🚩‼️ओ३म्‼️🚩
🕉️🙏नमस्ते जी
दिनांक - - ०२ अप्रैल २०२५ ईस्वी
दिन - - बुधवार
🌒 तिथि -- पञ्चमी ( २३:४९ तक तत्पश्चात षष्ठी )
🪐 नक्षत्र - - कृत्तिका ( ८:४९ तक तत्पश्चात रोहिणी )
पक्ष - - शुक्ल
मास - - चैत्र
ऋतु - - बसंत
सूर्य - - उत्तरायण
🌞 सूर्योदय - - प्रातः ६:१० पर दिल्ली में
🌞 सूर्यास्त - - सायं १८:४० पर
🌒 चन्द्रोदय -- ८:४२ पर
🌒 चन्द्रास्त - - २३:२५ पर
सृष्टि संवत् - - १,९६,०८,५३,१२६
कलयुगाब्द - - ५१२६
विक्रम संवत् - -२०८२
शक संवत् - - १९४७
दयानंदाब्द - - २०१
🍁🍀🍁🍀🍁🍀🍁🍀
🚩‼️ओ३म्‼️🚩
🔥गीता का सार (वैज्ञानिक रहस्य)
=============
🍁 क्या गीता केवल धार्मिक नीति उपदेश है?
श्रीमदभगवत गीता का सार
गीता विश्व का एक ऐसा ग्रन्थ है, जिसका उदाहरण विश्व के किसी भी साहित्य में मिलना दुर्लभ है। विश्व के विभिन्न सम्प्रदायों के बुद्धिजीवियों ने अनेक भाषाओं में इसका अनुवाद एवं इसकी व्याख्या की है। उन्होंने इससे अनेक प्रकार के ज्ञान-रत्नों को निकालकर हमारे सामने रखा है और निसन्देह मानव-समाज उससे लाभान्वित भी हुआ है। पर क्या हम गीता के वास्तविक सार को सनझ पाए हैं?
किन्तु, गीता का सार, इसका वास्तविक ज्ञान-भंडार इसमें निहित वैज्ञानिक तथ्य, सिद्धान्त, व्याख्या और उसके आलोक में बताया गया जीवन-दर्शन है। बिना इन वैज्ञानिक व्याख्याओं को समझे गीता के दर्शन एवं इसमें निहित ज्ञान के उपदेशात्मक तथ्यों को समझना असम्भव है। इसके अभाव में गीता को केवल धार्मिक आस्था, धार्मिक नीति-उपदेश, कर्म के महत्त्व एवं कर्त्तव्य के जीवन-दर्शन के आलोक में ही देखा जा सकता है; जो इसके वास्तविक स्वरूप को दिखलाने में असमर्थ हैं; क्योंकि गीता में जो उपर्युकत बातों का कथन किया गया है, उसका भी वास्तविक रूप गीता में निहित वैज्ञानिक तथ्यों को समझे बिना देखा नहीं जा सकता।
कठिनाई यह है कि जब भी कोई व्यक्ति गीता की व्याख्या करने वैठता है, तो वह इस तथ्य को भुला नहीं पाता कि यह एक हिन्दू धर्मग्रन्थ है। यह धारणा ही गीता के विशाल अनन्त स्वरूप को समेटकर एक छोटे से धार्मिक दायरे में बाँध देती है। इसके बाद भी जो गीता को समझने का प्रयत्न करते हैं, उन्हें यह भला कैसे समझ में आ सकती है?-एक सागर को छोटे क्षेत्र में बाँटकर कभी विश्लेषित नहीं किया जा सकता। फल यह होता है कि जो हिन्दू होते हैं, वे इसकी व्याख्या धार्मिक आस्था के अन्तर्गत करने लगते हैं और जो हिन्दू धर्म के आलोचक हैं, वे इसमें निहित ज्ञान को देखना ही नहीं चाहते। इन स्थितियों में भी गीता को समझने एवं उसकी व्याख्या करने का प्रयत्न कैसा निरर्थक प्रयत्न है.
यह कोई भी बुद्धिजीवी बता सकता है।
ज्ञान, ज्ञान होता है। इसका सम्बन्ध किसी धर्म, सम्प्रदाय, समुदाय या व्यक्ति तक सीमित नहीं होता। आज एडीसन का अन्वेषण केवल यूरोपियन समाज की बपौती नहीं है। न ही हवाई जहाज की तकनीकी अमेरिका तक ही सीमित रह गयी है। बुद्ध, ईसा, सुकरात, अरस्तु आदि पुरुष आज किसी धार्मिक दायरे से बाँधकर देखे जायें, तो उनका कद बेहद बौना हो जायेगा। गीता को इसी प्रकार बौने कद में देखा गया है। किसी ने इसे धार्मिक ग्रन्थ समझा, किसी ने नीतिग्रन्थ और कोई इसे जीवन-दर्शन समझने की भूल कर बैठा । वस्तुतः ये सभी गीता के विभिन्न अंग मात्र हैं।भागवत गीता का सार नहीं।हाथी के किसी एक अंग को देखकर हाथी की व्याख्या सम्भव नहीं है। सम्पूर्ण हाथी को देखकर भी उसकी व्याख्या सम्भव नहीं है, जब तक कि हाथी के अन्दर निहित चेतना तत्त्व और उसकी प्रकृति को विश्लेषित न किया जाये।
गीता में जिन वैज्ञानिक तथ्यों की व्याख्या करते परिभाषित किया गया है, वे वैदिक विज्ञान के तथ्य हैं । वेद, उपनिषद्, नीतिग्रन्थों एवं कर्मकाण्ड के ग्रन्थों के अतिरिक्त सभी प्रकार के वैदिक दर्शन के अन्दर प्राणरूप में ये ही वैज्ञानिक तथ्य हैं। इन ग्र्रनंथों को समझने के लिये सर्वप्रथम इन वैज्ञानिक सिद्धान्तों एवं तथ्यों को समझना होगा।यही गीता का सार है। गीता भी इसका अपवाद नहीं है।
🍁🍀🍁🍀🍁🍀🍁🍀
🕉🙏श्रीमद्भगवद्गीता 🕉🙏
🌷न जायते प्रियते वा कदाचिन् नायं भूत्वा भविता न भूय:।अजो नित्य: शाश्वतोऽयं पुराणो न हन्यते हन्यमाने शरीरे ।। (गीता २|२०)
💐 अर्थ:- आत्मा किसी भी काल में न तो जन्मता है और न मरता है न कभी नष्ट होता है। यह नित्य, अजन्मा, शाश्वत् और पुरातन है। देह के मारे जाने पर भी आत्मा नहीं मारा जाता ।
🍀🍁🍀🍁🍀🍁🍀🍁
🔥विश्व के एकमात्र वैदिक पञ्चाङ्ग के अनुसार👇
==============
🙏 🕉🚩आज का संकल्प पाठ 🕉🚩🙏
(सृष्ट्यादिसंवत्-संवत्सर-अयन-ऋतु-मास-तिथि -नक्षत्र-लग्न-मुहूर्त) 🔮🚨💧🚨 🔮
ओ३म् तत्सत् श्री ब्रह्मणो दिवसे द्वितीये प्रहरार्धे श्वेतवाराहकल्पे वैवस्वते मन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे
कलिप्रथमचरणे 【एकवृन्द-षण्णवतिकोटि-अष्टलक्ष-त्रिपञ्चाशत्सहस्र- षड्विंशत्युत्तरशततमे ( १,९६,०८,५३,१२६ ) सृष्ट्यब्दे】【 द्वयशीत्युत्तर-द्विसहस्रतमे ( २०८२) वैक्रमाब्दे 】 【 एकाधिकद्विशतीतमे ( २०१) दयानन्दाब्दे, काल -संवत्सरे, रवि- उत्तरायणे , बसन्त -ऋतौ, चैत्र - मासे, शुक्ल - पक्षे, पञ्चम्यां तिथौ, कृत्तिका - नक्षत्रे, बुधवासरे , शिव -मुहूर्ते, भूर्लोके जम्बूद्वीपे, आर्यावर्तान्तर गते, भारतवर्षे भरतखंडे...प्रदेशे.... जनपदे...नगरे... गोत्रोत्पन्न....श्रीमान .( पितामह)... (पिता)...पुत्रोऽहम् ( स्वयं का नाम)...अद्य प्रातः कालीन वेलायाम् सुख शांति समृद्धि हितार्थ, आत्मकल्याणार्थ,रोग,शोक,निवारणार्थ च यज्ञ कर्मकरणाय भवन्तम् वृणे
🍁🍀🍁🍀🍁🍀🍁

0 टिप्पणियाँ
If you have any Misunderstanding Please let me know