जो जो भी व्यक्ति – महाभारत में ऐसा सोचते और समझते हैं की द्रौपदी के “चीर हरण” जैसा कुत्सित और भ्रष्ट आचरण हुआ था –
तो ऐसी विसंगति को दिमाग से पूरी तरह हटा देवे – और जो इस पोस्ट में लिखा जा रहा है – उसे ध्यान पूर्वक पढ़े – निष्पक्ष होकर जांच करे और जो सत्य हो उसे मान लेवे –
यहाँ पोस्ट को बड़ी करने का उद्देश्य नहीं है – इसलिए पॉइंट तो पॉइंट बात लिखूंगा – यदि किसी भाई को स्पष्टीकरण चाहिए तो विषय से सम्बंधित सन्दर्भ दिए गए हैं स्वयं जांच कर लेवे – तब भी कोई शंका शेष हो तो सवाल पूछ लेवे –
पहली बात – जब द्यूतक्रीड़ा महाभारत में आरम्भ हुई और युधिष्ठर ने स्वयं और अपने भाइयो को तथा अपनी “पत्नी द्रौपदी” को दांव पर लगा दिया – और हार गए –
तब यहाँ ये जानना आवश्यक है कि वो क्या हार गए और हारने के बाद क्या बन गए ?
तब यहाँ ये जानना आवश्यक है कि वो क्या हार गए और हारने के बाद क्या बन गए ?
देखिये –
दुर्योधन ने जब देखा की शकुनि ने युधिष्ठर से सब कुछ जीत लिया है तो आदेश दिया –
दुर्योधन बोला – विदुर ! यहां आओ। तुम जाकर पांडवो की प्यारी और मनोनुकूल द्रौपदी को यहाँ ले आओ। वह पापाचारिणी शीघ्र यहां आये और मेरे महल में झाड़ू लगाये। उसे वहीँ दासियों के साथ रहना होगा।
द्यूतपर्व – अध्याय ६६ श्लोक १
यहाँ स्पष्ट है – दुर्योधन ने पांडवो और द्रौपदी को केवल लज्जित ही करना था इसलिए विदुर को बोला गया की द्रौपदी जो एक कुल की रानी थी – को “दासी” और पांडव जो राजा थे उन्हें – “दास” बना कर लज्जित ही करना मात्र दुर्योधन का मंतव्य था –
विदुर के विरोध और नीतिवचन सुनने के बाद दुर्योधन ने “प्रतिकामिन” को आदेश दिया की द्रौपदी को यहाँ ले आवो (दासीरूप में झाड़ू लगाने हेतु)
द्यूतपर्व – अध्याय ६७ श्लोक २
प्रतिकामिन ने द्रौपदी से कहा –
द्रुपदकुमारी ! धर्मराज युधिष्ठर जुए के मदसे उन्मत्त हो गए थे। उन्होंने सर्वस्व हारकर आप को दांव पर लगा दिया। तब दुर्योधन ने आपको जीत लिया। याज्ञसेनी ! अब आप धृतराष्ट्र के महल में पधारे। मैं आपको वहां दासी का काम करवाने के लिए ले चलता हूँ।
यहाँ भी बिलकुल स्पष्ट है की द्रौपदी को केवल दासी के काम हेतु महल की सफाई आदि करवाने के उद्देश्य से दुर्योधन ने प्रतिकामिन को भेजा था – ताकि द्रौपदी और पांडवो का मानमर्दन हो सके – अन्य कोई मंतव्य दुर्योधन का नहीं था।
द्यूतपर्व – अध्याय ६७ श्लोक ४
उपरोक्त श्लोको से स्पष्ट है – दुर्योधन का मंतव्य द्रौपदी का चीरहरण करना तो बिलकुल गलत और समाज को भ्रामित करने वाली बात गढ़ी गयी है।
आगे देखिये –
कुछ मित्र कहते हैं की दुःशासन द्रौपदी को जबरदस्ती पकड़ कर – सभाग्रह ले आया – यहाँ पर भी कुछ शंका खड़ी होती है –
वैशम्पायनजी कहते हैं – जनमेजय ! दुर्योधन क्या करना चाहता है, यह सुनकर युधिष्ठर ने द्रौपदी के पास एक ऐसा दूत भेजा, जिसे वह पहचानती थी और उसी के द्वारा यह सन्देश कहलाया – “पाँचालराजकुमारी ! यद्यपि तुम रजस्वला और नीवी (नाभि) को नीचे रखकर एक ही वस्त्र धारण कर रही हो, तो भी उसी दशा में रोती हुई सभामे आकर अपने श्वसुर के सामने खड़ी हो जाओ।
“तुम जैसी राजकुमारी को सभा में आई देख सभी सभासद मन ही मन इस दुर्योधन की निन्दा करेंगे।
द्यूतपर्व – अध्याय ६७ श्लोक १८-२१
यहाँ धर्मराज युधिष्ठर की बात से भी प्रमाण मिलता है की द्रौपदी का चीरहरण जैसी घटना – समाज को भ्रमित करने हेतु कुछ धूर्तो ने रची – यदि दुर्योधन का मंतव्य केवल द्रौपदी का चीरहरण करना ही था – तो युधिष्ठर द्रौपदी को सभा में आने के लिए क्यों कहते ?
जबकि यह स्पष्ट है की द्रौपदी को युधिष्ठर ने सभा में आने के लिए दूत से बुलावा भेज दिया – और द्रौपदी भी सभा में आने को तईयार थी – तब ये कहना की दुःशाशन जबरदस्ती द्रौपदी को पकड़ कर सभा में ले आया संदेह प्रकट करता है – खैर यदि ये मान भी ले की दुःशासन ने द्रौपदी को बाल से खींच घसीट कर सभा में ले आया – तो उसका वृतांत महाभारत में देखिये
दुःशासन के खींचने से द्रौपदी का शरीर झुक गया। उसने धीरे से कहा -‘ओ मंदबुद्धि दुष्टात्मा दुःशासन। में रजस्वला हूँ तथा मेरे शरीर पर एक ही वस्त्र है। इस दशा में मुझे सभा में ले जाना अनुचित है।
द्यूतपर्व – अध्याय ६७ : ३२
दुःशासन बोला – द्रौपदी ! तू रजस्वला, एकवस्त्रा अथवा नंगी ही क्यों न हो, हमने तुझे जुए में जीता है ; अतः तू हमारी दासी हो चुकी है, इसलिए अब तुझे हमारी इच्छा के अनुसार दासियों में रहना पड़ेगा।
द्यूतपर्व – अध्याय ६७ : ३४
यहाँ दुःशासन के बोले शब्द देखिये – दुःशासन का उद्देश्य भी द्रौपदी का चीरहरण करना नहीं था – बल्कि यहाँ भी स्पष्ट है की कौरवो – दुर्योधन आदि को केवल पांडवो और द्रौपदी को “दास” आदि बनाकर भरी सभा में अपमानित ही करना था।
वैशम्पायनजी कहते हैं – जनमेजय ! उस समय द्रौपदी के केश बिखर गए थे। दुःशासन के झकझोरने से उसका आधा वस्त्र भी खिसककर गिर गया था। वह लाज से गाड़ी जाती थी और भीतर ही भीतर दग्ध हो रही थी। उसी दशा में वह धीरे से इस प्रकार बोली
द्रौपदी ने कहा – अरे दुष्ट ! ये सभा में शास्त्रो के विद्वान, कर्मठ और इंद्र के सामान तेजस्वी मेरे पिता के सामान सभी गुरुजन बैठे हुए हैं। मैं उनके सामने इस रूप में कड़ी होना नहीं चाहती।
क्रूरकर्मा दुराचारी दुःशासन ! तू इस प्रकार मुझे ना खींच, ना खींच, मुझे वस्त्रहीन मत कर। इंद्र आदि देवता भी तेरी सहायता के लिए आ जाएँ, तो भी मेरे पति राजकुमार पांडव तेरे इस अत्याचार को सहन नहीं कर सकेंगे।
द्यूतपर्व – अध्याय ६७ : ३५-३७
यहाँ ही वह शब्द है जहाँ पर द्रौपदी को घसीटने के कारण – द्रौपदी के रजस्वला अवस्था में पहने हुए एक वस्त्र के सरकने से द्रौपदी के चीरहरण की कथा गढ़ ली गयी – जबकि ये चीरहरण नहीं था – केवल द्रौपदी को दुःशासन द्वारा खींचा गया –
घसीटा गया – जिसके परिणामस्वरूप द्रौपदी का एकमात्र पहना हुआ वस्त्र शरीर से थोड़ा सरक गया – जिसके आधार पर पूरी की पूरी मिथ्या कथा बना दी गयी – की द्रौपदी का चीरहरण हुआ –
घसीटा गया – जिसके परिणामस्वरूप द्रौपदी का एकमात्र पहना हुआ वस्त्र शरीर से थोड़ा सरक गया – जिसके आधार पर पूरी की पूरी मिथ्या कथा बना दी गयी – की द्रौपदी का चीरहरण हुआ –
यदि द्रौपदी का चीरहरण करना उद्देश्य ही नहीं था दुर्योधन का तो चीरहरण जैसी कुत्सित भ्रान्ति क्यों और किसलिए फैलाई गयी ?
इस लेख को ज्यादा बड़ा बनाने का कोई औचित्य नहीं – इसलिए यहाँ से स्पष्ट होगा की द्रौपदी का चीरहरण नहीं हुआ –
अब जो महाभारत में द्रौपदी के चीरहरण की झूठी और बेबुनियाद कथा जोड़ी गयी है अगले लेख में उसका भंडाफोड़ करेंगे – कैसे “द्रौपदी का चीरहरण” घटना जो महाभारत में जबरदस्ती ठूंसा गया – और क्यों ?
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