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परमात्मा की समीपता से ही श्रेष्ठता उपजती है*

 *🚩‼️ओ३म्‼️🚩*



*🕉️🙏नमस्ते जी🙏🕉️*


दिनांक  - - ०१ मार्च २०२५ ईस्वी


दिन  - -  शनिवार 


  🌒 तिथि --  द्वितीया ( २४:०९ तक तत्पश्चात  तृतीया )


🪐 नक्षत्र - - पूर्वाभाद्रपद ( ११:२२ तक तत्पश्चात  उत्तराभाद्रपद )

 

पक्ष  - -  शुक्ल 

मास  - -  फाल्गुन 

ऋतु - - बसंत 

सूर्य  - - उत्तरायण 


🌞 सूर्योदय  - - प्रातः ६:४६ पर दिल्ली में 

🌞 सूर्यास्त  - - सायं १८:२१ पर 

🌒 चन्द्रोदय  -- ७:३२ पर 

🌒 चन्द्रास्त  - - १९:५६ पर 


 सृष्टि संवत्  - - १,९६,०८,५३,१२५

कलयुगाब्द  - - ५१२५

विक्रम संवत्  - -२०८१

शक संवत्  - - १९४६

दयानंदाब्द  - - २०१


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 *🚩🔥ओ३म्‼️🚩*


   *🔥परमात्मा की समीपता से ही श्रेष्ठता उपजती है*

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   परमात्मा के जितने ही समीप हम पहुँचते हैं उतनी ही श्रेष्ठताएँ हमारे अन्तःकरण में उपजती तथा बढ़ती हैं। उसी अनुपात से आन्तरिक शान्ति की भी उपलब्धि होती चलती है।


  हिमालय की ठण्डी हवाएँ उन लोगों को अधिक शीतलता प्रदान करती हैं जो उस क्षेत्र में रहते हैं। इसी प्रकार आग की भट्टियों के समीप काम करने वालों को गर्मी अधिक अनुभव होती है। जीव ज्यों-ज्यों परमात्मा के निकट पहुँचता जाता है, त्यों-त्यों उसे उन विभूतियों का अपने में अनुभव होने लगता है जो उस परम प्रभु में ओत प्रोत हैं।


    उपासना का अर्थ है—पास बैठना। परमात्मा के पास बैठने से ही ईश्वर उपासना हो सकती है। साधारण वस्तुएँ तथा प्राणी अपनी विशेषताओं की छाप दूसरों पर छोड़ते हैं तो परमात्मा के समीप बैठने वालों पर उन दैवी विशेषताओं का प्रभाव क्यों न पड़ेगा?


   पुष्प वाटिका में जाते ही फूलों की सुगन्ध से चित्त प्रसन्न होता है। चन्दन के वृक्ष अपने समीपवर्ती वृक्षों को सुगन्धित बनाते हैं। सज्जनों के सत्संग से साधारण व्यक्तियों की मनोभावनाएँ सुधरती हैं, फिर परमात्मा अपनी महत्ता की छाप उन लोगों पर क्यों न छोड़ेगा जो उसकी समीपता के लिए प्रयत्नशील रहते है ।


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 *🔥 अज्ञो भवति वै बाल: पिता भवति मनत्रद:। अज्ञं हि बालमित्याहु: पितेत्येव तु मन्त्रदम्।। ( महर्षि मनु )*


🌷 क्योंकि चाहे सौ वर्ष का भी हो प्रन्तु जो विधा विज्ञान रहित है वह बालक और जो विधा विज्ञान का दाता है उस बालक को भी वृद्ध मानना चाहिए । क्योंकि सब शास्त्र अज्ञानी को बालक और आप्त विद्वान ज्ञानी को पिता कहते है ।


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 🔥विश्व के एकमात्र वैदिक  पञ्चाङ्ग के अनुसार👇

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 🙏 🕉🚩आज का संकल्प पाठ 🕉🚩🙏


(सृष्ट्यादिसंवत्-संवत्सर-अयन-ऋतु-मास-तिथि -नक्षत्र-लग्न-मुहूर्त)       🔮🚨💧🚨 🔮


ओ३म् तत्सत् श्री ब्रह्मणो दिवसे द्वितीये प्रहरार्धे श्वेतवाराहकल्पे वैवस्वते मन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे 【एकवृन्द-षण्णवतिकोटि-अष्टलक्ष-त्रिपञ्चाशत्सहस्र- पञ्चर्विंशत्युत्तरशततमे ( १,९६,०८,५३,१२५ ) सृष्ट्यब्दे】【 एकाशीत्युत्तर-द्विसहस्रतमे ( २०८१) वैक्रमाब्दे 】 【 एकाधीकद्विशततमे ( २०१) दयानन्दाब्दे, काल -संवत्सरे,  रवि- उत्तरायणे , बंसत -ऋतौ, फाल्गुन - मासे, शुक्ल पक्षे, द्वितीयायां - तिथौ, पूर्वाभाद्रपद नक्षत्रे, शनिवासरे शिव -मुहूर्ते, भूर्लोके जम्बूद्वीपे, आर्यावर्तान्तर गते, भारतवर्षे भरतखंडे...प्रदेशे.... जनपदे...नगरे... गोत्रोत्पन्न....श्रीमान .( पितामह)... (पिता)...पुत्रोऽहम् ( स्वयं का नाम)...अद्य प्रातः कालीन वेलायाम् सुख शांति समृद्धि हितार्थ,  आत्मकल्याणार्थ,रोग,शोक,निवारणार्थ च यज्ञ कर्मकरणाय भवन्तम् वृणे।

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