही उसकी मूर्ति या फोटो बना सकते हैं

• कानों से आवाज को केवल सुन सकते हैं, आप देख नहीं सकते न ही उसकी मूर्ति या फोटो बना सकते हैं 

• दूध में घी रहता है, परंतु दिखाई नहीं देता । 

• पुष्‍प में सुगंध होती है, परंतु दिखाई नहीं देती ।

• मल-मूत्र में दुर्गंध होती है, परंतु दिखाई नहीं देती ।

• वायु हमारे चारों ओर है परंतु दिखाई नहीं देती । 

• तिल, सरसों, मूंगफली आदि में तेल होता है, परंतु वह बीज में दिखाई नहीं देता । एक नन्‍हें से बीज में वट-वृक्ष समाया रहता है, रंग बिंरंगे फल पत्‍ती समाई रहती है परंतु वे बीज में किसी भी प्रकार दिखाई नहीं देते । 

• लकड़ी में आग छिपी रहती है परंतु बिना जले दिखाई नहीं देती 

• किसी भी मनुष्‍य या प्राणी को चोट लगने पर उसे बहुत पीड़ा होती है । वह पीड़ा केवल उसी को अनुभव होती है, अन्‍य किसी को नहीं । साथ वह वह कष्‍ट या पीड़ा अन्‍य किसी को दिखाई नहीं देती । 

• मनुष्‍य के मन में हर्ष, शोक चिंता, क्रोध ईर्ष्‍या, द्वेष उत्‍साह, प्रेम, त्‍याग, स्‍वार्थ, आदि अनेक भाव एवं विचार समाए रहते हैं परंतु वे किसी को भी दिखाए नहीं देते ।  

 इस प्रकार संसार में अनेक अनेक बातें ऐसी हैं जिन्‍हें केवल अनुभव किया जा सकता है उनकी न तो फोटो बनाई जा सकती है और न ही उनकी मूर्ति या चित्र । 

इसी प्रकार परमपिता एक दिव्‍य चेतन शक्‍ति है । वह शक्‍ति इस संसार में ठीक उसी तरह व्‍याप्‍त है जैसे इस ब्रह्मांड में वायु फैली हुई है । जैसे हवा को हम पकड़ नहीं सकते, छू नहीं सकते, देख नहीं सकते, केवल अनुभव कर सकते हैं । 

इस संसार में यदि कोई हमसे कहें कि उदाहरण देकर समझाएं कि परमात्‍मा के जैसे कौन सी वस्‍तु है तो वह होगी निर्वात अर्थात् वैक्‍यूम (vacuum) जैसे वैक्‍यूम को देख नहीं सकते, छू नहीं सकते, कानों से सुन नहीं सकते, हाथों से पकड़ नहीं सकते, सूंघ नहीं सकते ।  

ठीक उसी प्रकार उस दिव्‍य शक्‍ति को न तो पकड़ा जा सकता है, न ही सुना जा सकता है, न ही देखा जा सकता है, न ही सूंघा जा सकता है लेकिन हां उस परमात्‍मा को मनुष्‍य अपने हृदय में केवल अनुभव कर सकता है । लेकिन कब । 

तब जब हम कोई भी शुभ कार्य करते हैं जैसे किसी को दान देते हैं या किसी भूख से तड़पते व्‍यक्‍ति को भोजन कराते हैं या किसी प्राणी को जो प्‍यास से तड़प रहा हो और हम उसे पानी देते हैं और उसकी खुशी के आनंद में हम भी आनंदित होते हैं तो हमें एक सुख विशेष की अनुभूति होती है । 

वही परमात्‍मा का आनंद है । जब भी हम कोई शुभ कार्य करते हैं तो मन में आनंद, खुशी, हर्ष उल्‍लास, उत्‍साह आता है । वह परमात्‍मा का आदेश होता है ।और जब भी हम कोई गलत काम करते हैं या करने का सोचते हैं, या प्रयास करते हैं तो अंदर से घबराहट, डर, शंका, भय, लज्‍जा आदि है । तब परमात्‍मा हमें रोक रहें होते हैं कि रुको यह गलत काम मत करो यही आत्‍मा की आवाज ही परमात्‍मा की आवाज होती है ।

 यदि हम आत्‍मा की आवाज को सुनकर कोई भी कार्य करते हैं तो आत्‍मिक शांति की प्राप्‍ति होती है । वहीं परमात्‍मा के आनंद का स्रोत है । परमात्‍मा हमें हर समय अंदर से प्रेरणाएं देते रहते हैं कि

 ‘यह करो’  ‘यह मत करो’  । 

हमें केवल इस आवाज को ही समझना होता है । जो इस आवाज को अच्‍छी प्रकार से सुनकर कोई कार्य करता है उसे निश्‍चित रुप से सफलता के साथ साथ आत्‍मिक आनंद की भी प्राप्‍ति होती है । वही आत्‍मा का आनंद ही परमात्‍मा का आशीर्वाद है । उपरोक्‍त कथनों से स्‍पष्‍ट है कि परमात्‍मा एक चेतन और दिव्‍य शक्‍ति है । 

वह परमात्‍मा सबके अंदर उसी तरह समाया रहता है जैसे दूध के अंदर घी और लकड़ी में आग समाई रहती है । इसी लिए कहा जाता है कि परमात्‍मा कण- कण में समाया हुआ है ।  

आंखों से न दिखने के उपरान्त भी परमात्‍मा हमारे हर कर्म को हर समय देखता रहता है क्‍योंकि वह शक्‍ति चेतन है और हमें दिशा –निर्देश देता रहता है, किंतु हम अभागे उसकी आवाज (दिशा-निर्देश) को अनसुना करके अशुभ कार्यों में लगे रहते हैं जिसके कारण अपना पाप कर्माशय बढ़ाते हैं और दुख को प्राप्‍त होते हैं।

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