*राजा बाबू -
नवंबर का 24वा दिन चल रहा है। इस महीने राजा बाबू ने लगभग 20 बार सुबह पाँच बजे उठकर पढ़ने की रणनीति बनाई और बीस की बीस बार राजा बाबू फैल हो गए। कभी वो अलार्म नहीं सुन पाते, कभी मन नहीं रहता और कभी अच्छा दिन नहीं रहता, कभी कुछ। इसलिए, राजा बाबू सुबह अब आराम से उठते हैं। सबसे पहले टेलीग्राम पर 'आन्सर की' की प्रतीक्षा में तड़प रहे लोगों के उटपटाँग मैसेज पढ़ते हैं और फिर अपने लौटेभर ज्ञान से एक दो बूंद दूसरों पर छिड़क देते हैं। ज्ञान देना राजा बाबू का दूसरा धर्म है। पहला धर्म तो उनका - बाबगिरी है।
जी हाँ! लेटे-लेटे मोबाईल चलाते हुए, 4000 रील्स देखते-देखते दस बज जाते हैं। नाश्ता-पानी करते-करते बारह बज जाते हैं। बारह बजे जब पढ़ने बैठते हैं तो तीन पन्ने पलटने के बाद राजा बाबू का चाय पीने का मन करता है। फिर राजा बाबू वहाँ भी प्रवचन देते हैं। जीआमिट्री, ऐल्जब्रा, रैशीओ, कोडिंग-डिकोंडींग के ऊपर खूब चर्चा करते हैं। जब इनसे कोई पुराने CGL का अंक पूछ ले तो घरवालों के फोन का नाटक कर वापस लौट आते हैं। घर लौटते हैं तो वापस पढ़ने बैठते हैं। टेबल के सामने चिपकाए हुए फॉर्मूले चार्ट पर "आई लव यू ****" लिखा देख फिर इनका ध्यान भटक जाता है। और फिर मोबाईल पर उनकी तस्वीर देखते रहते हैं। ऐसे उनकी याद में खोए-खोए शाम कब हो जाती है पता ही नहीं चलता।
राजा बाबू बड़े सिद्धांत वादी है। वो अपने सिद्धांतों का हमेशा पालन करते हैं। ऐसे ही उनका एक सिद्धांत है कि जब तक रिजल्ट ना आजाये तब तक मैंस की तैयारी शुरू नहीं करनी चाहिए। राजा बाबू का दिन ऐसे ही निकल जाता है। और फिर साल भी। आप राजा बाबू मत बनिएगा। और अगर आपके आस-पास ऐसे राजघराने के लोग दिखे तो उनसे दो गज दूरी बनाकर रखे। क्योंकि, कोरोना वायरस का इलाज तो मिल गया है लेकिन बाबगिरी के वायरस का इलाज सरकार अभी भी ढूंढ रही है।
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